ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। देश की जनता ने 18वीं लोकसभा के लिए जनादेश सुना दिया है। तथ्यात्मक रूप से इस लोकसभा के स्वरूप पर नजर डालें, तो सबसे पहला तथ्य यह सामने आता है कि 543 में से 536 सांसद 41 पार्टियों से संबंध रखते हैं, जबकि सात निर्दलीय के तौर पर लोकसभा के लिए चुने गए हैं। शीर्ष 10 पार्टियों के हिस्से में 479 सांसद आए हैं, जबकि 31 दलों के सिर्फ 57 उम्मीदवार ही जीत सके हैं। 543 में ये 280 ऐसे हैं, जो पहली बार संसद पहुंच रहे हैं। 116 दूसरी बार, 74 तीसरी बार, 35 चौथी, 19 पांचवीं, 10 छठी, सात सातवीं और एक सांसद आठवीं बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं। नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्यों में से 16 ऐसे हैं, जो पहले से संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं, जबकि 262 पहले भी लोकसभा का हिस्सा रहे हैं। यानी 40 फीसदी सांसद फिर से चुने गए हैं।
एक सांसद दो सीट
नवविर्वाचित सांसदों में सिर्फ एक सांसद है, जिसे दो सीटों पर जीत मिली है। आठ सांसदों को दूसरे संसदीय क्षेत्र से जीत मिली है। नौ सदस्य ऐसे हैं, जो पार्टी बदलकर संसद पहुंच रहे हैं, जबकि आठ ऐसे हैं, जो अपनी पार्टी को तोड़कर नई पार्टी से सांसद बने हैं। वहीं, सरकार के नजरिये से देखें, तो भाजपा के 53 मंत्रियों ने चुनाव लड़ा, जिनमें से 35 चुनाव जीते हैं और 18 हारे हैं।
78 प्रतिशत सांसद स्नातक या ऊपर की पढ़ाई वाले
इस बार 78 फीसदी सांसदों ने स्नातक या इससे ऊपर पढ़ाई की है। पांच फीसदी को डॉक्टरेट की उपाधि हासिल है। 17वीं लोकसभा में करीब 27 फीसदी सांसद कभी कॉलेज नहीं गए थे, जबकि इस बार सिर्फ 22 फीसदी ऐसे सांसद हैं। 48 फीसदी सांसद समाज सेवी, 37 फीसदी किसान, 32 फीसदी व्यापारी, सात फीसदी कानूनविद्, चार फीसदी चिकित्सक, तीन फीसदी कलाकार, तीन फीसदी शिक्षक और दो फीसदी सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हैं।
आठ बार संसद पहुंचने वाले इकलौते सदस्य वीरेंद्र खटीक
इस बार लोकसभा पहुंचने वालों में सबसे अनुभवी सदस्य मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ के भाजपा सांसद वीरेंद्र कुमार खटीक हैं। वह लगातार आठवीं बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले इस बार एक मात्र सांसद हैं। मध्य प्रदेश में इससे पहले सुमित्रा महाजन इंदौर से आठ बार जीत चुकी हैं। हालांकि, राज्य से लोकसभा के लिए सर्वाधिक बार चुने जाने का रिकॉर्ड कांग्रेसी दिग्गज कमलनाथ का है। वह नौ बार चुने गए थे।
सात पार्टियां ऐसी, जिनके 10 या ज्यादा सांसद
सिर्फ सात पार्टियां ऐसी हैं, जिनके 10 या इससे ज्यादा सांसद हैं। इन सात पार्टियों के हिस्से में 455 सांसद हैं, जबकि शेष 34 पार्टियों के हिस्से में 81 सीटें आई हैं। 17 पार्टियां ऐसी हैं, जिनके सिर्फ एक-एक सदस्य ही चुनाव जीते हैं।
दस शीर्ष पार्टियां
शीर्ष 10 पार्टियों में भाजपा के 240, कांग्रेस के 99, समाजवादी पार्टी के 37, तृणमूल कांग्रेस के 29, द्रविड़ मुनेत्र कषगम के 22, तेलुगू देशम पार्टी के 16, जनता दल यूनाइटेड के 12, शिवसेना-यूबीटी के नौ, एनसीपी-एसपी के आठ, शिवसेना के सात उम्मीदवार चुनाव जीते हैं।
इन दलों के सदस्यों की संख्या 479 है। इनमें 204 विपक्षी गठबंधन इंडिया के हैं, जबकि 275 एनडीए के घटक दल हैं।
11 फीसदी सांसदों की उम्र 40 से कम
18वीं लोकसभा के लिए चुने गए सांसदों की औसत उम्र 56 वर्ष है, जबकि 2019 में चुनी गई 17वीं लोकसभा के सांसदों की औसत उम्र 59 वर्ष थी। सपा के पुष्पेंद्र सरोज और प्रिया सरोज 25-25 की उम्र में सबसे युवा सांसदों में शामिल हैं जबकि द्रमुक के 82 वर्षीय टीआर वालू सबसे उम्रदराज हैं।
हालांकि, सिर्फ 11 फीसदी सांसद ही ऐसे हैं, जो 40 वर्ष या इससे कम उम्र के हैं। 38 फीसदी 41 से 55 वर्ष की आयु के हैं। 52 फीसदी 55 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं। इस बार तीन सांसद हैं, जिनकी उम्र 25 वर्ष है, जो संसद के लिए चुने जाने की न्यूनतम आयु है।
16 फीसदी महिला सांसद 40 साल से कम आयु की
इस बार चुनी गई 16 फीसदी महिला सांसद 40 वर्ष से कम उम्र की हैं। 30 (41 फीसदी) फिर से लोकसभा के लिए चुनी गई हैं। इस बार 74 महिला प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। 2019 में 17वीं लोकसभा में यह संख्या 78 थीं। पिछली लोकसभा ने महिला आरक्षण का जो कानून बनाया है, उसके हिसाब से 33 फीसदी यानी करीब 180 सीटें महिलाओं को मिलनी चाहिए, लेकिन फिलहाल 14 फीसदी सीटें ही महिलाओं को मिली हैं।