राकेश शर्मा
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति केस में प्रवर्तन निदेशालय ने दो घंटों की गहन पूछताछ के बाद आख़िर गिरफ़्तार कर ही लिया। अब केजरीवाल की विश्वसनीयता पर अनेक सवाल उठ खड़े हुए हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की रीति-नीति, कार्यशैली व सियासत झूठ पर टिकी है।
घटनाक्रम से अब स्पष्ट हो गया है कि न तो दिल्ली की जनता केजरीवाल का साथ देने वाली है और न ही उनकी गिरफ्तारी से किसी को उनके प्रति सहानुभूति हुई है। राजनीतिक टिप्पणीकार साफ कह रहे हैं कि केजरीवाल के साथ आज केवल आप के कुछ लाभार्थी व गिनती के गिने-चुने वे ‘इंडी’ नेता हैं जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर केजरीवाल सत्ता में आए।
सवाल पूछा जा रहा है कि अन्ना आंदोलन से उपजे नेता ने ऐसा क्या कर दिया कि देश-प्रदेश के लोगों का विश्वास उनसे बिल्कुल उठ गया। आज कोई भी उनकी इस बात पर यकीन करने को तैयार नहीं है कि वह निर्दोष हैं और बदले की भावना से उन्हें फंसाया गया है।
पूरी दाल ही काली
कुछ टिप्पणीकार कह रहे हैं कि दाल में कुछ काला है, कुछ का तो यहां तक कहना है कि आप और अरविंद केजरीवाल की सियासत की पूरी दाल ही काली है। कहा जा रहा है कि दिल्ली प्रदेश की जनता भोली है और आम आदमी पार्टी ने उसकी भावनाओं से खिलवाड़ करके सत्ता हथिया ली।
सारी हकीकत समझ चुकी जनता
जनता अब सारी हकीकत समझ चुकी है, वह केजरीवाल के झांसे में नहीं आने वाली। जनता अतीत में जो भूल कर चुकी, उसे फिर नहीं दोहराने वाली। समझदार जनता और ईमानदार सरकारी एजेंसियां केजरीवाल को सच का आईना दिखा कर दूध का दूध और पानी का पानी करने में अब कोई कसर नहीं छोड़ने वाली।
सदैव अपने को क़ानून से ऊपर समझा
यह आरोप भी काफी गंभीर है कि केजरीवाल ने संवैधानिक पद पर रहते हुए भी सदैव अपने को क़ानून से ऊपर समझा और प्रवर्तन निदेशालय के नौ समनों की अवहेलना की। इसका क्या अर्थ लगाया जाए। कानून के प्रति इतना निरंकुश होकर केजरीवाल क्या साबित करना चाहते थे? क्या देश के संविधान पर वह विश्वास नहीं करना चाहते?
हर समन के बाद नया बहाना
हर समन के बादएक नया बहाना बनाकर अधिकारियों के समक्ष उपस्थित न होने का क्या कारण हो सकता है? अधिकारियों की संवेदनशीलता को मुख्यमंत्री ने क्या उनकी कमजोरी समझ लिया था। ईडी के अधिकारियों ने हर कार्य क़ानून सम्मत तरीके से किया।
गंभीर आरोपों से घिरे केजरीवाल कोर्ट के सामने गिड़गिड़ाए कि समन गलत हैं और मुझे गिरफ़्तारी से बचाया जाए, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने मामले का गंभीरता से अध्यन कर केजरीवाल को कोई छूट नहीं दी। न्यायाधीशों ने इस केस में कुछ तो ग़लत पाया होगा जो केजरीवाल के नामी वकील की पैरवी का कोई असर नहीं हुआ।
बचाव के सारे कानूनी रास्ते बंद हो जाने पर ही ईडी पूछताछ करने केजरीवाल ‘शीशमहल’ पहुंची और जब वहां भी मुख्यमंत्री ने कोई सहयोग नहीं किया तभी उन्हें गिरफ़्तार किया गया। लगभग दो वर्ष के अंतराल में शराब नीति घोटाले में यह सोलहवीं गिरफ़्तारी है और गिरफ़्तार लोगों में से किसी को भी उच्चतम न्यायालय तक बार बार दस्तक देने पर भी आज तक जमानत तक नहीं मिली है, सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका तक निरस्त हो चुकी हैं तो आप के प्रवक्ता बार बार प्रेस कांफ्रेंस कर झूठ का प्रचार क्यूं करते हैं कि कोई घोटाला ही नहीं हुआ। यदि कोई घोटाला नहीं हुआ और सर्वोच्च न्यायालय इन्हें कोई राहत नहीं दे रहा तो क्या अर्थ क्या लगाया जाए? परोक्ष रूप से आप के नेता देश की कानून एवं संवैधानिक व्यवस्था पर अविश्वास जता रहे हैं।