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लोकतंत्र के मंदिर का अपमान अक्षम्य

by Blitzindiamedia
December 22, 2023
in दृष्टिकोण
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Insulting the temple of democracy is unforgivable

deepakअब से 22 साल पहले हुए ‘लोकतंत्र का सर्वोच्च मंदिर’ कही जाने वाली संसद पर हमले की बरसी के दिन ही एक बार फिर लोकसभा में हुए स्मोक अटैक से न केवल संसद सदस्य बल्कि पूरा राष्ट्र स्तब्ध और अवाक है। लोकसभा की दर्शक दीर्घा से दो युवकों के सदन में कूदने और नारे लगाते हुए जूतों में छिपा कर लाई गई रंगीन गैस फैलाने से मची अफरातफरी को पूरे देश ने देखा। 2001 के आतंकी हमले के बाद संसद की सुरक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन किया गया था लेकिन इन युवकों ने संसद की आंतरिक सुरक्षा की जिस तरह धज्जियां उड़ाईं, वह एक अत्यंत गंभीर एवं शोचनीय विषय है। संसद किसी भी देश के सम्मान, गौरव और गरिमा की प्रतीक होती है। इस पर किया गया हमला अथवा उसका किसी भी प्रकार से किया गया अपमान देश की अस्मिता और गौरव को नीचा दिखाने का कृत्य है। यह किसी भी श्रेणी से क्षम्य नहीं है; चाहे यह कृत्य किसी ने भी किया हो।

मुद्दा अथवा शिकायत कोई भी हो; चाहे न हो, किसी भी दशा में संसद में किए गए अशोभनीय कार्य के लिए कैसा भी तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता। साथ ही यह सुरक्षा तंत्र में हुई बहुत बड़ी चूक का भी एक गम्भीर मामला है। जिन पर इसकी सुरक्षा का जिम्मा था, उनका भी सिर्फ निलंबन या बर्खास्तगी कर देने मात्र से बात नहीं बनने वाली। यह एक चिंतनीय विषय इसलिए भी है कि क्यों हमारे सुरक्षाकर्मी उतने मुस्तैद नहीं निकले? उनकी इस ढिलाई की वजह से राष्ट्र ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की सुरक्षा प्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

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कई स्तरों वाली सुरक्षा के पूरे तंत्र को भेदकर कोई स्मोक स्प्रे कैसे ले गया; यह अपने आप में अनेक प्रश्न भी खड़े करता है। जो कुछ भी इन युवाओं ने किया, वे निश्चित रूप से शहीद-ए-आजम भगत सिंह जैसी छवि नहीं बना पाएंगे। इसकी मुख्य वजह यह है कि लोकतंत्र में इस प्रकार की कैसी भी अराजकता; अपराध क्षम्यता की श्रेणी में नहीं आ सकती। यह हादसा सबक लेने के लिए पर्याप्त है। इसी के साथ यह जिम्मेदारी भी निश्चित करना अनिवार्य है कि सुरक्षा तंत्र में चूक क्यों और किस तरह से हुई। सांसदों को भी यह सीख लेने की जरूरत है कि वे सोच-समझ कर ही विजिटर पास जारी करें।

अपनी हताशा को प्रदर्शित करने के लिए या युवाओं में व्यवस्था के प्रति आक्रोश को व्यक्त करने के लिए और सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्होंने जो हंगामा खड़ा किया, उसे किसी भी दृष्टि से उचित करार नहीं दिया जा सकता।

अब संसद की सुरक्षा व्यवस्था के संबंध में नए सिरे से हर पहलू पर समीक्षा एवं मंथन करने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इस तरह का कोई दूसरा मामला न हो। खास तौर पर तब, जब यह माना जा रहा था कि नए संसद भवन की सुरक्षा अभेद्य और अचूक है। हर दल के सांसदों ने घटना को लेकर सरकार को घेरने का प्रयास किया। हालांकि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सांसदों को आश्वस्त किया कि आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। उनके इस आश्वासन के बावजूद लोकसभा और राज्यसभा के विपक्षी सांसद इस विषय पर अलग से बहस की मांग करने लगे। अनेक सांसदों को इस व्यवहार पर पूरे सत्र के लिए निलंबित भी कर दिया गया। दरअसल इस मुद्दे पर सभी को राजनीति से ऊपर उठ कर मंथन करना होगा। तभी कोई अचूक प्रणाली तैयार की जा सकती है।

चिंताजनक और दुखद केवल यह था कि विपक्ष की कुछ आवाजें जहां एक ओर सुरक्षा व्यवस्था में चूक की निंदा कर रही थीं तो वहीं दूसरी ओर संसद भवन में उपद्रव मचाने वालों के इरादों का समर्थन करती भी दिख रही थीं। अब तक की जांच में ऐसा कुछ भी सामने नहीं आ पाया है जिससे पकड़े गए लोगों का संबंध किसी देश विरोधी या आतंकवादी संगठन से जोड़़ा जा सके। इन व्यक्तियों द्वारा जो नारे लगाए गए थे; ये कुछ इस तरह के थे जो प्रायः विपक्षी खेमे से उठते रहते हैं।

इसीलिए विपक्ष ने शायद इन्हें बेरोजगारी से जोड़कर कह दिया कि संसद में अफरातफरी फैलाने वालों ने देश के नौजवानों में व्याप्त विक्षोभ को संसद में इस तरह से दर्शाने का प्रयास किया। किंतु विपक्ष का यह विचार वस्तुतः बहुत घातक है। हमें सदैव यह बात याद रखनी चाहिए कि संसद भवन, मात्र एक ऐसा भवन नहीं है बल्कि भारतीय लोकतंत्र की शान का प्रतीक चिन्ह है जिसमें कोई भी आवाज मर्यादाओं का पालन करते हुए ही उठाई जा सकती है‚।

संसद की सुरक्षा में सेंध लगाने वाले चारों आरोपियों ने संसद के बाहर और अन्दर घटना को अंजाम देने से पहले रेकी की थी। चारों आरोपी सोशल मीडिया पर भगत सिंह फैन क्लब नाम के एक पेज से जुड़े एवं बेरोजगारी से त्रस्त बताए जाते हैं। महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। आज अगर वह होते तो शायद इन चारों की इस क्षुद्र हरकत के लिए उन्हें कभी माफ नहीं करते। इन चारों के परिवार वालों को भी यह समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। अपनी हताशा को प्रदर्शित करने के लिए या युवाओं में व्यवस्था के प्रति आक्रोश को व्यक्त करने के लिए और सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए जो उन्होंने हंगामा खड़ा किया, उसे किसी भी दृष्टि से उचित करार नहीं दिया जा सकता।

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