दीपक द्विवेदी
भारत में सामान्य तौर पर प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं से हर वर्ष कहीं न कहीं सैकड़ों लोग मारे जाते हैं। यह सच है कि प्राकृतिक आपदाओं पर नियंत्रण करना आसान नहीं है किंतु यह बात भी समझ में नहीं आने वाली कि लगभग हर साल एक जैसी ही प्राकृतिक आपदाएं आने के बाद भी इनसे बचने की कारगर व्यवस्थाएं हम आजादी के इतने वर्ष बाद भी विकसित नहीं कर पाए हैं।
अब बात अगर मानव निर्मित आपदाओं की करें तो यह बात स्वत: ही स्पष्ट हो जाती है कि ये घटनाएं कहीं न कहीं मानव जनित घोर लापरवाही और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे निहित स्वार्थी तत्वों, अफसरों एवं नेताओं की सांठगांठ का नतीजा ही अधिक होती हैं। हाल ही में दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर के एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में भारी बारिश के दौरान पानी भर गया और सिविल सेवा की तैयारी कर रहे तीन अभ्यर्थियों की डूब कर मृत्यु हो गई। यह घटना विशुद्ध प्रशासनिक लापरवाही एवं भ्रष्ट शासन तंत्र का एक जीता जागता उदाहरण है। आखिर नियमों को ताक पर रख कर बेसमेंट में कोचिंग कैसे बन गया जहां निकास की भी समुचित व्यवस्था तक नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि दिल्ली के कोचिंग सेंटर छात्रों के लिए डेथ चैंबर बन गए हैं। कहीं आग लगती है तो कहीं पानी में डूब कर छात्रों की मौत हो रही है। हम इन कोचिंग सेंटर्स को बंद कर सकते हैं और इन्हें तब तक बंद रखेंगे, जब तक वे सुरक्षा मानक पूरे नहीं करते।
इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर में प्रशासनिक लापरवाही का एक और बड़ा नमूना खोड़ा क्षेत्र में घटी एक अन्य घटना यह भी है जिसमें एक मां और बेटे की जान सिर्फ इसलिए चली गई क्योंकि सफाई के लिए खुले नाले की बैरिकेडिंग तक नहीं की गई अथवा सावधानी बरतने के लिए कोई साइन बोर्ड तक भी वहां नहीं लगाया गया। भारी बारिश में पानी भरने से मां-बेटे को पता ही नहीं चला कि वे कब नाले में चले गए। इसके पूर्व हाल ही में दिल्ली के हवाई अड्डे पर लांज की छत भारी बारिश में टूट कर गिरने से एक टैक्सी चालक को अपनी जान गंवानी पड़ थी। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी बारिश में खंभे के खुले तार से पानी में करंट आने से एक निर्दोष महिला को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा था। इसके अलावा नवजातों के एक अस्पताल में हुए अग्निकांड को कौन भूल सकता है जिसमें अनेक नौनिहालों की जान चली गई थी।
सबसे बड़ी निराशा की बात तो यह है कि भारत में प्राय: शासन-प्रशासन की नींद तभी खुलती है जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है। ओल्ड राजेंद्र नगर के मामले में भी प्रशासन हादसे के बाद ही जागा। अब तक दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर बेसमेंट में चल रहे लगभग 13 कोचिंग सेंटरों को सील कर दिया गया है। प्रश्न यह है कि इस घटना से पूर्व दिल्ली नगर निगम क्यों सो रहा था?
यदि इस प्रकार की घटनाओं की फेहरिस्त बनाने का काम शुरू किया जाए तो यह बहुत लंबी होगी। दुख इस बात का है कि एक के बाद एक, ऐसी घटनाएं देश के किसी न किसी कोने में कहीं न कहीं घटती रहती हैं पर उन्हें रोकने के लिए आज तक कारगर तरीके अथवा ऐसे कानून नहीं बनाए गए जिनके उल्लंघन पर लोगों के मन में सजा का डर सताए। ऐसी घटनाओं में लिप्त और इन हादसों के लिए जिम्मेदार लोग जब तक छूटते रहेंगे, तब तक इस प्रकार के हादसों पर अंकुश नहीं लगने वाला।
देश में अक्सर रखरखाव में कमी और लापरवाही के कारण कभी बाढ़, कभी बारिश के पानी से जलभराव, कभी सार्वजनिक स्थलों पर करंट तो कभी यातायात के नियमों का पालन नहीं करने अथवा खाद्य पदार्थों में मिलावट की वजह से हमें बड़़े-बड़े हादसों से रूबरू होना पड़ता है। ऐसा लगता है कि न तो इस देश का नागरिक और न ही प्रशासनिक अमला इन सबसे कोई सबक सीखना चहता है। अत: यह जरूरी हो गया है कि देश को सही रास्ता और दिशा देने के लिए सख्त कानून बनाए जाएं और उनके पालन एवं क्रियान्वयन में जरा सी भी लापरवाही होने पर कड़ी कार्रवाई हो ताकि ऐसे सभी लोग इंसान की जान की कीमत समझ सकें। जब तक ऐसे लोगों को गलत काम करने पर सजा का भय नहीं सताएगा, तब तक इस प्रकार की घटनाओं को रोका नहीं जा सकता। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी ऐसा व्यक्ति न तो सुविधा शुल्क दे कर छूट पाए और न ही कोई सुविधा शुल्क ले कर किसी दोषी को छोड़ पाए।