ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 20 अक्टूबर कहा कि वह दिवाली की छुट्टियों के बाद एक जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा। इस याचिका में कोर्ट में लंबी छुट्टियां लेने की प्रथा को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इतनी छुट्टियों से मामलों की फाइलिंग और सुनवाई प्रभावित होती है। ज्ञात हो कि 22 अक्टूबर से 9 नवंबर तक कोर्ट की दिवाली की छुट्टी है, इसके बाद ही मामले में सुनवाई होगी।
यह याचिका हाई कोर्ट में सबीना लकड़ावाला ने दायर की है। हाई कोर्ट की छुट्टियों को चुनौती देते हुए दावा किया गया है कि यह उन सभी के अधिकारों के खिलाफ है, जो लंबित मामलों के लेकर लंबे इंतजार से बैठे हैं। याचिकाकर्ता के वकील मैथ्यूज नेदुमपारा ने कहा कि याचिकाकर्ता जजों के छुट्टी लेने के खिलाफ नहीं थे, लेकिन न्यायपालिका के सदस्यों को एक ही समय में छुट्टी नहीं लेनी चाहिए ताकि अदालतें पूरे साल काम करती रहें।
15 नवंबर को होगी मामले की सुनवाई
वकील नेदुमपारा ने जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस आरएन लड्ढा की खंडपीठ के सामने तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए याचिका को लेकर अपनी बात सामने रखी। पीठ ने वकील से पूछा कि अब याचिका क्यों दायर की गई, जबकि 2022 के लिए हाई कोर्ट का कैलेंडर पिछले साल नवंबर में ही उपलब्ध कराया गया था। कोर्ट का कहना है कि वह इस मामले में 15 नवंबर को सुनवाई करेगा।
हर साल तीन ब्रेक लेता है हाई कोर्ट
हाई कोर्ट हर साल तीन ब्रेक लेता है। इसमें गर्मी की छुट्टी (एक महीने), दिवाली की छुट्टी (दो सप्ताह) और क्रिसमस की छुट्टी (एक सप्ताह) शामिल हैं। अगर किसी मामले में इस दौरान तत्काल सुनवाई करनी है तो इसके लिए विशेष अवकाश बेंच उपलब्ध हैं। लकड़ावाला ने अपनी याचिका में कहा कि लंबी अदालती छुट्टियां लोगों के साथ अन्याय है। इसमें मांग की गई है कि किसी भी तरह की छुट्टी के लिए कोर्ट को एक साल में 70 दिनों से ज्यादा समय तक बंद करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
‘बंद की जाए लंबी छुट्टियों की प्रथा’
याचिका में कहा गया है कि लंबी छुट्टियों की इस तरह की प्रथा को पूरी तरह से बंद किया जाना चाहिए। याचिका में सभी मामलों की सुनवाई और फैसले के लिए पर्याप्त संख्या में जजों की नियुक्ति कर हाई कोर्ट को आगामी दीवाली की छुट्टी के दौरान पूरी तरह कार्यात्मक बनाने की मांग की गई थी। उन्होंने कहा कि वकीलों और जजों की छुट्टी इस तरह होनी चाहिए की पूरे संस्थान को बंद न किया जाए।