आस्था भट्टाचार्य
नई दिल्ली। श्रीलंका ने चीन-पाकिस्तान की कंपनियों के समूह को दिया एक एलएनजी प्रोजेक्ट वापस ले लिया है। अब ये भारतीय कंपनी को दिया जाएगा। सरकार ने पिछले साल अगस्त में ये प्रोजेक्ट इंटरनेशनल बिडिंग प्रोसेस के तहत चीन-पाकिस्तान एग्रो कंसोर्टियम को दिया था। सूत्रों के अनुसार आर्थिक तंगहाली से परेशान श्रीलंका ने बिजली उत्पादन की लागत को कम करने के लिए इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। इसके तहत एलएनजी के जरिए बिजली बनाई जानी है।
ऊर्जा मिनिस्टर कंचना विजसेकेरा ने समझौता रद करने के लिए एक कैबिनेट पेपर दाखिल किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत ने चीन-पाकिस्तान को दिए गए इस प्रोजेक्ट पर कड़ी नाराजगी दर्ज कराई थी। इससे प्रोजेक्ट शुरू करने में देरी भी हुई। रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका का ऊर्जा मंत्रालय एलएनजी प्रोजेक्ट भारत की पैट्रोनेट लिमिटेड कंपनी को देना चाह रहा है।
हालांकि, कंपनी के पास फ्लोटिंग स्टोरेज और रिगैसिफिकेशन यूनिट से जुड़े कामों में अनुभव की कमी के चलते फिलहाल ऐसा नहीं हो पा रहा है। श्रीलंका सरकार का कहना है कि अगर वो कंपनी देश की कोई मदद करेगी तो वो उसे टेंडर देने के बारे में सोच सकते हैं।
श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे पिछले महीने ही भारत आए थे। इसके बाद ही चीन-पाक से टेंडर लेकर भारत को देने का फैसला लिया गया है। दरअसल भारत और चीन के बीच साउथ एशियाई देशों के बीच असर बढ़ाने की लड़ाई है। चीन ने श्रीलंका में इंफ्रास्ट्रकचर से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स शुरू किए लेकिन उसे कर्ज के जाल में भी फंसा लिया। श्रीलंका के कुल विदेशी कर्ज में चीन का हिस्सा सबसे ज्यादा है। हालात ये हो गए थे कि श्रीलंका को अपना हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के लिए चीन को सौंपना पड़ा। अब श्रीलंका चीन के बुने कर्ज के जाल से निकलना चाहता है। इसके लिए वो भारत पर निर्भर है। वहीं, भारत हिंद महासागर में चीन के असर को कम करने के लिए श्रीलंका की आर्थिक मदद कर रहा है।
आर्थिक तंगी के बाद पहली भारत यात्रा
पिछले साल श्रीलंका में सिविल वॉर जैसे हालात बन गए थे और जनता ने राजपक्षे की सरकार को विद्रोह कर उखाड़ फेंका था। इसके बाद रानिल विक्रमसिंघे ने देश की कमान संभाली थी। दरअसल, रानिल सिर्फ गोटाबाया राजपक्षे का बचा हुआ टेन्योर पूरा करने तक ही राष्ट्रपति रहेंगे। यह कार्यकाल सितंबर 2024 तक है।
भारत दौरे से पहले राष्ट्रपति रानिल विक्रमसंघे ने कहा था कि श्रीलंका भारतीय रुपए का भी उतना ही इस्तेमाल होते देखना चाहता है जितना अमेरिकी डॉलर का होता है। उन्होंने कहा था अगर रुपए का इस्तेमाल कॉमन करेंसी के रूप में होगा तो इससे हमें कोई ऐतराज नहीं है। हमें ये देखना पड़ेगा कि इसके बाद हमें क्या जरूरी बदलाव करने होंगे।
विक्रमसिंघे ने कहा था- जैसे जापान, कोरिया और चीन सहित पूर्वी एशिया के देशों में 75 साल पहले बड़े पैमाने पर विकास हुआ, वैसे ही अब भारत और हिन्द महासागर के क्षेत्र की बारी है। दुनिया विकसित हो रही है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत में भी तेजी से विकास हो रहा है। श्रीलंका के राष्ट्रपति का यह बयान कोलंबो मंर इंडियन सीईओ फोरम को संबोधित करते हुए आया था।