ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। फिजी में तीन दिवसीय विश्व हिंदी सम्मेलन में वक्ताओं ने हिंदी के महत्व, गौरवशाली उपयोगिता और विस्तार पर प्रकाश डाला। सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, ‘विश्व हिंदी सम्मेलन एक ‘महाकुंभ’ की तरह है। सभी को लगता है कि ये हिंदी का एक महाकुंभ है, जहां पूरी दुनिया से हिंदी प्रेमी आए। यह हिंदी के विषय में एक वैश्विक नेटवर्क का मंच बनेगा।’
फिजी में 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने खुलकर हिंदी और इसके प्रभाव के बारे में बताया। विदेश मंत्री ने फिजी के राष्ट्रपति का जिक्र किया। जयशंकर ने कहा, ‘फिजी के राष्ट्रपति कैटोनिवरे ने बताया कि हिंदी फिल्मों ने उन पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। उनकी पसंदीदा फिल्म शोले है।’ एस. जयशंकर ने आगे कहा, ‘फिजी के राष्ट्रपति हमेशा इस गाने को याद रखते हैं कि ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे…।” उन्होंने आगे कहा, ‘हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि किस तरह से हिंदी वैश्विक भाषा बने और इस तरह का सम्मेलन एक ऐसा मंच बने, जहां हिंदी से प्यार करने वाले लोग आपस में जुड़ सकें।’ जयशंकर ने ये भी बताया कि फिजी सरकार ने अपने यहां हिंदी के साथ-साथ तमिल व अन्य भाषाओं की शिक्षा भी शुरू करने पर सहमति दे दी है। समापन समारोह में भारत व फिजी के अनेक भाषाविद, अधिकारी व गण्यमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
भारतीयों को संबोधन
विश्व हिंदी सम्मेलन के समापन समारोह से पहले एस.जयशंकर ने फिजी में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों को भी संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि मैं पहली बार फिजी की यात्रा पर आया हूं। मुझे आश्चर्य है कि मैंने यहां आने के लिए इतना समय क्यों ले लिया। ये दिलचस्प यात्रा है और मैंने यहां से काफी कुछ सीखा है।
पटेल की मूर्ति का अनावरण
विदेश मंत्री ने आगे फिजी और भारत के द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक मजबूत करने की बात भी कही। बोले, हम सांस्कृतिक, ऐतिहासिक व अन्य सभी रिश्तों को मजबूत बनाएंगे। उन्होंने इस दौरान फिजी की राजधानी सुआ में सरदार पटेल की मूर्ति का अनावरण भी किया।
140 वर्षों से हिंदी का प्रचार
इस मौके पर फिजी के उप प्रधानमंत्री बिमन प्रसाद ने कहा कि फिजी में हिंदी, तमिल आदि शिक्षण की मांग को पूरा करने के लिए हम तैयार हैं। फिजी में हिंदी भाषा का प्रचार और प्रसार पिछले 140 वर्षों से हो रहा है। आज जब मैं अपने पूर्वजों को याद करता हूं तो वे अपने साथ रामायण, गीता तो नहीं लाए थे, लेकिन अपनी संस्कृति साथ जरूर लाए थे।