राकेश शर्मा
सैम पित्रोदा एक विदेशी नाम जैसा लगता है, लेकिन हैं वह सतनारायण गंगाराम पित्रोदा जो सत्य से दूर ही रहते हैं और गंगा मैया की तरह पवित्र विचार भी नहीं रखते। वह ऐसी ही शिक्षा अपने शिष्य राहुल गांधी को दे रहे हैं।
पित्रोदा के अमेरिका में प्रेस को दिए एक वक्तव्य ने देश के चुनाव का आख्यान ही बदल दिया। उन्होंने कहा, अमेरिका की तरह भारत में हमें सोचना होगा कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके बच्चों को पैंतालीस प्रतिशत चल अचल संपत्ति और संपदा में हिस्सा मिलना चाहिए और पचपन प्रतिशत सरकार को मिलना चाहिए।
सोचा समझा बयान
ठीक चुनाव के मध्य यह सोचा समझा बयान लगता है। इसको हम कांग्रेस के घोषणापत्र और राहुल गांधी के वक्तव्यों से जोड़कर देखें तो काफ़ी कुछ समानता दिखती है। कांग्रेस के घोषणापत्र और राहुल के वक्तव्यों में कहा गया है कि यदि वह सत्ता में आते हैं तो लोगों की चल अचल संपत्ति का सर्वेक्षण कराकर एक्सरे कराया जायेगा और उसके बाद क्रांतिकारी कदम उठाये जाएंगे।
जनता आशंकित
भारत की जनता क्रांतिकारी कदमों की बात सुनकर ही भयभीत, आशंकित हो गई थी , वंदन क्रंदन कर रही थी और मृत्यु के बाद पित्रोदा के पचपन प्रतिशत सरकार के खजाने में जाने के सुझाव के बाद तो सब कुछ साफ हो गया है। भारतीय परिवेश में व्यक्ति जीवन भर संघर्ष कर इच्छा रखता है कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी धन संपदा उसके बच्चों के काम आये।
छोटे-मोटे नेता नहीं
पित्रोदा और राहुल कांग्रेस के छोटे मोटे नेता नहीं हैं बल्कि इनमें एक अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस का चेयरमैन है और दूसरा राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष रह चुका है और अभी राजशाही परिवार में जन्म के कारण अघोषित अध्यक्ष भी है। अब जरा इस प्रपंच की गहराई में जाकर सोचें कि ऐसा क्यूं कर रहे हैं । भावना यह दिखा रहे हैं कि वंचितों को जबरदस्ती की उगाही बांटेंगे।
समस्या की जड़ है जनसंख्या विस्फोट जो देश से गरीबी दूर होने ही नहीं देती। आज स्थिति यह है कि जितने मर्जी स्कूल, विश्वविद्यालय, अस्पताल, सड़कें बनवा लो, बनने से पहले ही कम या छोटे पड़ जाते हैं। भारत मां की पृथ्वी सीमित है, प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं, जल सीमित है, भोजन सीमित है, फल-सब्जियां सीमित हैं, पढ़ने लिखने की संस्थाएं सीमित हैं, इलाज के लिए अस्पताल सीमित हैं, सड़कों पर वाहन चलने का स्थान सीमित है। सब कुछ सीमित है, बस सिर्फ़ जनसंख्या असीमित है।
अखंड भारत मां : यह समस्या और भी विकट इसलिए भी है कि समय समय पर अखंड भारत मां के टुकड़े कर उसे लहूलुहान कर दिया गया और अभी भी धर्म को दुराचार के लिए प्रयोग करने वाले व्यक्ति इसके और टुकड़े करने के चक्क र में लगे रहते हैं।
जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की आवश्यकता : मेरा मानना यह है कि गरीबी की समस्या के समाधान के लिए व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी पचपन प्रतिशत संपत्ति सरकारी खजाने में लेकर वंचितों में बांटने की सोच के बजाए जनसंख्या नियंत्रण कर समस्या का समाधान सबसे पहले किया जाना चाहिए। समान नागरिक संहिता के कानून से पहले जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की आवश्यकता है।
‘हम दो हमारे दो’ : आपातकाल में भी इसी कांग्रेस ने नारा दिया था- ‘हम दो हमारे दो’ लेकिन तुष्टिकरण के कारण इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हमारे देश में ऐसे कानूनों के सामने धर्म का आवरण लेकर अधार्मिक लोग अड़ंगे लगाने आगे आ जाते हैं और अराजकता फैलाते हैं।
इससे बचने के लिए सरकार को चाहिए कि बच्चों पर पाबंदी लगाने के बजाय दो से ज्यादा बच्चे वाले परिवारों से ज्यादा कर वसूले। दो से अधिक बच्चों पर एक लाख रुपया प्रति बच्चा प्रति वर्ष टैक्स लगना चाहिए, हाउस टैक्स अधिक लेना चाहिए क्यूंकि दो से ज्यादा बच्चे होने पर वह सरकारी सुविधाओं का अधिक उपयोग करते हैं, बिजली की दर अधिक लेनी चाहिए, स्कूल की फ़ीस अधिक लेनी चाहिए, इनकम टैक्स अधिक लेना चाहिए। इस अतिरिक्त जमा राशि को उन्हीं के अधिक बच्चों पर खर्च किया जाए। इस कानून को और अधिक सशक्त बनाने के लिए दो से अधिक बच्चों वाले परिवारों का वोट का अधिकार भी समाप्त होना चाहिए। जब वह देश के बारे में नहीं सोचते तो देश की सरकार चुनने में उन्हें अधिकार क्यूं मिले। यह गंभीर चिंतन का विषय है और देश की संसद और कानूनविदों को इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। सैम और राहुल आपने अपनी सोच को नया आयाम देने के लिए प्रतिबद्ध कर रखा है, यह राष्ट्रीय सोच का विषय है, दलगत राजनीति से बिलकुल अलग।


















