ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) का मतलब है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून। चाहें वह नागरिक किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। यानी हर जाति, धर्म और लिंग के लिये देश में एक ही तरह का कानून होगा। यूनिफार्म सिविल कोड, कानून लागू होने पर विवाह, तलाक, बच्चे को गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम और क़ानून होंगे।
सबसे पहले उत्तराखण्ड राज्य में लागू
भारत में सबसे पहले उत्तराखण्ड राज्य में, ‘यूनिफार्म सिविल कोड ‘ कानून बनाकर लागू किया गया है। यूनिफार्म सिविल कोड को हिन्दी में समान नागरिक संहिता कहा जाता है। भारत में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं लेकिन यूसीसी एक धर्मनिरपेक्ष कानून है जो सभी धर्म और जातियों के निजी रीति रिवाजों और क़ानूनों से ऊपर है। एक देश, एक विधान और एक संविधान की मूल भावना का लिखित प्रारूप है यूसीसी।
हर एक नागरिक के लिए एक समान कानून
सीधे-स्पष्ट अर्थों में कहें तो समान नागरिक संहिता का तात्पर्य भारत में रहने वाले हर एक नागरिक के लिए एक समान कानून से है। यूनिफार्म सिविल कोड एक निष्पक्ष क़ानून है जिसका किसी भी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है।
यूसीसी की संवैधानिक स्थिति
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत यूनिफार्म सिविल कोड लागू करना हर राज्य की आवश्यक ज़िम्मेदारी है। विभिन्न धर्मों के अलग -अलग कानूनों से न्याय पालिका पर बोझ पड़ता है।
समान नागरिक संहिता लागू होने से अदालतों में वर्षों से लटके यानी लंबित मामलों के फैसले जल्दी होंगे। एक समानता से देश में एकता बढ़ेगी और जिस देश के नागरिकों में एकता होती है , वह देश तेजी के साथ विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता है।
वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति समाप्त होगी
समान नागरिक संहिता लागू होने से वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति समाप्त होगी। यूसीसी के लागू होने से भारत में महिलाओं की स्थिति में और ज्यादा गुणात्मक सुधार होगा। आज उत्तराखंड यूसीसी ब्लागिंग करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
यह दिखेगा बदलाव
अब इस राज्य में हर धर्म के लिए विवाह, तलाक़, भूमि, संपत्ति और विरासत के मालिकाना हक़ का एक जैसा कानून होगा। उत्तराखण्ड का यह कानून, मुस्लिम धर्म की बहु विवाह और हलाला जैसी प्रथाओं पर रोक लगाता है। इस कानून के बाद से उत्तराखंड में शादी के बारे में सभी धर्मों के लिए सिर्फ़ एक ही यूसीसी क़ानून होगा।
लिव -इन -रिलेशनशिप
यूसीसी के इस क़ानून में लिव-इन-रिलेशनशिप के लिए भी कानूनी प्रावधान किया गया है। अब लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले सभी जोड़ों को एक निश्चित फ़ॉर्मेट में जानकारी देकर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। चाहे वे राज्य के निवासी हैं या नहीं। पहले से लिव इन रिलेशन में रह रहे लोगों को भी अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इस कानून की खास बात यह है कि लिव इन में रहने वाले लोगों की सूचना उनके माता पिता को सरकार द्वारा दी जाएगी। लिव इन रिलेशन समाप्त होने पर महिला को गुजरा भत्ता देना होगा।
बच्चा दोनों की संपत्तियों का उत्तराधिकारी
अब लिव-इन- रिलेशनशिप से पैदा हुआ बच्चा वैध माना जाएगा । यह बच्चा दोनों की संपत्तियों का उत्तराधिकारी होगा। अब जायज और नाजायज बच्चों की श्रेणी खत्म कर दी गई है। सभ बच्चों को उस दंपति का ‘बायोलॉजिकल चाइल्ड ‘ माना जाएगा । चाहे बच्चा , दत्तक, नाजायज, सरोगेसी, या टेस्ट ट्यूब बेबी ही क्यों न हो।
गुजारा भत्ते के लिए अदालत जा सकती है महिला
इस श्रेणी के प्रावधान में , नियम बनाया गया है कि लिव इन संबंधों में रहने वाली महिला को यदि उसके साथी ने छोड़ दिया है तो वह अपने गुजारा भत्ते के लिए अदालत जा सकती है। यह खास जानकारी के लिए है कि अनुसूचित जनजाति के नागरिकों को इस कानून से बाहर रखा गया है।
उत्तराखंड में यूसीसी क़ानून इन लोगों पर लागू होगा
राज्य के मूल और स्थायी निवासियों, राज्य सरकार और उसके उपक्रमों के कर्मचारियों, केंद्र और उसके उपक्रमों के कर्मचारियों जो राज्य में पोस्टेड होंगे और राज्य में कम से कम एक साल से रह रहे लोगों पर यह नियम लागू होगा।
सभी विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य होगा
शादी के लिए लड़के की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़की की न्यूनतम उम्र 18 साल की होगी। एक महीने के अंदर शादी का पंजीकरण न करने पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जायेगा। यह नियम मुसलमानों पर भी लागू होगा। वैसे मुस्लिम समाज में लड़की के विवाह के लिये न्यूनतम उम्र वह होती है जिसमें उसका मासिक धर्म शुरू हो जाये। विवाह का विच्छेद यानी तलाक़ यानी डाइवोर्स शादी के एक साल बाद ही हो सकेगा। इसका उल्लंघन होने पर 6 महीने की जेल और 50 हजार रुपए का जुर्माना होगा।
हलाला प्रथा समाप्त
इस नये कानून में मुस्लिम समाज की हलाला प्रथा को समाप्त किया गया है। अब हलाला के मामलों में 3 साल की सजा और एक लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
नये कानून में बेटियों को बराबरी का हक मिलेगा
किसी भी धर्म के विवाह अनुष्ठानों यानी सेरेमनी पर रोक नहीं है। यानी हर धर्म के लोग अपनी परंपराओं के मुताबिक शादी का जश्न मना सकते हैं।
शादी किन-किन रिश्तेदारियों में नहीं हो सकती
इस क़ानून में प्रतिबंधित नातेदारी की लिस्ट भी शामिल की गई है। इसमें महिला और पुरुष की ,37-37 श्रेणियों को , शामिल किया गया है। यानी सूची में दर्ज रिश्तेदारियों में आपकी शादी नहीं हो सकती है।
इस कानून में महिलाओं की दूसरी शादी पर कोई रोक नहीं है। बहु विवाह पर पूरी तरह से रोक है।
कई देशों में यूसीसी लागू
भारत में इस कानून के बनने से पहले दुनिया के अनेक देश ऐसे हैं जहां पर यूसीसी पहले से ही लागू है ,जैसे – सऊदी अरब, तुर्की, इंडोनेशिया, नेपाल, फ़्रांस, अज़रबैजान , जर्मनी , जापान और कनाडा जैसे अनेक देश शामिल हैं।
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर बना कानून
यूसीसी का यह क़ानून एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर बनाया गया है। इस समिति की अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई थीं। इस समिति का गठन 27.5.2022 को किया गया था।
बैठकों का लंबा दौर
इस समिति ने सभी धर्मों के लोगों के साथ 43 बैठकें की। समिति के सामने आये विषयों पर विचार विमर्श के लिए 72 बैठकें आयोजित की गई।
79 लाख एसएमएस और 29 लाख वाट्सएप मैसेज
इस कानून के बारे में समिति को नागरिकों से 79 लाख एसएमएस और 29 लाख वाट्सएप मैसेज प्राप्त हुए।
इस क़ानून को बनाने के बारे में देश के लगभग 2 लाख 33 हजार लोगों ने अपने विचार इस समिति को दिये थे।