नई दिल्ली। गुजरात विधान सभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने प्रचंड जीत दर्ज की है। यहां इतिहास रचते हुए बीजेपी ने 156 सीटें जीती हैं। इसी के साथ बीजेपी ने कई रिकॉर्ड स्थापित कर दिए हैं। यह कहना कहीं से भी अब अतिशयोक्ति नहीं है कि गुजरात में अगर कोई जादू है तो वह सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही मैजिक है। गुजरात में सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए ‘कमल ने कमाल’ कर दिया है। इन रिकॉर्डों के साथ विपक्ष और खासकर कांग्रेस के लिए ये नतीजा कई संदेश भी लेकर आया है।
धन्यवाद गुजरात। अभूतपूर्व चुनाव परिणामों को देखकर मैं बहुत अधिक अभिभूत हूं। लोगों ने विकास की राजनीति को आशीर्वाद दिया है।
बीजेपी ने लगातार सातवीं बार गुजरात में चुनाव जीता है। ये विजय कोई मामूली विजय नहीं है। गुजरात में 1980 में चुनावी राजनीति में आने के बाद की ये सबसे बड़ी जीत है। बीजेपी ने 150 का लक्ष्य रखा था पर उसे गुजरात की जनता ने 182 में से 156 सीटें जिता दीं। ऐसा बंपर जनादेश गुजरात की धरती पर आज तक किसी को नहीं मिला और ये जनादेश तब आया है जबकि 27 साल से गुजरात में बीजेपी की ही सरकार है। ‘विरोध की लहर’ के सिद्धांत का यहां लेश मात्र भी असर देखने को नहीं मिला जबकि हिमाचल प्रदेश में शायद इसी की वजह से बीजेपी सत्ता में वापस नहीं लौट सकी और वहां की जनता ने ‘हर पांच साल में सरकार बदलने का रिवाज’ कायम रखा। पिछले 8 साल से गुजरात और केंद्र में बीजेपी के डबल इंजन की सरकार चल रही है। मतलब वहां एंटी इनकंबेंसी (विरोध की लहर) जैसा कोई फैक्टर नहीं था।
– आप, कांग्रेस को मिला सियासी संदेश
बीजेपी के बड़े रिकॉर्ड और अनेक सवाल
अगर यहां विरोधियों की हार की बात की जाए तो पिछली बार 41 प्रतिशत वोट शेयर पाने वाली कांग्रेस इस बार 27 प्रतिशत पर सिमट कर गई। उसके हिस्से के 13 प्रतिशत वोट शेयर पर आम आदमी पार्टी ने कब्जा कर राष्ट्रीय पार्टी होने का अपना दावा मजबूत कर लिया जिसकी औपचारिक घोषणा मात्र होना बाकी है। लेकिन गुजरात चुनाव के नतीजों को देखकर सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या गुजरात में विकास के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी को चुनाव हराना नामुमकिन हो गया है? क्या देश में झूठ-भ्रम और जाति-धर्म के मुद्दे पर वोट पाना मुश्किल हो गया है? अब इन सवालों के जवाब तो गुजरात चुनाव के नतीजे खुद दे रहे हैं।
अब कहा जा सकता है कि भूपेंद्र पटेल ने मोदी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। वे लगातार दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले हैं। अब एक तरफ गुजरात में बीजेपी ने महाविजय का इतिहास रच डाला है तो दूसरी ओर विरोधी दल इस हाल में भी नहीं बचे हैं कि सम्मानजनक विपक्ष की भूमिका निभा सकें। इस बार के नतीजों में गुजरात के अंदर बीजेपी को 52 प्रतिशत से अधिक वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस को करीब 27 प्रतिशत और आम आदमी पार्टी को करीब 13 प्रतिशत वोट मिले हैं। पिछले चुनाव की तुलना में देखा जाए तो बीजेपी को करीब 3 प्रतिशत वोट शेयर का फायदा हुआ है। कांग्रेस को 14 प्रतिशत के वोट शेयर का भारी नुकसान हुआ है और आम आदमी पार्टी को 13 प्रतिशत के वोट शेयर का भारी फायदा हुआ है। हालांकि गुजरात में सरकार बनाने का दावा करने वाले केजरीवाल की पार्टी दो अंकों में भी नहीं पहुंच पाई है। पंजाब और हिमाचल की तरह लुभावने वादों को भी गुजरात की समझदार जनता ने सिरे से नकार दिया है जिससे मुफ्त की रेवड़ी बांटने की नीति पर बीजेपी को वार करने का मौका मिलेगा।
बीजेपी के रिकॉर्ड
बीजेपी ने ऐसे रिकॉर्ड बना दिए हैं जिन्हें लंबे समय तक शायद कोई तोड़ न पाए। जरा इन नए रिकॉर्ड्स को एक बार देखिए-
150 से ज्यादा सीटें जीतकर कांग्रेस का 1985 का रिकॉर्ड तोड़ दिया है।
85 प्रतिशत से अधिक सीटें जीतकर कांग्रेस के 1960 के रिकॉर्ड को तोड़ा।
देश भर के ऐतिहासिक विधानसभा चुनाव नतीजे वाले राज्यों में गुजरात को भी शामिल कर दिया।
27 साल की एंटी इनकम्बेन्सी के बावजूद इतनी बड़ी चुनावी जीत दर्ज करने का जबरदस्त रिकॉर्ड बना दिया है।
हिमाचल अब हाथ के साथ
नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश में जो मुद्दे सिर उठा रहे थे उनको अगर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने समय रहते संभाल लिया होता तो शायद आज वहां बीजेपी दोबारा राज कायम करने के अपने नारे को सही साबित कर सकती थी और हर पांच साल में सरकार बदलने का रिवाज भी शायद बदल जाता। कांग्रेस की जीत में रिवाज ने उसके पक्ष में माहौल जरूर बनाया लेकिन कांग्रेस ने युवाओं के बीच बेरोजगारी, कर्मचारियों के बीच पुरानी पेंशन, किसानी और बागवानी जैसे मुद्दों से खुद को भटकने नहीं दिया। गत भाजपा सरकार के प्रति लोगों में बहुत नाराजगी थी, इसीलिए उन्हीं मुद्दों को कांग्रेस ने हवा दी। संभवत: इसी वजह से सरकार के आठ मंत्री भी चुनाव हार गए और प्रदेश की जनता ‘हाथ’ के ‘साथ’ चली गई। यहां की कुल 68 सीटों में से कांग्रेस को 40 सीटें मिलीं जो बहुमत की संख्या 35 से अधिक हैं। बीजेपी को सिर्फ 25 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।