गुलशन वर्मा
चौधरी चरण सिंह किसानों के मसीहा, ऐसे पथ प्रदर्शक, जिनका योगदान पीढ़ी-दर-पीढ़ी गूंजता रहेगा। उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करना न केवल उनको सच्ची श्रद्धांजलि है, बल्कि उन मूल्यों को मान्यता देना भी है, जिनके लिए वे आजीवन खड़े रहे। यह सम्मान उनकी विरासत को अमर बनाए रखेगा।
सामंती व्यवस्था को खत्म कर हाशिये पर रहे लोगों को हक दिलाया चौधरी चरण सिंह ने। चौधरी चरण सिंह किसानों के मसीहा और भारत रत्न के सच्चे हकदार।
उनकी विरासत राजनीतिक क्षेत्र से भी परे
ऐसा राजनेता, जिनकी विरासत राजनीतिक क्षेत्र से भी परे फैली हुई है। जिन्हें अद्वितीय नेतृत्व, कृषि क्षेत्र में क्रांति और सामाजिक न्याय के प्रोत्साहन और लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा के लिए जाना जाता है। गाजियाबाद में जन्मे चौधरी चरण सिंह का अद्वितीय योगदान उनकी विरासत का आधार है। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने परिवर्तनकारी नीतियां बनाई ं। किसानों को उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित कराने के लिए कृषि मूल्य आयोग की स्थापना की। इसके माध्यम से सुगम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तंत्र की शुरूआत हुई, जो उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण है। उन्होंने किसानों को न सिर्फ उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाया, बल्कि बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाया और निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाया। उनकी दूरदर्शी नीतियों ने किसानों की आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाया। कृषि स्थिरता को बढ़ावा दिया और खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाया। एक आत्मनिर्भर और सशक्त कृषक समुदाय की नींव रखी। चौधरी चरण सिंह सामाजिक न्याय के अग्रज के रूप में उभरे।
सामंती संरचनाओं को खत्म करने पर जोर
व्यापक भूमि सुधारों के लिए चौधरी चरण सिंह ने सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कायम रखने वाली जमी हुई सामंती संरचनाओं को खत्म करने पर जोर दिया। संसाधनों के अधिक न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा देते हुए, समाज के हाशिये पर पड़े, आर्थिक कमजोर वर्गों के उत्थान की मांग की। दलित व हाशिये पर मौजूद वर्गों के अधिकारों की वकालत करते थे।
मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना
जब वह गृहमंत्री बने तो मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की।
पंचायती राज प्रणाली की शुरुआत मास्टरस्ट्रोक
स्थानीय शासी निकायों को शक्ति हस्तांतरित करने वाली पंचायती राज प्रणाली की शुरुआत प्राधिकरण के विकेंद्रीकरण में एक मास्टरस्ट्रोक थी।
नई इकोनॉमी की धुरी नरसिंह राव
पीवी नरसिंह राव देश के नौवें और दक्षिण भारत से आने वाले पहले प्रधानमंत्री थे। नरसिंह राव को देश की अर्थव्यवस्था को नए आयाम देने की धुरी माना जाता है। देश की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए बड़े स्तर पर काम किया। भारत जब 1991 में विदेशी मुद्रा भंडार संकट से जूझ रहा था, तब वह आर्थिक सुधार के लिए वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण का फार्मूला लेकर आए। वर्ष 1994 में कंप्यूटरीकृत नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की शुरुआत की। वर्ष 1996 तक भारत सबसे बड़ा एक्सचेंज बना। इसके अलावा भारत की विदेश नीति, भाषा और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर काम किया।
प्रधानमंत्री बनने पर राव का पहला लक्ष्य देश का राजकोषीय घाटा कम करना था। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण पर जोर दिया। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का रास्ता खोला। राव चाहते थे कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर आईजी पटेल वित्तमंत्री बनें लेकिन पटेल मना कर दिया। इसके बाद राव ने अर्थशास्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को चुना जिनकी मदद से देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की कोशिश शुरू हुई। नरसिंह राव वर्ष 1971 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। राव को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का करीबी माना जाता था। 1969 में जब कांग्रेस दो हिस्सों में बंटी तब राव ने इंदिरा का पूरा समर्थन किया था। 1991 में वो राजनीति से लगभग संन्यास ले चुके थे, इसी बीच प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया।
हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन
1960 के दशक में भारत भुखमरी के हालात में अनाज के लिए दुनिया के सामने हाथ फैलाने को मजबूर था। 1965 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को देशवासियों से एक समय का खाना छोड़ने तक की अपील करनी पड़ी,तब स्वामीनाथन ने उन्नत आनुवंशिक बीजों के जरिये गेहूं और चावल का उत्पादन बढ़ाकर देश को न सिर्फ भयावह हालत से बाहर निकाला, बल्कि देश को अनाज उत्पादन में आमनिर्भर बनाने की भी नींव रख दी। 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में सर्जन एमके संबासिवन और पार्वती गम्मत के घर जन्मे स्वामीनाथन के दिलो-दिमाग पर 1943 में बंगाल में पड़े भीषण अकाल का गहरा प्रभाव पड़ा।
बंगाल का अकाल
इस अकाल के चलते करीब 40 लाख लोग मारे गए थे। क्या अन्न की कमी दूर नहीं की जा सकती, इस विचार ने स्वामीनाथन की दिलचस्पी कृषि में जगाई। कृषि विज्ञान से बीएससी करने के बाद 1947 में आनुवांशिकी और पादप प्रजनन के अध्ययन के लिए दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर को डिग्री प्राप्त की।
परिवार के दबाव में सिविल सेवा
परिवार के दबाव में उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी की। 1949-50 में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में उनका चयन हो गया। हालांकि, उसी समय आनुवांशिकी में शोध के लिए यूनेस्को फेलोशिप के लिए भी चयन हुआ। तब उन्होंने पुलिस सेवा के बजाय देश के लिए नीदरलैंड जाने का फैसला किया। बाद में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से 1952 में पीएचडी पूरी की।
डॉक्टरेट की 84 मानद उपाधियां मिलीं
उन्हें डॉक्टरेट की 84 मानद उपाधियां मिलीं, जिनमें से 25 अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की तरफ से दी गई। 1954 में स्वामीनाथन भारत लौट आए और केंद्रीय धान अनुसंधान संस्थान में काम करने लगे। इस बीच अमेरिकी विज्ञानी नॉर्मन बारलाग के साथ गेहूं की आनुवांशिक रूप से उन्नत फसलों पर काम करने लगे। उन्होंने भारत में मेक्सिको के बौने गेहूं को जापानी गेहूं के साथ मिलाकर मिश्रित बीज तैयार किया। परीक्षणों के दौरान इस बीज से उत्पादकत्व में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई, मगर और परीक्षण और प्रयोगों के लिए फंड की कमी हो रही थी।
1964 में जब देश में अकाल की स्थिति बनी, तो उन्हें फंड दिया गया। नतीजों को जब सरकार और किसानों ने देखा, तो सबकी आंखें खुली रह गई। इसके बाद उन्होंने इन बीजों में भारत को परिस्थितियों के लिहाज से और बदलाव किए। इन बीजों की बदौलत 1968 में देश में गेहूं के उत्पादन में 50 लाख टन की वृद्धि हुई।
कर्पूरी ठाकुर और लालकृष्ण आडवाणी भी हैं भारत के रत्न
केंद्र सरकार कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा पहले ही कर चुकी है। बिहार में पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता।
भाजपा के संस्थापकों में से एक लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने की सूचना खुद पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट कर दी थ्ाी। देश के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
भारत रत्न पाने पर क्या मिलता है
– भारत सरकार की ओर से एक प्रमाणपत्र और एक मेडल दिया जाता है। • इस सम्मान के साथ कोई धनराशि नहीं दी जाती।
– सरकारी महकमे की सुविधाएं मुहैया होती हैं। रेलवे की ओर से मुफ़्त यात्रा की सुविधा मिलती है।
– अहम सरकारी कार्यक्रमों में शामिल होने का न्योता मिलता है।
– सरकार ‘वॉरंट ऑफ़ प्रेसिडेंस’ में उन्हें जगह देती है। यह सरकारी कार्यक्रमों में वरीयता देने के लिए होता है।
– राज्य सरकारें अपने राज्यों में सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं।




















