ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। कॉप27 क्लाइमेट समिट के लिए मिस्र में एकत्र हुए 200 देशों के बीच 20 नवंबर को ऐतिहासिक समझौता हुआ। इसमें अमीर देशों को क्लाइमेट चेंज का जिम्मेदार ठहराया गया है। 14 दिन चली बहस के बाद यह फैसला किया गया है। इसके तहत अमीर देश एक फंड बनाएंगे। इससे गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मुआवजा दिया जाएगा। इसे गरीब देशों की बड़ी जीत माना जा रहा है।
समिट में आखिरी वक्त तक फंड को लेकर तस्वीर साफ नहीं थी। कई अमीर देश दूसरे मुद्दों के बीच इसे दबाने की कोशिश कर रहे थे। भारत, ब्राजील समेत एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई देशों ने इस फंड को पास कराने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। गरीब और विकासशील देशों ने मिलकर अमीर देशों पर दबाव बनाया। अगर इस बार फंड नहीं बनता तो इस समिट को नाकाम माना जाएगा। वहीं, जाम्बिया के पर्यावरण मंत्री कोलिन्स नोजोवू ने इस फंड को अफ्रीका के 1.3 बिलियन लोगों के लिए पॉजिटिव स्टेप बताया। ब्राजील के लूला डा सिल्वा ने कॉप27 में क्लाइमेट फंड बनाने के लिए काफी जोर दिया था।
फंड को लेकर कमेटी बनेगी : फंड किस तरह से काम करेगा, इस पर एक साल तक बहस होगी। तय होगा की किस देश को कितना मुआवजा और किस आधार पर मिलेगा। कौन-कौन से देश मुआवजा देंगे, इसका फैसला भी कमेटी लेगी।
134 देशों के दबाव के बाद बना फंड : कॉप27 क्लाइमेट समिट में सबसे पहले यूरोपीयन यूनियन ने मुआवजे के लिए फंड बनाने की हामी भरी। हालांकि यूनियन का मानना था कि इस फंड का फायदा सिर्फ उन देशों को हो जिनकी हालत खराब हो चुकी है। फंड बनाने को मंजूरी देने का सारा दारोमदार अमेरिका पर था जो सबसे बड़ा पॉल्यूटर माना जाता है। अमेरिका ने भी इसके लिए अपनी मंजूरी दे दी।
चीन को मुआवजे का लाभ नहीं देना चाहता अमेरिका : 200 देशों के बीच हुए समझौते के मुताबिक कई विकासशील देशों को भी क्लाइमेट चेंज फंड के तहत सहायता मिलेगी। ऐसे में यूरोपीयन यूनियन और अमेरिका की मांग है कि फंड मिलने वाले देशों में चीन को शामिल न किया जाए। उनका तर्क है कि चीन दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है। साथ ही उन देशों में भी शामिल है जो सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है। वहीं चीन ने आरोप लगाए हैं कि अमेरिका और उसके साथी देश भेदभाव कर रहे हैं।