टिश सत्ता के शीर्ष पर एक भारतवंशी का काबिज होना निश्चित तौर पर भारत के लिए भी गर्व की बात है लेकिन यह पहला अवसर नहीं है जब किसी देश की कमान किसी भारतवंशी के हाथ में आई हो। इसके पहले भी अनेक ऐसे देश हैं जहां भारतवंशी सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे अथवा वर्तमान में भी सर्वोच्च पद पर काबिज हैं। सुनक का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना इसलिए अहम है क्योंकि ब्रिटेन ने भारत पर 200 वर्ष तक राज किया और आज समय ऐसा बदला कि एक भारतवंशी ही ब्रिटेन का शासक और उसका भाग्यविधाता है।
यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने के बाद ऋषि सुनक कंजर्वेटिव पार्टी के चौथे नेता हैं जिनको देश की कमान मिली है। ‘ब्रेग्जिट’ ने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को खासी चोट पहुंचाई है। रही-सही कसर पूर्व प्रधानमंत्री लिज ट्रस की आर्थिक नीतियों ने पूरी कर दी है जिसके कारण उनको अपना पद तक छोड़ना पड़ा। ऐसे में, स्वाभाविक ही सुनक की चुनौती महज ब्रिटेन की आर्थिकी को संभालना ही नहीं है बल्कि उनकी पहली प्राथमिकता ब्रिटेन की डूबती अर्थव्यवस्था को उबारना भी है। अभी आलम यह है कि ब्रिटेन का आयात बिल बढ़ रहा है और निर्यात से उसे पूर्व की तरफ फायदा भी नहीं मिल रहा। ब्रिटिश पाउंड भी तेजी से गिरा है। इसके अलावा ब्रिटेन का राजनीतिक माहौल भी बहुत स्थिर अथवा अनुकूल नहीं है।
वस्तुत: वह जिस कंजर्वेटिव पार्टी के नेता बने हैं, उसकी फूट भी इन दिनों सतह पर है। इसी मनमुटाव का नतीजा है कि पिछले तीन वर्ष में टेरेसा मे, बोरिस जॉनसन, लिज ट्रस और अब ऋषि सुनक ‘टोरी पार्टी के मुखिया चुने गए हैं। चूंकि पार्टी के अंदर राजनीतिक रूप से एका नहीं है, इसलिए देश की सियासत में भी उथल-पुथल कायम है। यही वजह है कि सुनक ने जब प्रधानमंत्री पद के लिए अपना भाषण दिया तो उन्होंने एकता और स्थायित्व पर सर्वाधिक जोर दिया। राजनीतिक गलियारों में तो विश्लेषणकर्ता अभी से ही इस बात के लिए गुणा-भाग करने लगे हैं कि आखिरकार वह किस तरह से पार्टी के असंतोष को खत्म करते हुए सभी टोरियों में एकराय एवं एकजुटता कायम कर सकेंगे।
सुनक अन्य मोर्चों पर अगर आगे बढ़ना चाहते हैं तो उन्हें सर्वप्रथम इन दोनों चुनौतियों को पार करनाहेगा। उसके बाद ही की वह आगे की सोच पाएंगे। सुनक के सत्तासीन होने का खास असर भारत और ब्रिटेन के आपसी रिश्ते पर पड़ सकता है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में बोरिस जॉनसन जब बीते मई माह में भारत आए थे, तब उन्होंने दिवाली तक दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता होने की उम्मीद जताई थी। इस दिशा में ठीक-ठाक प्रगति भी शुरू हुई लेकिन पिछले दिनों यह कवायद ठंडे बस्ते में जाती दिखी है। भारत इस समझौते का पक्षधर है और यह संधि ब्रिटेन के हित में भी है। लिहाजा, उम्मीद यही है कि ऋषि सुनक इस समझौते की राह की अड़चनों को जल्द दूर करेंगे।
दोनों देशों के बीच की वीजा नीति भी ऐसी ही एक अन्य बाधा है, जिस पर सुनक को खास ध्यान देना होगा। इसके दो पहलू हैं। पहला उन भारतीयों से जुड़ा है, जो ब्रिटेन आते-जाते रहते हैं और दूसरा, उन छात्रों से, जो ब्रिटेन पढ़ने के लिए जाते हैं। ब्रिटेन जाने वाले भारतीयों को आसानी से वीजा नहीं मिल पाता और कमोबेश ऐसी ही शिकायत भारतीय छात्रों की है, जो काफी तादाद में वहां जाते हैं। इन छात्रों से ब्रिटेन को अच्छी खासी रकम तो मिलती है, लेकिन भारतीय छात्रों की शिकायत है कि उनको पढ़ाई खत्म करने के बाद जो कार्य संबंधी वीजा दिया जाता है, उसकी मीयाद महज दो साल होती है। वे इसमें बढ़ोतरी चाहते हैं। लिहाजा, हमारी अपेक्षा भारतीयों के सुगम आवागमन के साथ-साथ भारत के छात्रों के लिए ब्रिटेन के वीजा नियम में उदारता की है। चूंकि ब्रिटेन को विशेषकर ‘ब्रेग्जिट’ के बाद मुक्त व्यापार समझौते की सख्त जरूरत है, इसलिए माना जा रहा है कि वह अपनी वीजा नीति को लेकर गंभीर होगा।
यह उम्मीद इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि बतौर भारतवंशी ऋषि सुनक ब्रिटेन में रहने वाले भारतीयों की इस समस्या से बखूबी वाकिफ होंगे। सुनक की जड़ें अविभाजित भारत से जुड़ी हैं। वे धर्मनिष्ठ हिंदू हैं। इस तरह औपनिवेशिक सत्ता के बरक्स एक भारतीय मूल के व्यक्ति का ब्रिटिश हुकूमत के शीर्ष पर पहुंचना समय के पलटने के रूप में भी देखा जा रहा है। अमेरिका में कमला हैरिस उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचीं तब भी ऐसा ही गर्व अनुभव किया गया था। सुनक से भारत की उम्मीदें सहज ही जुड़ी हुई हैं। मगर ब्रिटेन की सुनक से उम्मीदें दूसरी हैं। वहां के सांसदों ने उनमें एक ऐसे कुशल प्रशासक के गुण देखे हैं, जो एकता और स्थायित्व की दिशा में कारगर साबित हो सकता है। लिज ट्रस पैंतालीस दिनों में ही वहां की चरमरा चुकी अर्थव्यवस्था को संभालने से हार मान बैठीं।
दरअसल, इस वक्त ब्रिटेन अर्थव्यवस्था के मामले में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। महंगाई वहां चरम पर पहुंच चुकी है और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से ऊर्जा मामलों में उसे अपनी जरूरतें पूरी करना मुश्किल साबित हो रहा है। बिजली के दाम आम लोगों की क्षमता से बाहर निकल चुके हैं। राजनीतिक और सुरक्षा की बात करें, तो दोनों देशों के आपसी रिश्ते काफी अच्छे हैं। ब्रिटेन हिंद-प्रशांत को लेकर नई नीति बना रहा है। चूंकि हिंद-प्रशांत के क्षेत्र में भारत का खासा महत्व है और हम क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान का गुट) के भी सदस्य हैं, इसलिए उम्मीद है कि सुनक के कार्यकाल में भारत और ब्रिटेन के द्विपक्षीय रिश्तों में काफी ज्यादा गरमाहट आएगी। सैन्य व सामरिक संबंधों के लिहाज से भी सुनक के प्रधानमंत्री बनने का भारत को फायदा मिल सकता है। आतंकवाद को रोकने की दिशा में दोनों देश संजीदा जरूर हैं, लेकिन ब्रिटेन में कई ऐसे गुट हैं, जो कट्टरपंथ और आतंकवाद को खाद-पानी देते रहते हैं। खालिस्तानी गुटों का भी वहां अच्छा-खासा असर है और कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की प्रभाव वाली जमात की भी वहां ठीक-ठाक संख्या है। इन पर रोक लगाने के लिए भारत और ब्रिटेन के बीच मजबूत सहयोग की दरकार है। आशा की जानी चाहिए कि सुनक इस दिशा में तत्पर होंगे और ब्रिटेन तथा भारत के संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाएंगे।