ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। तीन साल पहले टोक्यो में अपने पहले ओलंपिक में पिस्टल में खराबी आने के कारण निशानेबाजी रेंज से रोते हुए निकली मनु भाकर ने जुझारूपन और जीवट की नयी परिभाषा लिखते हुए पेरिस में पदक के साथ उन सभी जख्मों पर मरहम लगाया और हर खिलाड़ी के लिये एक नजीर भी बन गईं । टोक्यो ओलंपिक के बाद कुछ दिन अवसाद में रही मनु ने करीब एक महीने तक पिस्टल नहीं उठाई लेकिन फिर उस बुरे अनुभव को ही अपनी प्रेरणा बनाया और पेरिस ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल में कांसे के साथ भारत का खाता भी खोला। वह ओलंपिक के इतिहास में भारत के लिये पदक जीतने वाली पहली महिला निशानेबाज बन गईं। कांटे के फाइनल में जब तीसरे स्थान के लिये उनके नाम का एलान हुआ तो उनके चेहरे पर सुकून की एक मुस्कान थी और एक कसक भी कि 0 . 1 अंक और होते तो पदक का रंग कुछ और होता।
मनु ने कहा, ‘‘टोक्यो के बाद मैं बहुत निराश थी और मुझे इससे उबरने में बहुत लंबा समय लगा। सच कहूं तो मैं यह नहीं बता सकती कि आज मैं कितना अच्छा महसूस कर रही हूं। मनु के यहां तक पहुंचने में उनके माता-पिता का भरपूर सपोर्ट रहा है। मनु ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा था कि उनके पेरेंट्स ने शुरू से ही उन्हें भरपूर साथ दिया है। मैं जिस खेल को खेलती थी, मेरे माता-पिता पूरे दिल से मुझे सपोर्ट करते थे। आज मैं जो कुछ भी अपने देश के लिए कर पा रही हूं, उसका पूरा श्रेय मेरे पेरेंट्स को जाता है।
अपना पूरा समय बेटी को देना चाहती थी
मनु भाकर की मां ने अपनी बेटी के करियर को संवारने के लिए सरकारी नौकरी के ऑफर को भी ठुकरा दिया था। मनु की मां ने सुमेधा भाकर ने इस बारे में बताया कि, मैं अपना पूरा समय अपनी बेटी को देना चाहती थी। मुझे सरकारी नौकरी के ऑफर आ रहे थे लेकिन मैं जानती थी नौकरी करने से पोस्टिंग दूसरी जगह हो सकती है, जिससे उसे आगे बढ़ने में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। उसके करियर को देखते हुए ही मैंने अपना पूरा समय अपनी बेटी को देने का फैसला किया था।
दादी ने बताई मनु नाम रखने की कहानी
मनु भाकर की उपलब्धि पर खुशी व्यक्त करते हुए उनकी दादी दयाकौर ने बताया कि उन्होंने झांसी की रानी के बारे में खूब सुना है और उसका बचपन का नाम भी मनु था। उसी से प्रभावित होकर उन्होंने उनका नाम मनु स्वयं रखा था। उन्होंने कहा कि उसके जन्म पर उन्होंने देसी घी का हलवा बनाकर पड़ोस में भी बांटा था। मनु भाकर के पैतृक गांव में लौटने पर वह देसी घी के लड्डू बाटेंगी।
मनु के सबसे बड़े ताऊ प्रताप शास्त्री ने कहा कि मनु ने हमेशा ही देश को गौरवान्वित किया है। उन्होंने पदक जीत कर न केवल परिवार, बल्कि गांव का नाम रोशन किया है। आज पूरे देश के अंदर गोरिया गांव को एक अलग पहचान मिली है। मनु भाकर के ताऊ बलजीत सिंह ने बताया कि मनु बचपन से ही प्रतिभावान रही हैं। वह ताइक्वांडो में भी नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेती रही हैं।