दीपक द्विवेदी
देश के नेता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का जो सपना देखा है, वह सत्ता और विपक्ष के रचनात्मक रवैये के बिना पूरा होना संभव नहीं है।
गत 24 जून को प्रारंभ हुआ 18वीं लोकसभा का पहला सत्र गत 3 जुलाई को समाप्त हो गया। सत्र के प्रारंभ होने से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो संबोधन किया था, वह 2019 के उनके संबोधन से काफी अलग था। अपने संबोधन में पीएम मोदी ने इस बार विपक्ष के लिए बहुत अधिक कुछ नहीं बोला। 2024 की लोकसभा में 2014 और 2019 की अपेक्षा विपक्ष काफी मजबूत स्थिति में है क्योंकि उसके गठबंधन को 234 सीटें मिली हैं और कांग्रेस के राहुल गांधी सदन में विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए के नेता हैं जिनके तेवर आक्रामक भी नजर आ रहे हैं। विपक्ष का आक्रामक होना संसदीय लोकतंत्र के लिए फलदायी है पर उसे रचनात्मक भी होना पड़ेगा।
एक खास बात और यह रही कि सत्र के शुरू होने से पहले ही लोकसभा अध्यक्ष के पद को लेकर सत्ता व विपक्ष के बीच काफी तनातनी दिखी। विपक्ष चाहता था कि लोकसभा उपाध्यक्ष का पद उसे मिले तो वह अध्यक्ष पद के उम्मीदवार को समर्थन देने को तैयार है अन्यथा विपक्ष अपना प्रत्याशी खड़ा करेगा। परंपरानुसार प्राय: लोकसभा अध्यक्ष सत्ता व विपक्ष के बीच सहमति से निर्विरोध ही चुना जाता है और बहुत कम ऐसे मौके आए हैं जब चुनाव कराना पड़े। इस बार सहमति नहीं बनी और राजस्थान की कोटा लोकसभा सीट से लगातार तीन बार सांसद बनने वाले एवं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेतृत्व की पहली पसंद बन चुके ओम बिरला ध्वनिमत से लोकसभा अध्यक्ष चुन लिए गए। विपक्ष के प्रत्याशी के सुरेश को मुहं की खानी पड़ी क्योंकि उसके पास अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या बल नहीं था।
यहां इस बात का भी जिक्र करना जरूरी हो जाता है कि पीएम मोदी ने सत्र प्रारंभ होने के पूर्व ही अपने संबोधन में यह भी कहा था कि सरकार चलाने के लिए बहुमत जरूरी होता है लेकिन देश को चलाने के लिए सहमति जरूरी होती है। इसलिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानि कि एनडीए का यह निरंतर प्रयास रहेगा कि हर किसी की सहमति के साथ, हर किसी को साथ लेकर मां भारती की सेवा करें। पीएम मोदी ने कहा था कि हम सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। सबको साथ लेकर संविधान की मर्यादा का पालन करके निर्णयों को गति देना चाहते हैं। पिछले 10 वर्षों में हमने इस परंपरा को लेकर चलने का प्रयास किया है। हालांकि लगता है कि विपक्ष शायद पीएम मोदी के इस संदेश के मर्म को समझ नहीं पाया।
लोकसभा के इस विशेष सत्र में तमाम मुद्दों के साथ सेंगोल भी एक बार फिर चर्चा में आया है। समाजवादी पार्टी ने संसद भवन में सेंगोल को हटाकर उसके स्थान पर संविधान रखने की मांग की है और एक चिट्ठी लिखकर संसद भवन से सेंगोल को हटाने की मांग की है जिसे लेकर अब बीजेपी ने कड़ा विरोध भी जताया एवं कहा कि सेंगोल राष्ट्र का प्रतीक है। सेंगोल को स्थापित किया गया था, उसको अब कोई नहीं हटा सकता। राज्यसभा में तो विपक्ष के नेता ही सदन के कूप तक चले आए जिसे असंसदीय आचरण माना गया। कई मौके तो ऐसे भी आए जब लोकसभा अध्यक्ष को नाराजगी जतानी पड़ी।
लोकसभा में अध्यक्ष को लेकर जब सवाल उठाए गए तो केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने अपने बयान में बिना नाम लिए राहुल गांधी की उस मांग की ओर इशारा किया जिसमें उन्होंने सरकार से डिप्टी स्पीकर पद की मांग की थी। साथ ही उन्होंने सपा नेता अखिलेश को भी बिना नाम लिए टारगेट किया। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को जवाब देते हुए चिराग पासवान ने निशाना साधते हुए कहा कि कई बार जब विपक्ष के द्वारा कई बातें कही जाती हैं तो मैं इतना जरूर आग्रह करूंगा कि जब एक उंगली किसी की तरफ उठाते हैं तो बाकी उंगलियां आपकी तरफ भी होती हैं। जब आप सत्ता पक्ष से किसी एक आचरण की उम्मीद रखते हैं तो वही उम्मीद हम लोग भी आपसे रखते हैं। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि जहां विपक्ष की आक्रामकता से सरकार पर अंकुश रहता है, वहां यह भी आवश्यक है कि विपक्ष सरकार के हर फैसले का विरोध करने के बजाय तार्किक आधार पर रचनात्मक एवं सकारात्मक भी नजर आए। वस्तुत: देखा जाए तो संसद का खर्च जनता के दिए हुए करों से वहन किया जाता है। हर बार सदन का बहिष्कार अथवा विरोध का रवैया सिर्फ जनता के धन व समय की बर्बादी के सिवा कुछ भी नहीं है। देश के नेता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का जो सपना देखा है, वह सत्ता और विपक्ष के सकारात्मक रवैये के बिना पूरा होना संभव नहीं है।