ब्लिट्ज ब्यूरो
विड महामारी ने सभी को स्वास्थ्य व पोषण सुरक्षा के महत्व का अहसास कराया है। साथ ही सदी में एक बार आने वाली महामारी के बाद संघर्ष की स्थिति ने दिखाया है कि खाद्य सुरक्षा अभी भी पृथ्वी के लिए चिंता का विषय है। जलवायु परिवर्तन भी खाद्य उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है।
ऐसे समय में, मोटा अनाज यानी पोषक अनाज (मिलेट्स) से संबंधित वैश्विक आंदोलन एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इन्हें आसानी से उगाया जा सकता है। यह जलवायु के अनुकूल और सूखा प्रतिरोधी है।
भविष्य का विकल्प
मोटे अनाज का मनुष्यों द्वारा सबसे पहले उगाई जाने वाली फसलों में होने का गौरवशाली इतिहास रहा है। ये अतीत में एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत रहे हैं, लेकिन कालांतर में यह भोजन की थाली से लुप्त होने लगे।
ऐसे में अब समय की मांग है कि उन्हें भविष्य के लिए भोजन का विकल्प बनाया जाए। कृषि में जब स्थिरता आ जाती है तो उत्पादन ही नहीं हमारा स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। ऐसे में मिलेट्स, कृषि और आहार विविधता को बढ़ाने का अच्छा तरीका हैं।
भारत की पहल
भारत ने 2018 में पोषक अनाज वर्ष मनाया था ताकि मोटे अनाज को एक ऐसे भोजन के रूप में बढ़ावा दिया जाए जो पोषण को भारत और विश्व के सुदूर हिस्सों तक ले जाने में मदद करे।
दुनिया ने स्वीकारा
भारत की ओर से योग से लेकर मिलेट्स तक की गई पहलों को दुनिया ने स्वीकार किया है। खाद्य सुरक्षा और पोषण को महत्व देने वाले भारत की ही पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया। इसकी शुरुआत हो चुकी है और दुनिया में मिलेट्स से बने भोजन के प्रति रूझान तेजी से बढ़ रहा है।
भारत बाजरे का हब
भारत 1.8 करोड़ टन से अधिक के उत्पादन के साथ बाजरे के लिए वैश्विक हब बनने की ओर अग्रसर है। एशिया में उत्पादित बाजरे में से 80 प्रतिशत से अधिक का उत्पादन भारत करता है। बाजरा या मोटे अनाज प्राचीन काल से भारत के कृषि, संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा रहे हैं। भारत का उद्देश्य मोटे अनाज के उपयोग के प्रति बेहतर दृष्टिकोण बनाकर वैश्विक जन आंदोलन का रूप देना है।
नए सिरे से परिभाषित
नरेंद्र मोदी सरकार ने श्रीअन्न नाम देकर इसको नए सिरे से परिभाषित किया और वर्ष 2023-24 के आम बजट मंर फोकस करके अपनी सकारात्मक विचारधारा को दुनिया के सामने रख दिया है।