ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी को तड़ीपार घोषित करने वाली अथॉरिटी को नसीहत दी है। कोर्ट ने कहा है कि आरोपी के खिलाफ सिर्फ अपराधों के दर्ज होने से तड़ीपार करने का आदेश अपने आप न्यायसंगत नहीं हो जाता है। तड़ीपार घोषित करने का कोई भी आदेश न्यायसंगत आधार पर होना चाहिए। कानून की स्थापित स्थिति के मुताबिक ऐसे आदेश जारी करते समय वैधानिक प्रावधानों का सख्ती से पालन करना जरूरी है। कोर्ट ने यह फैसला चोरी के मामले में आरोपी एक शख्स को 18 माह के लिए तड़ीपार करने के आदेश को रद करते हुए सुनाया है।
विभागीय आयुक्त से नहीं मिली राहत
आरोपी को मुंबई शहर, मुंबई उपनगर और ठाणे जिले से डेढ़ साल के लिए तड़ीपार किया गया था। अक्टूबर 2023 के तड़ीपार करने से जुड़े आदेश को आरोपी ने विभागीय आयुक्त (कोकण डिवीजन) के पास चुनौती दी थी। जहां से उसे राहत नहीं मिली। इसलिए आरोपी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
जीविका पर पड़ता है विपरीत असर
जस्टिस आर.एन लड्ढा ने याचिका पर सुनवाई के बाद कहा कि तड़ीपार करना एक ऐसा उपाय है, जिसके तहत व्यक्ति को अपने घर और परिवेश से जबरन दूर किया जाता है। इसका उसकी जीविका पर विपरीत असर पड़ता है। इसलिए तड़ीपार करने का आदेश न्यायसंगत आधार पर होना जरूरी है।
जस्टिस लड्ढा ने कहा कि तड़ीपार करना कोई दंडात्मक उपाय नहीं है। इसका उद्देश्य व्यक्तियों को आपराधिक गतिविधियों के लिए अनकूल माहौल से दूर करना है। सबसे महत्वपूर्ण तड़ीपार की कार्रवाई और एक्शन की जरूरत के बीच सीधा संबंध होना जरूरी है। मौजूदा मामले में तड़ीपार घोषित करने और अपराध के बीच कोई लिंक नजर नहीं आता है।