नेपाल–भारत संबंध बहुत आरोह-अवरोह की स्थिति से गुजर चुके हैं । 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय से लेकर आज तक लगभग 76 वर्षों में दोनों देशों ने आपसी समस्याओं का समाधान बड़े धैर्य और परिपक्वता के साथ किया है। भारत आज विश्व मानचित्र में एक उभरता शक्तिशाली देश है। भारत का प्रभाव दक्षिण एशियाई क्षेत्र से लेकर अमेरिकी महाद्वीप तक फैल रहा है। भौगोलिक रुप से नेपाल भारत से तीन दिशाओं से घिरा हुआ देश है।
नेपाल में राजनीति से लेकर जनस्तर के सम्बंधों तक भारतीय राजनीति, कूटनीति और रणनीति का प्रभाव है। आज नेपाल का व्यापार भारत के साथ 50 फीसदी से भी अधिक है। 2022/23 के आंकड़ों में भारत के साथ नेपाल का व्यापार घाटा 6.9 मिलियन अमेरिकी डालर था। इस तथ्य के बावजूद, दोनों देश व्यापार घाटा कम करने के लिए नियमित सचिव और प्रधानमंत्री स्तर पर परामर्श कर रहे हैं ।
दक्षिण एशियाई देशों, मसलन नेपाल में जब भी कोई राजनीतिक घटना घटित होती है, तो उसे भारत से जोड़कर कर देखा जाता है। इस सन्दर्भ में नेपाल में आजकल हिंदू राज्य और राजतन्त्र वापसी की मांग उठ रही है। यह विषय पर नेपाली जनता भारत का सहयोग और हस्तक्षेप, दोनों की सम्भावना का आकलन कर रही है ।
नेपाल में हिंदू राज्य और राजतंत्र
नेपाल में इस समय हिंदू राज्य और राजतंत्र को पुनः स्थापित करने की मांग के विषय को नेपाल के सत्तासीन राजनीतिक दल उतने उत्साह के साथ नही देख रहे हैं। हिंदू राज्य और राजतंत्र के विषय में नेपाली जनता की रुचि को देखते हुए फिर से यह कहा जा सकता है कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था ने जनता को “डेलीवरी” के सवाल पर निराश किया हैं। हालांकि खुले लोकतंत्र से उन्नत व्यवस्था कोई भी नही हो सकती किन्तु “डेलीवरी” के सवाल पर नेपाल के राजनीतिक दल को ध्यान देना जरूरी है भारत में इस समय सनातनी धर्म को स्वीकार करने वाली भाजपाई सरकार है ।
ज्यादातर नेपाली जनता आज के समय में मानती है कि भारत में हिंदूवादी राजनीतिक दल की शासन व्यवस्था है और वह नेपाल में हिंदू राज्य और राजतंत्र फिर से वापस लाने में मदद कर सकती है। हालांकि, यह देखा गया है कि भाजपा के प्रतिनिधियों का नेपाल में आने-जाने का अभ्यास लगातार जारी है। नेपाली जनता मान रही है कि 2029 तक अगर भाजपा सत्ता में रही तो नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। भाजपा के बारे में बात करें तो “बाडी लैंग्वेज ”के हिसाब से वह हिंदू राष्ट्र के सवाल पर गंभीर है। नेपाल के पूर्व नरेश को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सिवाय और बडे नेताओं के साथ सार्वजनिक समारोह में मिलते हुए नहीं देखा गया है।
नेपाल का बौद्धिक वर्ग
नेपाल के बौद्धिक वर्ग के बारे में बात करें, तो यह बहुत विभाजित है । नेपाल में राजतंत्र और हिंदू राज्य के विषय में कुछ विवाद है। उदारवादी बौद्धिक जो नेपाल में पश्चिमी देशों से ज्यादा नजदीक माने जाते है, वे विवाद की बात को अस्वीकार करते हैं। जुलाई 2023 में नेपाल के एक राजनीतिक दल राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी के नेता रविन्द मिश्र ने भारतीय आनलाइन अखबार से कहा कि “एक नाजुक धर्मनिरपेक्ष नेपाल भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है। यह हिंदू राजतंत्र को वापस लाने का समय है” कहकर उन्होंने अपना विचार लेख के माध्यम से व्यक्त किया। इसके साथ ही क्या “रोटी बेटी”की संबंध के आधार पर एक “भाईचारा” और “सद्भाव”के नजरिये से उन्होंने उस लेख द्वारा चर्चा करने की कोशश की है। मुझे लगता है इस विषय पर बहस जरूरी है। 2018 में नेपाल के एक बहुत बड़े वामपंथी नेता के.पी. शर्मा ओली ने राष्ट्रीयता के सवालों को उठाकर चुनाव जीत लिया। लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता में आने के बाद वह कोई विशेष कदम नेपाल की राष्ट्रीयता को सशक्त बनाने एवं अर्थतन्त्र को विस्तार देने के लिए नहीं उठा पाए।
नेपाल में भारत और चीन के अलावा पश्चिमी देश भी क्रियाशील हैं। नेपाल एक “स्माल स्टेट”के तौर पर नेपाल को तीन शक्तियों को “संतुलन”में रखने के लिए “बाध्य”है। अब प्रश्न यह है कि क्या हम हिमालयी राज्य के रूप में भारत से अपनी “साझा सभ्यता” और “राजनीतिक सार्वभौमसत्ता” के बीच का संतुलन निभा रहे हैं? अपने आप से यह प्रश्न करना जरुरी है। भारत को लगता है कि नेपाल, इन दिनों उसे उतना महत्व नहीं दे रहा है। नेपाल और भारत के संबंध जनस्तर पर सदियों से स्वतंत्र रुप से चल रहे हैं। केवल राजनीतिक तनाव है जिसे हम दोनों देशों के बुद्धिजीवी और नेताओं को बैठकर हल करना चाहिए। भारत, नेपाल में आर्थिक सहायता 1954 से प्रदान कर रहा है। परंतु भारत नेपाल के नेताओं की तरह, “डेलीवरी”में कुशलता दिखाने में जटिलताएं हैं। सवाल यह भी है कि 1950 की शांति एवं मैत्री संधि को लेकर नेपाल में एक नकारात्मकता कायम है। जहां तक हम इस संधि को एक उदारवाद की नजर से देखें, तो यह एक “खुले समाज” का अनुपम उदाहरण है।
भारत की ताकत
आज भारत विश्व की 5 वीं आर्थिक शक्ति है और निकट भविष्य में वह तीसरी आर्थिक ताकत बन जाएगा। इसलिए बांग्लादेश भी भारत–बांग्लादेश सीमा को नेपाल जैसे ही खुला करने की मांग कर रहे हैं। आज के समय में पड़ोसी देश भारत से आर्थिक लाभ उठाना चाहते हैं। भारत के प्रति नेपाली मानसिकता यह है कि वह भारत को “बाहुबली” का दर्जा देता है। परस्पर समझ-बूझ से ही नेपाल–भारत संबंधों को हिमालय की तरह उच्च एवं अटल बनाने का लक्ष्य पूरा हो सकता है ।
(लेखक मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान, नई दिल्ली में विजिटिंग फेलो हैं। ये उनके निजी विचार हैं। )




















