आज जब भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल एवं दृढ़ नेतृत्व में द्रुतगति से आगे बढ़ रहा है तो विश्व में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें भारत के विकास की रॉकेट गति रास नहीं आ रही है। ऐसे लोग भारतीय लोकतंत्र की नींव कमजोर करने के लिए सक्रिय हैं और चाहते हैं कि भारत जो मुकाम हासिल करना चाहता है, वहां तक वह न पहुंच सके। इसके लिए वे किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार हैं। इसी तरह के प्रयास कुछ दिन पूर्व हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के माध्यम से भी किए गए और बीबीसी ने भी भारत की सर्वोच्च संस्थाओं को आघात पहुंचाने की कोशिश की थी। इनके बाद अब अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस ने 16 फरवरी को म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में भारत की व्यवस्थाओं को कमजोर करने का इरादा रखने वाला बयान दे डाला। इस प्रकार के प्रयास देश की सरकार को कमजोर करने के लिए भी होते हैं क्योंकि राजनीतिक एवं शासकीय अस्थिरता के बीच विकास की गाड़ी कभी आगे नहीं बढ़ सकती और भारत में अपनी अपेक्षाएं पूरी करने की इच्छा रखने वाले संभवत: चाहते भी यही हैं। पर यहां यह बात भी साफ करना आवश्यक है कि वे यह नहीं जानते कि पीएम मोदी शांत और दृढ़ हैं और विरोधी हमेशा अशांत और विकल ही रहेंगे क्योंकि पीएम मोदी के रहते इस तरह के प्रयास कभी सफल नहीं हो पाएंगे।
भारत आज ब्रिटेन को पछाड़ कर विश्व में पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। पीएम मोदी उसे पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बना कर अति शीघ्र तीसरे नंबर पर लाने के अथक प्रयासों में जुटे हैं जबकि निहित स्वार्थों के कारण कुछ लोग ऐसा होने देना नहीं चाहते। शायद वे नहीं जानते कि भारत अब पहले वाला भारत नहीं रहा। वह हर ऐसे किसी भी प्रयास को नाकाम करना जानता है क्योंकि आज का भारत आत्मनिर्भर एवं सक्षम है।
यह अत्यंत शोचनीय विषय है कि एक ओर जहां अमेरिका व ब्रिटेन की सरकारें भारत के साथ संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के प्रयासों में जुटी हैं वहीं दूसरी ओर कुछ संस्थाएं व लोग ऐसे प्रयासों को पलीता लगाने में जुटे हैं। वे भारत में राजनीतिक व आर्थिक अस्थिरता लाने की कोशिशों में रत हैं ताकि भारत के विकास के रथ की गति को अवरुद्ध किया जा सके। सभी जानते हैं कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने बीबीसी के मुद्दे पर पीएम मोदी के समर्थन में बयान दिया और बीबीसी के दावों से साफ असहमति जता दी।
इसी तरह अमेरिका भी चीन के मुद्दे पर आजकल भारत के पक्ष में बयान देता नजर आता है। चीन की विस्तारवादी प्रवृत्ति के मद्देनजर क्षेत्र में बदलाव लाने के चीनी प्रयासों पर भी अमेरिका तीखी प्रतिक्रिया देता है। यही नहीं अभी-अभी अमेरिका ने एक असाधारण घटनाक्रम के तहत चीन को फटकार लगाई है। साथ ही भारत के सुदूर पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न हिस्सा बताया है। इस बात से चीन को मिर्ची लगी है। अमेरिका ने लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी पर चीन की आक्रामकता की भर्त्सना भी की। 16 फरवरी को अमेरिकी सीनेट की तरफ से एक प्रस्ताव लाया गया। इस प्रस्ताव में अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग करार दिया गया है। इस प्रस्ताव में भारत की, ‘संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता’ का समर्थन किया गया है। साथ ही चीन की निंदा भी की गई है। यह पहला मौका है जब सीनेट की तरफ से इस तरह का कोई प्रस्ताव लाकर भारत का साथ देने का वादा किया गया है। इस प्रस्ताव को पहला असाधारण कदम करार दिया जा रहा है। यह सब भारत के साथ संबंधों को और बेहतर करने के प्रयासों का अहम हिस्सा हैं जबकि हिंडनबर्ग और सोरोस जैसे लोगों के क्रियाकलाप संबंधों को बेहतर करने के कदमों को मटियामेट करने में लगे हैं। यही नहीं, भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत रिचर्ड वर्मा ने सांसदों से कहा कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध 21 वीं सदी के लिए ‘‘महत्वपूर्ण साझेदारी’’ हैं।
अमेरिका के शीर्ष सीनेटर चक शूमर ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि चीन को टक्क र देने के लिए अमेरिका और यूरोप को भारत जैसे देशों की जरूरत है। शूमर ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा, ‘हमें यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ काम करना चाहिए कि आक्रामक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सामने लोकतांत्रिक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था विघटित न हो। यह काम केवल अमेरिका और यूरोप का नहीं है। हमें भारत जैसे देशों की आवश्यकता है, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत के अंदर वह क्षमता है कि वह एशिया में रहते हुए चीन को मजबूती से टक्कर दे सकता है।’ किंतु हिंडनबर्ग और सोरोस जैसे लोग अपने देश के हितों की भी परवाह शायद नहीं करते। सोरोस के बयान की भारत में भी तीखी निंदा की गई है। न केवल सत्तारूढ़ दल बल्कि विपक्षी कांग्रेस नेताओं ने भी सोरोस को जम कर खरी-खोटी सुनाई है। सोरोस ने कहा था कि अडाणी समूह पर शेयरों में धोखाधड़ी का आरोप है और उसकी कंपनियों के शेयर ताश के पत्तों की तरह ढह गये। मोदी इस विषय पर चुप हैं, लेकिन उन्हें विदेशी निवेशकों और संसद में सवालों का जवाब देना होगा।” उन्होंने, हालांकि अपने दावों के समर्थन में कोई सबूत पेश नहीं किया। सोरोस ने अपने भाषण में कहा कि अडाणी समूह में उथल-पुथल देश में लोकतांत्रिक सुधार का दरवाजा खोल सकती है। सत्तारूढ़ भाजपा ने कहा कि सोरोस न केवल प्रधानमंत्री, बल्कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी निशाना बना रहे हैं। भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संवाददाताओं से कहा कि यह युद्ध भारत के खिलाफ शुरू किया जा रहा है और युद्ध और भारत के हितों के बीच मोदी खड़े हैं। उन्होंने कहा कि सभी को एक स्वर में उनकी टिप्पणी की निंदा करनी चाहिए। ईरानी ने आरोप लगाया कि सोरोस भारतीय लोकतंत्र को नष्ट करना चाहता है और कुछ “चुने हुए” लोगों द्वारा यहां की सरकार चलवाना चाहते हैं। उन्होंने दावा किया कि सोरोस ने भारत सहित विभिन्न देशों की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप के लिए एक अरब डॉलर से अधिक का फंड बनाया है।
चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा है कि भारत सरकार में कौन रहेगा और कौन बाहर होगा, ये भारत की जनता तय करेगी। उन्होंने कहा मुझे नहीं पता कि मोदी सरकार इतनी कमजोर है कि 92 साल के एक अमीर विदेशी नागरिक की बयानबाजी से गिराई जा सकती है। मैं अतीत में जॉर्ज सोरोस की ज्यादातर बातों से सहमत नहीं था और आज भी सहमत नहीं हूं।