राकेश शर्मा
वाह! भारत के 78 वें स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपना साहसिक, ऐतिहासिक, प्रासंगिक और अद्वितीय ग्यारहवां उद्बोधन दिया। तुलनात्मक दृष्टि से मुझे ऐसा लगा कि आज मोदी जी ने अपने पिछले दस उद्बोधनों को ही पछाड़ा। राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव इतना अधिक है कि उनका पहले से अधिक अच्छा करने का मुकाबला हमेशा स्वयं से ही होता है। नेता तो बहुत हैं, थे और होंगे लेकिन भारत की एक सौ चालीस करोड़ जनता को वैश्विक दृष्टि से नेतृत्व देने वाला प्रधान सेवक एक ही है। विचारों की एकाग्रता, एकात्मकता, विस्तृत सोच और कार्यान्वयन करने की अद्भुत क्षमता है का नाम है नरेंद्र मोदी।
यह लिखते हुए मैं कोई चापलूसी नहीं कर रहा हूं, मैं मानता हूं कि राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव तथा राष्ट्र प्रेम के भाव से जिसने भी आज डेढ़ घंटे से अधिक का पीएम मोदी का यह धारा प्रवाह उद्बोधन सुना होगा; वह मुझसे सहमत होगा और मैं अनुरोध करूंगा कि जो किसी भी कारणवश नहीं सुन पाए वे जरूर इसे सुनें। तब आप भी मेरी बात से स्वतः सहमत हो जाएंगे। यह 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का एक अमूल्य दस्तावेज है जिसे न केवल सहेज कर रखना है बल्कि इस प्रेरणा पुंज को समय-समय पर कितना काम हो गया, उसका मूल्यांकन करने के लिए भी प्रयोग करना होगा।
प्रधानमंत्री ने आह्वान किया कि आजादी प्राप्त करने के लिए उस समय देश की 40 करोड़ आबादी ने देश के लिए मरने की सौगंध खाकर देश को आजाद कराया लेकिन आज देश की 140 करोड़ आबादी को देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए संकल्पित होकर जीने की सौगंध खाने का समय है।
उन्होंने राष्ट्रवासियों को संबोधित और प्रेरणा देने के लिए आंतरिक और बाह्य शक्तियों को; जो देश में अराजकता और भय का वातावरण पैदा करना चाहती हैं, चेतावनी देते हुए कहा कि मुझे चुनौतियों को चुनौती देकर जीतना आता है।
य ह इशारा कहीं न कहीं उन नेताओं की ओर था जो विदेशी शक्तियों के चंगुल में फंसकर या उन्हें अपने चंगुल में फंसाकर देश को अस्थिर और विघटित करना चाहते हैं। इनमें से शायद कुछ ऐसे नेता वहां मौजूद भी थे जो हैरान, परेशान और निराश होकर एक राष्ट्रभक्त का राष्ट्र के नाम उद्बोधन सुन रहे थे। भीड़ में सुदूर बैठे उनके चेहरे के हाव-भाव को देखकर लोगों को ऐसा साफ लग रहा था जैसे उन्हें यह सब रास नहीं आ रहा था।
मोदी ने अपने भाषण में संविधान की चर्चा की, परिवारवाद पर चोट की, भ्रष्टाचार पर एकनिष्ठ होकर हमला कर खत्म करने का संकल्प दोहराया, जातीय जनगणना की वकालत करने वाले कैसे जनता को बांटकर देश तोड़ने का षड्यंत्र रच रहे हैं, इसकी बात की, समान नागरिक संहिता के फायदे बताए और इससे कैसे धर्म की राजनीति करने वालों की दुकान बंद होने की बात की, एक राष्ट्र एक चुनाव के लाभ गिनाए, एक ज़िला, एक उत्पाद की बात की, देश के एक लाख युवाओं का आह्वान किया जो किसी तरह से किसी राजनैतिक परिवार से संबंध नहीं रखते हों, वह भी राजनीति में आएं और अपनी इच्छानुसार किसी भी राजनैतिक पार्टी में शामिल होकर राष्ट्र निर्माण में योगदान दें।
– पीएम का भाषण 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का एक अमूल्य दस्तावेज
इसके साथ ही उन्होंने कर्मठता से पिछले दस सालों में विकसित राष्ट्र बनाने के कार्यों का उल्लेख किया जिससे देश के पिछड़े और गरीब लोगों का फायदा हुआ, भविष्य की प्राथमिकताओं और चुनौतियों की बात की, उन्होंने कहा कि स्वर्णिम कालखंड में विकसित भारत इंतज़ार कर रहा है, 140 करोड़ लोग समृद्ध भारत के सपने को साकार कर सकते हैं। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत की बात की, किसानों, महिलाओं, युवाओं, आदिवासी, पिछड़ों की बात कर उनके उत्थान के प्रयासों के कई उदाहरण दिए। कोई विषय ऐसा नहीं था जो अपने उद्बोधन में मोदी ने नहीं छुआ हो। उन्होंने देश के समग्र और सर्वांगीण विकास के लिए समर्पण दोहराया और तीसरी पारी में तिगुनी मेहनत कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की बात भी दोहराई। राष्ट्र को पूरी तरह आश्वस्त किया, संकल्पित विकास का फायदा हर व्यक्ति एवं परिवार तक पहुंचेगा। उन्होंने विश्व को भी आश्वस्त किया कि उन्हें डरने की कोई बात नहीं है। भारत का इतिहास मानव जाति के कल्याण का है। साथ ही बांग्लादेश में घट रही हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर हिंसक कार्यवाही पर चिंता जताते हुए उम्मीद की कि नई सरकार जल्दी इसका समाधान निकालेगी। सार यही है कि बहुत ही सारगर्भित, प्रेरणादायक, उत्साह से भर देने वाले इस उद्बोधन ने राष्ट्र में सकारात्मकता का संचार कर दिया है। वन्दे मातरम्!