दीपक द्विवेदी की पीएसए डा. अजय कुमार सूद से विशेष भेंट
भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सबसे बड़ा लक्ष्य है। इसके लिए आधारभूत स्तर पर मैराथन तैयारियां पीएम व उनकी कैबिनेट कर रही है। हर क्षेत्र में सतत विकास सरकार की अनिवार्यता भी बन चुका है। विकसित राष्ट्र बनाने के सपने को साकार करने के लिए सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ विज्ञान की भी अहम भूमिका रहेगी। किस तरह विज्ञान भारत को दुनिया में सर्वोच्च शिखर पर ले जाएगा, किन सोपानों को तरजीह देनी होगी, शहरी के साथ ग्रामीण भारत की तस्वीर चमकदार कैसे बनेगी, इंफ्रास्ट्रक्चर कैसे सशक्त बनेगा, विज्ञान-तकनीक के दम पर आर्थिक मोर्चे पर गाड़ी कैसे सरपट दौड़ेगी…ऐसे अनेक सवालों को लेकर ब्लिट्ज इंडिया के समूह संपादक दीपक द्विवेदी ने भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ( पीएसए ) डा. अजय कुमार सूद के साथ दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश।
प्रश्न : देश के पहले पीएसए (प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर) अब्दुल कलाम थे, उस समय के पीएसए ऑफिस और आज के पीएसए ऑफिस में आप क्या अंतर देखते हैं ?
उत्तर : देखिए शुरुआत जैसे आपने कहा वहां से हुई, लेकिन इस समय पूरा वातावरण डिफरेंट है, क्योंकि साइंस एंड टेक्नोलॉजी एक पूरा व्हीकल बन गया है हमारी इकोनॉमिक ग्रोथ का। अब साइंस एंड टेक्नोलॉजी सिर्फ एक या दो क्षेत्र में सीमित नहीं है । वह सभी क्षेत्रों में पूरी तरह फैला हुआ है,स्ट्रेटेजिक सेक्टर में भी है। इस समय जो हमारा ऑफिस है, वह 360 डिग्री व्यू लेता है। साइंस एंड टेक्नोलॉजी हर सेक्टर में, हर मंत्रालय में अहम है। हमारा रोल यह है कि हम यह देखें कि हम देश को कैसे तैयार करें भविष्य की तकनोलोजी के लिए। कहां हमारे गैप्स हैं, उन्हें कैसे भरें। हमें समसामयिक टेक्नोलॉजी या साइंस चाहिए। एक तरह से यह सारे सेक्टर्स को कवर करती है। हमें यह देखना है कि हम कैसे 2047 तक विकसित देश बन पाएंगे। यही हमारे देश के राष्ट्रीय नेतृत्व का विजन है । हमें साइंस एंड टेक्नोलॉजी को लेकर ही आगे बढ़ना है। हमें कैसे इनोवेशन करनी है। इनोवेशन केवल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में ही नहीं, हर सेक्टर में इनोवेशन होती है। हमें देखना है कि कैसे इन सबको लेकर आगे बढ़ें। हमें अगले पांच साल की तस्वीर देखनी है कि हम किस स्टेज पर हैं। अभी जो भारत का स्थान है, वो काफी अलग हो गया है। वो काफी ऊपर बढ़ गया है। इनोवेशन इंडेक्स देखिए हम 81 से अब 41 पर आ गए हैं | क्यों आए हैं ? इसलिए आए हैं क्योंकि हमने यह जाना है कि हमारी एस एंड टी (साइंस एंड टेक्नोलॉजी) को हम कैसे ट्रांसलेशन करें। आपको फंडामेंटल नालेज चाहिए, बेसिक साइंस चाहिए जो टेक्नोलॉजी को एडवांस कर सके। |
प्रश्न : एपीजे अब्दुल कलाम के काम करने का तरीका क्या था? आपको कभी उनके साथ काम करने का मौका मिला था ?
उत्तर : मैंने उनके साथ कभी काम नहीं किया | मेरी उनसे कुछ मुलाकातें हुईं, मसलन जब का रोड मैप बना था, वह राष्ट्रपति भवन में ही तैयार हुआ था जिसमें मैंने पार्टिसिपेट किया था। एक्चुअली हमारा जो परपस है, वह यह है कि हम एक्शन प्लान कैसे बनाएं, सिर्फ पॉलिसी बनाने से काम नहीं चलने वाला। मैं आपको एक एग्जांपल देता हूं। 2019 में पीएम साइंस एंड टेक्नोलॉजी इनोवेशन एडवाइजरी काउंसिल में मैं भी मेंबर था। काउंसिल के हेड तब विजय राघवन थे। उस समय हमने प्रधानमंत्री के समक्ष क्वांटम टेक्नोलॉजी पर प्रेजेंटेशन दी थी। यह भविष्य की तकनोलोजी है,इसको हमें तैयार रखना है। आप देखिए उस समय क्वांटम टेक्नोलॉजी हाट वर्ड नहीं था, यह हाट वर्ड बना 2022 या 2023 में आके। पर हमारी पीएम स्ट्राइक में यह सोच थी जो हमने प्रेजेंट की थी कि इंडिया को क्वांटम रेडीस बनाना है। उस समय मैंने प्रेजेंट किया था कि क्वांटम टेक्नोलॉजी में हमें क्यों तैयार रहना चाहिए और यह हमारी खुशकिस्मती है कि वह प्रेजेंटेशन इस लक्ष्य के साथ तत्काल स्वीकार हो गई कि हमें तत्काल मिशन लांच करना है। मिशन थोड़ा लेट इसलिए हो गया क्योंकि कोविड आ गया था। 2020 मार्च में कोविड आ गया तो दो साल का डिले हुआ। जैसे ही कोविड काल खत्म हुआ, क्वांटम मिशन लांच कर दिया गया। इस समय डिपार्टमेंट ऑफ साइंस (डीएसटी) क्वांटम टेक्नोलॉजी पर जो विस्तार, एडवांसमेंट कर रहा है, उसमें हमारे ऑफिस का बहुत बड़ा योगदान है क्योंकि यह क्वांटम टेक्नोलॉजी मिशन सबसे लेटेस्ट है।
– हम चाहते हैं कि भारत नॉलेज इकोनॉमी का केंद्र और प्रोडक्ट नेशन बने
– हमें अगर आगे बढ़ना है तो साइंस और टेक्नोलॉजी को साथ लेकर आगे बढ़ना है
– हमें ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित करनी होगी जो उत्पादक को हानि न होने दे
प्रश्न : सामान्य शब्दों में पूछें तो आपके ऑफिस का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर : हमारा मुख्य उद्देश्य यह है कि हम भारतवर्ष में साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एसएंडटी) का हर सेक्टर में कैसे विस्तार-प्रसार करें, कैसे एसएंडटी को लेकर हम आगे सोसाइटी का बेनिफिट करें। हम चाहते हैं कि हम भारतवर्ष को नॉलेज इकॉनमी बनाएं, प्रोडक्ट नेशन बनाएं। हमारा प्रोडक्ट नेशन का लक्ष्य पाना अभी बाकी है। हम सर्विस इकॉनमी में बहुत स्ट्रांग हैं पर आगे हमें प्रोडक्ट इकॉनमी बनाना है। अब देश प्रोडक्ट इकॉनमी कैसे बनेगा, प्रोडक्ट इकॉनमी ऐसे नहीं बनता कि किसी कंट्री में टेक्नोलॉजी है आप खरीद लो और प्रोडक्ट बनाओ।
प्रश्न: ‘लास्ट माइल पर्सन’ से आपके कार्यालय के संपर्क के लिए क्या प्रक्रिया है?
उत्तर : मैं आपको एक विशिष्ट उदाहरण दूंगा ताकि यह स्पष्ट हो जाए। 10-12 साल पहले, हमने अपने पीएसए में एक नया कार्यक्रम शुरू किया था, जिसमें सात आईआईटी ने भाग लिया था, वह था ‘रूटाग’ (RUTAG)।ग्रामीण विकास के लिए ग्रामीण प्रौद्योगिकी एक्शन ग्रुप। उद्देश्य क्या था? उद्देश्य यह था कि हम आजीविका मिशन में जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जिनका हम कृषि और श्रम में विशिष्ट समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उनका उचित समाधान प्रदान करें और वित्तीय मुद्दों को भी विनियमित करें। ग्रामीण सहायता और विकास के लिए प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित किया गया। आज इसकी भारी मांग है। रूटाग, जिसका एक चरण अभी समाप्त हुआ है, उसमें हमने 59 ऐसी तकनीकों को शामिल किया है जो रूटाग तकनीक में पहचान में शामिल हैं।
प्रश्न : क्या आपको लगता है कि अब तक इस बात का कोई डेटा है कि मंथन से कितने उद्यमियों और उद्योग जगत के लोगों को फायदा हुआ है?
उत्तर : इसका डेटा हमारी वेबसाइट पर भी है लेकिन लगभग ऐसा है कि इसमें 700 या 800 लोग जुड़े हुए हैं और अगर आपकी तरह 300 ऐसे समूह पहले ही स्थापित हो चुके हैं, जिन पर काम बहुत तेजी से चल रहा है।
प्रश्न : डॉक्टर साहब, आप इस मंथन कार्यक्रम के बारे में क्या सोचते हैं जो हमारे प्रधानमंत्री के देश को एक ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य में भूमिका निभाएगा?
उत्तर : विज्ञान और प्रौद्योगिकी का वित्त पोषण केवल सरकार से नहीं है, हमें बाकी क्षेत्रों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। हमें केवल सरकार पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए। अमेरिका, साउथ अफ्रीका, जापान, सबकी प्राइवेट फंडिंग बहुत ज्यादा है, दो गुना या तीन गुना, तो अब आपने जो नया सिस्टम बनाया है उसमें हमें कुछ मदद मिलेगी, इस समय हम ज्यादा कुछ नहीं कह रहे हैं कि हमने एक उदाहरण स्थापित किया है कि हम अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं।’ हमने अभी एक नया एनआरएफ( नेशनल रिसर्च फाउंडेशन) बनाया है, आपने देखा होगा कि इसे कुछ महीने पहले शुरू किया गया था, अब हम कार्य कर रहे हैं जिसमें पीएसए के कार्यालय की बहुत भूमिका है।
प्रश्न : आप नेशनल रिसर्च फाउंडेशन में बहुत अच्छे हैं क्योंकि आमतौर पर देखा जा रहा है कि विश्वविद्यालयों और वैज्ञानिक संस्थानों में एक ही बात होती है कि हमारे पास शोध के लिए पैसे नहीं होते हैं, इसलिए जो नई प्रणाली आ रही है, उसे लेकर हर कोई बहुत उत्साहित है, फंडिंग के लिए तैयार है।
उत्तर : दो समितियां हैं, एक समिति जो सर्वोच्च गवर्निंग बोर्ड है, उसके मुखिया प्रधानमंत्री हैं, यह बहुत अनोखी है क्योंकि संपूर्ण 360 डिग्री विज़न बहुत अद्वितीय है। अगर हम देश में आरएंडडी चाहते हैं तो दो उपराष्ट्रपति होंगे जो विज्ञान मंत्री होंगे, संपत्ति और शिक्षा मंत्रालय, दोनों होंगे और जो उस समिति में सदस्य होंगे। उनमें पीएसए भी होंगे जो इसे आगे ले जाने वाले कार्यवाहक सचिव होंगे और फिर दूसरी समिति जो मिशन काउंसिल है जो वास्तव में दिन-प्रतिदिन का काम करेगी, उसकी अध्यक्षता पीएसए करेगी और इसका सीओ सीईओ रिसर्च होगा। मुख्य कार्यान्वयन एजेंसी इसमें सभी सचिव हैं, एक बड़ी अकादमी है और उद्योग के लोग हैं, पहली समिति में उद्योग के लोग भी हैं, इसलिए यह एक समग्र बात है।
प्रश्न : आपने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने के लिए भी काफी काम किया है, इसलिए हम जानना चाहेंगे कि आपने कितने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाए हैं, उसका आधार क्या है और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने से क्या उद्देश्य पूरा होता है?
उत्तर : देखिए, उत्कृष्टता केंद्र जो हमने अभी बनाया है वह मंथन के अंतर्गत है, हमारा कार्यालय आप इसे देख रहे हैं, मैं शायद स्पष्ट करना चाहता हूं, हम एक कार्यान्वयन एजेंसी नहीं हैं, हम सलाहकार निकाय और सक्षम निकाय और उत्प्रेरक हैं इसलिए हम नीतियां बनाते हैं । हम उन्हें सभी हितधारकों की मदद से सक्षम बनाते हैं और हम उत्प्रेरक कार्रवाई प्रदान करते हैं इसलिए ऐसा नहीं है कि हम इसे लागू करेंगे।
प्रश्न : सफलता की कहानी को देश में प्रसारित करने , आउटरीच करने की क्या व्यवस्था है?ताकि लोग जानें, और उनमें और अधिक उत्साह हो।
उत्तर : हां, इसमें बहुत सी बातें हैं, पहली तो यह कि अभी एक सीरीज आई है, ऑन पे स्टार्टअप। अब आप देख सकते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई , उसमें मंथन मंच से जो स्टार्टअप्स थे, उनको लिया गया और कॉम्पिटिशन हुआ और जो सफल रहा, उनके बारे में हमारे पास एक सीरियल है जिसे हमने बहुत दिलचस्प तरीके से बनाया है। इससे पता चलेगा कि हमारे ऑफिस ने क्या-क्या स्टार्टअप किए हैं, उन्हें पता रहेगा कि कौन-कौन से स्टार्टअप हैं और अब एक और बन रहा है, जिसमें हम देख रहे हैं कि कैसे हम अपनी ग्रामीण तकनीकों को कार्टून से लेकर एनीमेशन तक लाते हैं, कैसे उन्हें जनता के बीच प्रसारित करते हैं और हमारे पास महिलाओं में कई कार्यक्रम हैं। स्टेम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित में हमारे कार्यक्रम प्रकाशित हुए हैं, जिनमें पुस्तकें आई हैं।
प्रश्न : देश के स्कूलों के इनोवेशंस की बात हमेशा होती है तो देश के जो स्कूल है उनमें जो इनोवेटिव प्रोग्राम्स हैं या इनोवेटिव माइंड हैं उनको आप कैसे डेवलप कर रहे हैं?
उत्तर : देखिए, मैं उसमें आपको एक एग्जांपल के तौर पर बताता हूं। हमारा एक फ्लैगशिप प्रोग्राम है साइंटिफिक क्लस्टर, एसएनटी क्लस्टर और सिटी क्लस्टर। क्लस्टर का मतलब यह है कि जैसे पूना क्लस्टर। पूना के आसपास की जितनी एकेडमिक इंस्टिट्यूशन हैं और जो साइंटिफिक यूनिवर्सिटीज हैं, स्टार्टअप्स हैं, इंडस्ट्रीज हैं अथवा ऑर्गेनाइजेशन हैं; वह सारे मिलकर क्लस्टर बनाते हैं। हम कुछ फंडिंग इन्हें देते हैं ताकि वे शुरुआती कदम उठा सकेें। कर सकें। संबंधित क्षेत्र में उनकी जो रिलेवेंट प्रॉब्लम्स हैं, उनको दूर करते हैं। रीजन में जैसे पूना और आईआईटी मद्रास ने मिलकर पढ़ाने की एक योजना शुरू की। इसके तहत हमने यह तय किया कि स्कूल में साइंस एजुकेशन को कैसे एक्साइटमेंट बनाएं। बच्चे ऐसे ही साइंस नहीं सीखेंगे। इसलिए अनावश्यक चीजों को खत्म करते हुए हमने खेलों के जरिए बच्चों को साइंस पढ़ाने काम शुरू किया ताकि वे बिना किसी उबाऊ पाठ्यक्रम के साइंस को समझ सकें। छोटे-छोटे प्रयास ही बड़ी नींव का आधार बनते हैं। हम यह नहीं कह रहे हैं कि पूरे संसार में भारतवर्ष के लिए सिर्फ यही काफी है। यदि आप शुरुआत करें तो छोटी सी चीज को बड़ा बना सकते हैं। इस पूरे इनिशिएटिव में युवा और महिलाओं को प्रमोट करने के लिए भी हमने काम शुरू किया। महिला सशक्तिकरण पर हम सबका जोर है तो हमने कई ऐसे प्रोग्राम किए जिसमें गर्ल स्टूडेंट्स को हमने स्कॉलरशिप्स दिलवाए। इस प्राेग्राम के जरिए महिला इंटरप्रेन्योर को भी हमने मदद करके एंपावर किया। अगर आप हमारा प्लेटफार्म देखेंगे उसमें कई प्रोग्राम हैं जो महिला विशेष के लिए बने हैं।
प्रश्न : एक और सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण मुद्दा आपने मंथन से जोड़ा है वो है सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी)। अब एसडीजी के बारे में देश में केवल वही लोग जानते हैं जो लोग एसडीजी से जुड़े किसी भी मुद्दे पर काम करते हैं। इनके बारे में हमारे कई अधिकारी भी नहीं जानते हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
उत्तर : मैं आपको फिर कुछ उदाहरण देकर बताता हूं। आप जैसे जानते हैं कि एसडीजी के17 गोल्स हैं जो डिफरेंट वर्टिकल्स में आते हैं। उसमें एक वर्टिकल है हेल्थ। अगर आप पारंपरिक तरीके से देखें तो आप कहेंगे कि अच्छी हेल्थ होनी चाहिए, यह कीजिए, वह कीजिए पर जो हमारे ऑफिस ने एक बहुत इंपॉर्टेंट मिशन बनाया और जो अभी हमने शुरू किया है- वन हेल्थ वन मिशन तो मैं आपको समझाता हूं कि वन हेल्थ वन मिशन में हमने क्या किया। कोविड का जो एक्सपीरियंस हुआ अगर आप ह्यूमन हेल्थ लेते हैं और इसको आइसोलेशन में देखेंगे तो उसका सीमित प्रभाव नजर आएगा। हमें वन हेल्थ वन मिशन में ह्यूमन हेल्थ, एनिमल हेल्थ और वाइल्ड लाइफ एनवायरमेंट तीनों को मिलाकर चलना है क्योंकि जो बीमारी आती हैं उनका स्रोत अक्सर बाहरी होता है अथवा वे जानवरों से आती हैं। आप एवियन फ्लू को लीजिए वो तो किसी और से आ रही है। कोविड भी बाहर से आया था, मानव ने तो शुरू नहीं किया थ। इसीलिए इस वन हेल्थ वन मिशन में हमने कई वर्टिकल्स बनाए हैं। इसमें 11 मिनिस्ट्री शामिल हैं। 11 मिनिस्ट्री इकट्ठा मिलकर काम कर रही हैं।
प्रश्न : पिछले एक वर्ष में प्रधानमंत्री ने 2047 तक विकसित भारत की बात की है और विकसित भारत का एजेंडा प्रधानमंत्री ने अभी तक बहुत तेजी से गांव-गांव तक फैलाया है। उसकी हम लोगों को जो व्यवहारिक जानकारी है कि देश का प्रत्येक घर विकसित भारत से परिचित हो गया है, विकसित भारत की तस्वीर क्या हो और विकसित भारत सीधे एसडीजी से जुड़ा हुआ है। सस्टेनेबल डेवलपमेंट उसमें जैसे आपने सारे लेबोरेटरीज को इंटीग्रेट किया है तो विकसित भारत में 17 गोल एसडीजी के इंटीग्रेट हो गए तो एक चीज तो तय हो गई कि देश में एसडीजी के बारे में अवेयरनेस आ गई। आपका ऑफिस कुछ इस विषय में कुछ विचार कर रहा है
उत्तर : देखिए इसको हमें कई स्टेजेस में लेना पड़ेगा। जैसे जो अभी प्रोग्राम लांच हुआ उसमें सस्टेनेबल लाइफ स्टाइल कैसे बनाएं। हमारा रोल यह है कि हम रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा दें। कैसे ग्रीन हाइड्रोजन को प्रमोट करें। हम कैसे इलेक्ट्रिकल व्हीकल्स प्रमोट करें। हम कैसे न्यू बैटरी टेक्नोलॉजीज लाएं। यह सब हम सबकी लाइफ का पार्ट बनना चाहिए। अभी लिथियम आयन बैटरी हमारी लाइफ का पार्ट बन गया है। इज इट सस्टेनेबल। इसमें जो क्रिटिकल मिनरल्स हैं वह हमारे पास हैं क्या जो हमें 100 साल तक ले जाएंगे। आंसर इज नो तो उसमें हमें क्या अल्टरनेट करना है तभी हम एसडीजी के गोल्स हासिल कर पाएंगे।