दीप्सी द्विवेदी
नई दिल्ली। भारत के नए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने ताजा बयान में कहा है कि वकीलों के पेश न होने के चलते देश में अब तक 63 लाख केस पेंडिंग हैं। उन्होंने कहा कि यह संख्या बहुत अधिक या कम हो सकती है क्योंकि अभी सभी अदालतों से अधिक डेटा प्राप्त होना बाकी है।
महाराष्ट्र के अमरावती में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि देशभर में 63 लाख से अधिक मामले वकीलों की अनुपलब्धता के कारण और 14 लाख से अधिक मामले दस्तावेजों या िरकॉर्ड के इंतजार में लंबित हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लोगों को जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका के रूप में मानने की औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिए क्योंकि जिला अदालतें न केवल न्यायपालिका की रीढ़ हैं, बल्कि अनेक लोगों के लिए न्यायिक संस्था के रूप में पहला पड़ाव भी हैं। उन्होंने कहा कि जमानत आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे मौलिक नियमों में से एक है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि फिर भी व्यवहार में भारत में जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या विरोधाभासी और स्वतंत्रता से वंचित करने की स्थिति को दर्शाती है। चीफ जस्टिस ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार 14 लाख से अधिक मामले किसी तरह के रिकॉर्ड या दस्तावेज के इंतजार में लंबित हैं, जो अदालत के नियंत्रण से परे है।
उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करने के लिए वास्तव में बार के समर्थन की आवश्यकता है कि हमारी अदालतें अधिकतम क्षमता से काम करें। चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि आंकड़े बहुत अधिक या कम हो सकते हैं क्योंकि अभी सभी अदालतों से अधिक डेटा प्राप्त होना बाकी है।
उच्चतम न्यायालय में 10 से अधिक वर्षों से 11,000 से ज्यादा मामले लंबित
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा को बताया था कि 11,000 से अधिक मामले उच्चतम न्यायालय में 10 साल से अधिक समय से लंबित हैं। उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि इसी तरह 25 उच्च न्यायालयों में 8.77 लाख दीवानी और 3.74 लाख फौजदारी मामले 10 साल से अधिक समय से लंबित हैं। मंत्री ने कहा कि जिला और अधीनस्थ अदालतों में एक दशक से अधिक समय से 6.91 लाख दीवानी और 27.26 लाख फौजदारी मामले लंबित हैं। रिजिजू ने लिखित उत्तर में कहा, ‘‘भारत के उच्चतम न्यायालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 10 वर्षों से अधिक समय से लंबित मामलों की संख्या 11,049 है।’’