पीएम मोदी की सरकार का प्रयास है कि छठी क्लास से ही विद्यार्थी अटल टिंकरिंग लैब में जाएं और फिर कॉलेज से निकलते ही उनको इनक्यूबेशन स्टार्टअप का एक इकोसिस्टम तैयार मिले ताकि आजादी के अमृत काल में आत्म निर्भर भारत का निर्माण हो।
भारत ने पिछले कुछ सालों में विज्ञान और टेक्नीक के क्षेत्र में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपलब्धियों से खूब नाम कमाया है। भारत आज वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है। देश ने शिक्षा से लेकर टेक्नोलॉजी तक हर क्षेत्र में खूब विकास किया है। भारत में पुरुषों की वर्तमान साक्षरता दर 74.4 प्रतिशत और महिलाओं की यह दर 65.46 है जबकि 75 साल पहले यानी स्वतंत्रता से पहले यह मात्र 12 प्रतिशत थी। हमने अपने दम पर अंतरिक्ष कार्यक्रमों में सफलता हासिल की। महामारियों का उन्मूलन किया और आईटी के क्षेत्र मंट अभूतपूर्व विकास किया।
भारत में विज्ञान की परंपरा विश्व में अनादि काल से चली आ रही है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंधु घाटी के प्रमाणों से वहां के निवासियों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का मह्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी न किसी रूप में हो रहा है। प्राचीन काल में भारत में विज्ञान की सबसे बड़ी उपलब्धियों में महर्षि सुश्रुत के द्वारा खोजी गई शल्य चिकित्सा है। दुनिया आज उन्हें ‘फादर ऑफ सर्जरी’ मानती है।
मनुष्य और विज्ञान का विकास एक साथ होता है। जर्मन विचारक व समाज शास्त्री मैक्स वेबर कहते हैं कि- ‘दर्शन के बिना विज्ञान वैसा ही है जैसे एकता या संगठन के बिना कोई समूह, आत्मा के बिना शरीर, इसी प्रकार विज्ञान के बिना दर्शन ऐसा है, जैसे शरीर के बिना आत्मा।’ भारत की प्राचीनकाल की उपलब्धियों से लेकर चन्द्रयान के प्रक्षेपण तक सफलताओं का एक लम्बा इतिहास रहा है। विज्ञान के क्षेत्र में भारत अपनी अनगिनत उपलब्धियों के चलते ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2022 में 81 से 40वें स्थान पर आ गया है। अमेरिका के ‘नेशनल साइंस फाउंडेशन‘ के साइंस एंड इंजीनियरिंग इंडिकेटर्स 2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत वैज्ञानिक प्रकाशन के क्षेत्र में विश्व में तीसरे स्थान पर है। भारत ने विज्ञान के सभी क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
आज विज्ञान का स्वरूप अत्यधिक विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। आधुनिक भारत में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का नाम विशेष रूप से उल्लिखित किया जा सकता है जो ‘मिसाइल मैन’ के रूप में प्रसिद्ध हैं। इस क्षेत्र में तो उन्होंने भारत की तस्वीर ही बदल कर रख दी।
भारत में प्रौद्योगिकी और विज्ञान के विकास के विभिन्न चरण तथा उनकी उपलब्धियों की दास्तान भी लंबी-चौड़ी है। अगर यह कहा जाए कि भारतीय विज्ञान की परंपरा दुनिया की प्राचीनतम परंपरा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जिस समय यूरोप में घुमक्कड़ जातियां अपनी बस्तियां बसाना सीख रही थीं, उस समय भारत में सिंधु घाटी के लोग सुनियोजित ढंग से नगर बसा कर रहने लगे थे। उस समय तक भवन-निर्माण, धातु-विज्ञान, वस्त्र-निर्माण, परिवहन-व्यवस्था आदि उन्नत दशा में पहुंच चुके थे। फिर आर्यों के साथ भारत में विज्ञान की परंपरा और भी विकसित हो गई। इस काल में गणित, ज्योतिष, रसायन, खगोल, चिकित्सा, धातु आदि क्षेत्रों में विज्ञान ने खूब उन्नति की। इस बीच आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, बोधायन, चरक, सुश्रुत, नागार्जुन, कणाद से लेकर सवाई जयसिंह तक वैज्ञानिकों की एक लंबी परंपरा विकसित हुई।
मध्यकाल यानी मुगलों के आने के बाद भारतीय वैज्ञानिक परंपरा का विकास थोड़ा रुका परंतु प्राचीन भारतीय विज्ञान पर आधारित ग्रंथों के अरबी-फारसी में खूब अनुवाद हुए। भारतीय वैज्ञानिक परंपरा दूर देशों तक जा पहुंची और दूसरे देशों की वैज्ञानिक परंपराओं के साथ मिलकर इसने नया रूप ग्रहण किया। मुगल शासन के बाद भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान ज्ञान-विज्ञान के विविध स्रोत और संसाधन विकसित हुए।
आधुनिक युग में सबसे शक्तिशाली देश वह है जिसने अपने रक्षा क्षेत्र को मजबूत कर रखा है। स्वीडन स्थित थिंक टैंक ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट’ के अनुसार दुनिया में भारत समेत नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं। आत्मनिर्भर भारत की तीनों सेनाओं का आज कोई सानी नहीं है। रक्षा के क्षेत्र में आज हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ही प्रयोग नहीं कर रहे बल्कि दूसरे देशों को हथियारों का निर्यात भी कर रहे हैं।
चिकित्सा के क्षेत्र में भी हम अग्रणी हैं। चिर काल से कोरोना के समय तक वैश्विक स्तर पर भारत के चिकित्सा वैज्ञानिकों ने दुनिया को राह दिखा कर ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के सिद्धांत को साकार किया है। 21वीं सदी सूचनाओं का युग है और भारत के वैज्ञानिकों ने संचार के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए हैं। ऑप्टिकल फाइबर, वाईफाई अथवा 5जी, सुपर कंप्यूटर, क्वांटम कम्प्यूटिंग; सूचना-संचार का विकास, ई-प्रशासन, डिजिटल इकोनॉमी, ई-लर्निंग या मौसम पूर्वानुमान, सभी में भारत अव्वल है।
कृषि से लेकर अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत ने आज विश्व में अपना जो स्थान बनाया है, अनेक देश उसके आसपास भी नहीं हैं। देश को विकसित राष्ट्र बनाने का एकमात्र साधन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ही है। तरक्की के पैमाने का निर्धारण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है और अर्थव्यवस्था की मजबूती भी।
आधुनिक भारत के विकास में भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी का महत्वपूर्ण स्थान और योगदान है। भारत को विश्व का विज्ञान और टेक्नोलॉजी का पावर हाउस बनाने के लिए ही पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ने साइंटिफिक इंफ्रास्ट्रक्चर और पॉलिसीज में अनेक महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं ताकि आने वाले 25 सालों में देश प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक वैश्विक लीडर के तौर पर स्थापित हो सके। इसके लिए पीएम मोदी की सरकार का प्रयास है कि छठी क्लास से ही विद्यार्थी अटल टिंकरिंग लैब में जाएं और फिर कॉलेज से निकलते ही उनको इनक्यूबेशन स्टार्टअप का एक इकोसिस्टम तैयार मिले ताकि आजादी के अमृत काल में आत्म निर्भर भारत का निर्माण हो।