ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि कानूनी बहस में इस्तेमाल होने वाले अनुचित लैंगिक शब्दों पर रोक लगाई जाएगी। संशोधित कानूनी शब्दावली जारी करने की योजना पाइपलाइन में है। शीर्ष अदालत की लिंग संवेदीकरण और आंतरिक शिकायत समिति के एक कार्यक्रम में सीजेआई ने यह जानकारी दी।
उन्होंने सेवाओं में महिलाओं की बढ़ती संख्या के साथ-साथ प्रणालीगत बाधाओं व अनुचित व्यवहार की घटनाओं के मद्देनजर दो महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं। इनमें कानूनी पेशे में अच्छे और आशाजनक विकास को उजागर करने के अलावा यौन व महिलाओं को लक्षित करने वाले अन्य पहलुओं को शामिल किया गया। सीजेआई ने कहा, पहली योजना कानूनी बहस में उपयोग किए जाने वाले अनुचित लैंगिक शब्दों पर रोक लगाने की है। यह एक ऐसा मिशन है, जिसे उन्होंने कुछ साल पहले शुरू किया था और अब पूरा होने वाला है। उन्होंने आशा जताई कि मिशन इस बात पर नजर रखेगा कि समाज और कानूनी पेशे में महिलाओं के साथ कैसे भेदभाव किया जाता है और इसे कैसे रोका जाए। सीजेआई ने यह भी बताया कि शीर्ष अदालत अपने एनेक्सी भवन के पुनर्निर्माण के लिए प्रस्ताव लेकर आई है। इसमें महिला वकीलों के लिए बड़ी जगह रहेगी। सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के लिए बेहतर कार्य स्थान बनाया जाएगा।
महिलाओं के लिए होता है बहुत बुरे शब्दों का इस्तेमाल
सीजेआई ने कहा, मैंने ऐसे फैसले देखे हैं जिनमें एक महिला को ‘रखैल’ के रूप में संदर्भित किया गया है, जब वह एक रिश्ते में होती है। घरेलू हिंसा अधिनियम और आईपीसी की धारा- 498ए के तहत एफआईआर रद्द करने के आवेदन पर दिए फैसलों में महिलाओं को ‘रखैल’ कहा गया है। उन्होंने कहा, इन अनुचित शब्दों को संकलित करने का अंतर्निहित उद्देश्य किसी भी न्यायाधीश को नीचा दिखाना नहीं है बल्कि हमारे दिमाग के भीतर की समस्याओं को समझना है। ये पूर्वकल्पित धारणाएं और पूर्वाग्रह हैं, जिनके आधार पर इन शब्दों का सहारा लिया जाता है। सीजेआई ने कहा, जब तक हम इन पहलुओं के बारे में खुलेंगे नहीं, हमारे लिए एक समाज के रूप में विकसित होना मुश्किल होगा।