नई दिल्ली। एकतरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां दुनिया को यह संदेश दे रहे हैं कि आज का समय युद्ध का नहीं, वहीं दूसरी ओर भारत का पड़ोसी देश चीन, जिसे दुनिया ड्रैगन के नाम से भी बुलाती है; समय-समय पर सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ की नाकाम कोशिशें कर के शांति के माहौल को निरंतर बिगाड़ने का काम करता आ रहा है। चीन द्वारा की गईं घुसपैठ की इन कोशिशों ने उसका असली चेहरा भी दुनिया के सामने उजागर कर दिया है, उसे बेपर्दा भी कर दिया है।
पहली बार पीएम मोदी ने समरकंद में दिया था बयान
‘आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए’ यह बयान पहली बार पीएम मोदी द्वारा उज़्बेकिस्तान में शिखर सम्मेलन के मौके पर दिया गया था। शंघाई सहयोग संगठन की बैठक से इतर मोदी ने पुतिन से यह कहा था। इसके अलावा बाली में हुए जी20 शिखर सम्मेलन में ‘युद्ध के युग’ को खारिज करने वाले पीएम मोदी के इस बयान को अपने मसौदे में भी शामिल किया गया है। आज जब दुनिया जलवायु, खाद्य और ऊर्जा जैसे गंभीर संकटों का समाधान तलाश रही है; चीन इकलौता ऐसा देश है जो नकारात्मकता पर ध्यान केंद्रित किए हुए है। दरअसल चीन अपनी ताकत को हमेशा बढ़ते हुए देखना चाहता है। यह उसकी विस्तारवादी नीति का भी एक हिस्सा है। हद तो तब हो गई जब इंडोनेशिया के ही एक द्वीप पर चीन ने अपना दावा ठोंक दिया था।
भारत और चीन का सीमा विवाद बहुत पुराना मसला है। अब समय आ गया है कि इसका स्थायी समाधान ढूंढ़ा जाए। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के पास चीन की चालों के प्रति सतर्कता अब हमारे लिए और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। कोरोना के दौरान सेना ने एलएसी पर अपनी वार्षिक तैनाती घटा दी थी। संभवत: चीन ने इसी ‘चूक’ का फायदा उठाया। वैसे भारत और चीन के बीच तनाव की प्रमुख वजहों में से एक वजह अमेरिका भी है। अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते बेहद तल्ख हैं। भारत और अमेरिका के बीच इस वक्त रिश्ते बेहद अच्छे हैं। चीन को यह दोस्ती कभी भी रास नहीं आई। अभी हाल ही में भारत–अमेरिकी युद्धाभ्यास से भी चीन चिढ़ा बैठा था। चीन हमेशा से चाहता है कि एशिया में उसका वर्चस्व बना रहे। जी 20 की अध्यक्षता भारत को मिलने के बाद से चीन की बेचैनी बढ़ी है। आज वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए दुनिया भारत की ओर देख रही है। जी20 का लक्ष्य भी वैश्विक समस्याओं का समाधान है क्योंकि भारत ही एक ऐसा देश है जो पूरी दुनिया को एक परिवार (कुटुंब) मान कर चलता है यानि कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम ्’ के सूत्र में आस्था रखता है।
दूसरी ओर चीन इस समय पूरी दुनिया की नजरों में चढ़ा हुआ है। अधिकतर देश चीन को कोरोना वायरस के लिए जिम्मेदार मानते हैं। चीन इस पूरे मसले से मुंह मोड़ना चाह रहा है। अमेरिका की रिपोर्टें कहती हैं कि इस वायरस का परीक्षण चीन ने किया है जो जैविक युद्ध का हिस्सा भी हो सकता है। अभी चीनी सेना ने 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में यथास्थिति बदलने का एकतरफा प्रयास किया जिसका भारत के जवानों ने दृढ़ता से जवाब दिया है। दरअसल चीन इस बिना पर उछल रहा है कि उसके पास दुनिया का सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार है। इसलिए उसे अगले कई वर्षों तक आयात भुगतान की कोई समस्या नहीं होगी।
इस सितंबर के अंत तक चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 30 खरब 29 अरब अमेरिकी डॉलर रहा। भारत को चीन को सबक सिखाने के लिए अपने कारोबार को चीन के साथ कम करना होगा और चीन के सामान का बहिष्कार करना होगा, तभी चीन काबू में आएगा। आज पूरी दुनिया चीन के प्रति नफरत से भरी है। अगर भारत, चीन को सबक सिखाने की कोशिश करता है तो दुनिया का उसे साथ मिलेगा। इससे चीन जो माइंड गेम खेल रहा है उस पर भी अंकुश लगेगा। एक तरफ वो बातचीत के जरिए सीमा पर शांति की बात करता है तो दूसरी ओर जंग होने पर पाकिस्तान और नेपाल के साथ होने की धमकी देता है। ऐसे में जरूरी हो गया है कि मोदी सरकार सैन्य और कूटनीतिक तरीके से चीन को सबक सिखाए ताकि हमेशा के लिए पाकिस्तान और नेपाल दोनों को भी एहसास हो जाए।
आर्थिक और वैज्ञानिक बहिष्कार जरूरी : यदि चीन की हरकतों के लिए उसे तुरंत सबक नहीं सिखाया गया तो विश्व का क्या हाल होगा, यह सहज ही समझा जा सकता है। इसके लिए चीन का आर्थिक और वैज्ञानिक बहिष्कार करना होगा। अमेरिका और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इसके लिए तैयार होना पड़ेगा। दूसरा, चीन के सभी पड़ोसी देशों को उसकी विस्तारवादी नीतियों के विरुद्ध आपस में मिलकर उसे वापस चीन की दीवार के अंदर ढकेलना होगा जो कि उसकी वास्तविक सीमा है। तीसरा, आतंक को बढ़ावा देने वालों को ध्वस्त करना होगा। सबसे जरूरी है चीन की जनता को उनके अधिकारों और स्वतंत्रता से अवगत कराना ताकि वे साम्यवादी फासीवाद से मुक्ति पा सकें।
वाशिंगटन। तवांग प्रकरण पर भारत के प्रयासों का अमेरिका ने समर्थन किया है। पेंटागन के प्रेस सचिव पैट राइडर ने कहा है कि हम अपने सहयोगियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहेंगे। भारत ने जिस तरह से स्थिति को नियंत्रित किया, हम उसके प्रयासों का पूरा समर्थन करते हैं।
पैट राइडर ने आगे कहा है कि अमेरिका, भारत-चीन सीमा पर चल रही गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है। उन्होंने कहा कि दुनिया जानती है कि चीन किस तरह तानाशाही कर सीमा पर अपने बलों को इकट्ठा कर सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है। उन्होंने कहा कि एलएसी के बाद अब चीन समुद्री सीमा में भी भारत के अलावा अन्य देशों के लिए भी बड़ी चुनौती बन रहा है। हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी सेना की मौजूदगी चिंता का विषय है।
घुसपैठ के कुछ आंकड़े
- चीन के मंसूबे इस बात से पता चलते हैं कि घुसपैठ की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। 2006 से 2010 के बीच चीनी सेना ने घुसपैठ की 300 कोशिशें की थीं।
- 2015 से 2020 के बीच घुसपैठ की घटनाएं 300 से बढ़कर 600 तक पहुंच गईं। चीन नई यथास्थिति बनाना चाहता है।
- दुनिया की सबसे लंबी विवादित सीमा पर 76 हॉट स्पॉट पश्चिमी सेक्टर और 7 पूर्वी सेक्टर में हैं। दोनों सेक्टरों में घुसपैठ का पैटर्न चीन की विस्तारवादी नीति का संकेत देता है। पश्चिमी सेक्टर में घुसपैठ ईस्टर्न से 3 गुना अधिक है। 2020 में यह पैटर्न पश्चिम में 10 गुना अधिक था।