ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह प्रत्येक नगर निगम, परिषदों, ग्राम पंचायतों में हर छोटे निविदा मामले का पर्यवेक्षक नहीं हो सकता। याचिका में ई-टेंडर प्रक्रिया में अवैधता और भ्रष्टाचार को उजागर किया गया था।
यह विशेष रूप से पक्षपातपूर्ण निर्णय लेने और विज्ञापन अनुबंध देने से संबंधित थी। याचिका में पड़ोसी ठाणे जिले के कुलगांव बदलापुर नगरपालिका परिषद में एक ठेका देने में शामिल लोगों के खिलाफ जांच और कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता, कल्याण डोंबिवली नगर निगम की पूर्व मनसे पार्षद मीनाक्षी दोईफोडे ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि वह संबंधित परिषद से नहीं हैं, लेकिन उन्हें एक कंपनी को टेंडर देने में अनियमितताओं के बारे में पता चला है।
इस पर मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ ने कहा, पीआईएल का आए दिन दुरुपयोग हो रहा है। इसके नियमों का पालन करना चाहिए। आप एक व्यक्ति को निशाना बना रहे हैं। क्या आप कथित अनियमितताओं को संबंधित अधिकारियों के ध्यान में लाए थे? टेंडर 2022 में जारी किए गए थे। आप अब तक क्या कर रहे थे। जस्टिस आरिफ डॉक्टर ने जोर देकर कहा कि कृपया जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग न करें। जनहित याचिका व्यक्तियों को निशाना बनाने के लिए नहीं है। दोनों जजों ने आपस में चर्चा की और फिर कहा, हम आपको इन तथ्यों को सामने लाने की अनुमति देंगे और उन्हें कार्रवाई करने देंगे। हम बस इतना ही कर सकते हैं।
हालांकि, जब याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील राकेश मिसर ने कहा कि याचिकाकर्ता ने पहले ही नगरपालिका प्रशासन के निदेशक को शिकायत दी थी, लेकिन चूंकि इस बारे में कुछ नहीं हुआ और उसके बाद ही याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। पीठ ने कहा, हम ऐसा नहीं कर सकते।