डॉ. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। हमारी नागरिकता से लेकर पहचान तक का प्रमाण बन चुके आधार और उसकी बायोमेट्रिक जानकारी सुरक्षित रहने की दिशा में एक अच्छी खबर है। राष्ट्रीय स्तर पर जन्म-मृत्यु पंजीकरण का कानून संशोधित हो गया है। इससे मृतकों का आधार डेटा निष्िक्रय होने का मार्ग भी खुल गया है।
इसका फायदा यह होगा कि मृतक के डेटा का दुरुपयोग नहीं हो सकेगा। साथ ही मतदाता सूची से भी मृतक का नाम हटाने में मदद मिलेगी।
दरअसल, मृत्यु पंजीकरण और आधार को खत्म करने की अब तक कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में सरकार और मृतकों के परिजन के सामने यह चुनौती थी कि आधार डेटा के दुरुपयोग से कैसे बचा जाए। जन्म मृत्यु पंजीकरण कानून में बदलाव के संशोधन विधेयक का प्रारूप तैयार लागू करते समय जनगणना महापंजीयक ने यूआईडीएआई से राय मांगी थी कि मृत्यु के प्रमाणपत्र को आधार नंबर से जोड़ दिया जाए, ताकि मृतक के आधार और उससे जुड़े बायोमेट्रिक डेटा को खत्म किया जा सके। जन्म मृत्यु का पंजीकरण राज्य स्तर पर पंजीयक कार्यालय में होता है।
– अभी छह करोड़ मृतकों के आधार सक्रिय
जन्म आधार के बीच संबंध नहीं होने से मृत्यु अधिनियम 1969 में संशोधन के बाद अब इस पंजीयन का रिकॉर्ड रियल टाइम में केंद्रीय स्तर पर भी अपडेट होगा। जन्म प्रमाण को आधार से जोड़ने की व्यवस्था 20 राज्यों में लागू हो चुकी है। अब मृत्यु प्रमाण पत्र के आधार से मृतक का डेटा निष्िक्रय किया जा सकेगा। देश में अभी तक 136 करोड़ आधार कार्ड जारी किए जा चुके हैं। इनमें करीब छह करोड़ आधार धारकों की मौत हो चुकी है।
नया कानून लागू होने के बाद जन्म प्रमाण पत्र का उपयोग मतदाता सूची से लेकर पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, राशन कार्ड और स्कूल में दाखिले के लिए एकल दस्तावेज के तौर पर होगा।
वित्तीय फ्रॉड से लेकर आतंकी कृत्य में हो सकता है डेटा का दुरुपयोग
इनके दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है और इसका खामियाजा मृतक के परिजन को भी भुगतना पड़ सकता है। इससे व्यक्ति पहचान और पते को गैर कानूनी कामों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें प्रमुख आधार कार्ड से फोन के सिम कार्ड भी हासिल किए जा सकते हैं और फिर किसी भी गैर कानूनी काम में इस्तेमाल किया जा सकता है जिनमें आतंकवाद गतिविधियां भी शामिल हैं।