गुलशन वर्मा
नई दिल्ली। बुरा लगता था जब मुझे लोग घूरते थे। पर अब नहीं क्योंकि अब मुझे पता है मैं क्या हूं। मैं लाखों में नहीं, करोड़ों में एक हूं। मैं खास हूं। शीतल देवी.. वो नाम है जो भारत ही नहीं, दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणा बन गया है।
लोग हाथों से अपनी तकदीर लिखते हैं पर जम्मू-कश्मीर की 16 की बिटिया ने पैरों से अपनी किस्मत का सुनहरा पन्ना लिखा है। बिना बाजुओं के पैदा हुई शीतल की ख्वाहिशें भी घाटी से पहली बार बाहर निकलने के बाद अब बदल गई हैं। दो साल पहले कृत्रिम बाजुओं की तलाश में शीतल बेंगलुरु पहुंची थी। उसे बाजू तो नहीं मिले पर जीने की नई राह मिल गई। अब शीतल ने बाजुओं का ख्याल दिल से निकाल दिया है। वह जैसी है, उसी में खुश है क्योंकि उसके जैसा कोई नहीं। चीन के हांगझोऊ में अक्तूबर में हुए पैरा एशियाई खेलों में किश्तवाड़ जिले के दूरदराज लोई धार गांव के किसान मान सिंह और शक्ति देवी की बेटी शीतल की पैरों से तीर चलाते फोटो ने दुनिया भर में खूब सूर्खियां बटोरी थी।
उसके हाथों में भी चूड़ियां हों
शीतल भी चाहती थी गांव की दूसरी लड़कियों की तरह उसके हाथों में भी चूड़ियां हों। इसी हसरत में वह 2021 में बाजू लगवाने के लिए पहली बार घाटी से बाहर निकलकर बेंगलुरु पहुंची। वहां उनकी मुलाकात प्रीति से हुई। यहीं से शीतल की जिंदगी ने करवट ली।
शब्दों ने लक्ष्य ही बदल दिया
पैरा तैराक शरत गायवकवाड़ और भारतीय दृष्टिहीन टीम के कप्तान शेखर नायक के शब्दों ने तो शीतल का लक्ष्य ही बदल दिया। 14 साल तक अध्यापक बनने का सपना देखने वाली शीतल का लक्ष्य भी बदल गया। खेल का ककहरा नहीं जानने वाली शीतल मैदान में उतरने को तैयार हो गई। खेल भी ऐसा जो उनसे पहले उस जैसी किसी लड़की ने नहीं खेला था।
– मात्र दो साल में बन गईं दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी
अमेरिका के पैरा एथलीट मैट के वीडियो देखे
दुनिया के एकमात्र पुरुष अमेरिका के पैरा एथलीट मैट स्टुट्समैन (बिना बाजुओं) ही उनसे पहले तीरंदाजी करते थे। उन्हीं के वीडियो देखकर शीतल ने दो साल पहले डरते हुए पैरों से धनुष थामा था। अब उसी धनुष ने न सिर्फ उनकी जिंदगी बदल दी बल्कि ख्वाहिशें भी बदल दीं। शीतल करोड़ों लोगों की प्रेरणा बन गई हैं। वह अब तक 10 पदक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में जीत चुकी हैं।
पैरालंपिक एशियाई खेलों में तीरंदाजी में दो स्वर्ण और एक रजत सहित तीन पदक जीतकर इतिहास रचने वाली शीतल के निशाने पर अब मछली की आंख (2024 पेरिस पैरालंपिक) हैं। उन्होंने कहा मैं उसके लिए कड़ी मेहनत करूंगी। मुझे पूरी उम्मीद है मैं पदक ही नहीं, ओलंपिक चैंपियन बनकर आऊंगी। शीतल पैरों से तीर चलाकर पदक जीतने वाली दुनिया की पहली महिला हैं। शीतल पैरा विश्व तीरंदाजी की नवीनतम रैंकिंग में महिला कंपाउंड ओपन वर्ग में दुनिया की नंबर एक तीरंदाज बनीं।
रोजाना चलाती हैं 300 तीर
शीतल पढ़ाई में भी अव्वल हैं। साथ ही पैरों से खाना भी बना लेती हैं। 11वीं कक्षा की छात्रा शीतल शिविर में सुबह साढ़े सात बजे अभ्यास के लिए मैदान पहुंच जाती हैं। तीरंदाजी में रोजाना लगभग 300 तीर से अभ्यास करती हैं। शाम पांच बजे तक अभ्यास करती हैं। उसके बाद पढ़ाई करती हैं। छोटी बहन भी तीरंदाज हैं।