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नई दिल्ली। एक समय ऐसा था जब भारत अधिकांश रक्षा उपकरणों का आयात करता था‚ लेकिन अब ऐसा नहीं है। भारत अब रक्षा क्षेत्र में निर्यातक की बड़ी भूमिका में आ गया है। पिछले आठ साल में रक्षा निर्यात में आठ गुणा वृद्धि हुई है। 2022 में भारत ने कुल 15920 करोड़ रुपये के रक्षा उपकरण निर्यात कर बड़ा रिकॉर्ड बनाया है।
देश 24वें स्थान पर
डिफेंस एक्सपोर्ट के मामले में भारत विश्व में 24 वें स्थान पर पहुंच गया है। देश रक्षा आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा है और हमारी काबिलियत का लोहा सारा विश्व मान रहा है। भारत ने अगले पांच वषों में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक के रक्षा उपकरणों का वार्षिक निर्यात करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
पीएम मोदी ने कहा था
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में ही कहा था ‘हमारी सरकार भारत को रक्षा उत्पादन केंद्र बनाने के प्रयासों का समर्थन करती रहेगी।’ रक्षा मंत्रालय के अनुसार‚ भारत अब 85 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रहा है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार ‘भारतीय उद्योग ने वर्तमान में रक्षा उत्पादों का निर्यात करने वाली 100 फर्मों के साथ दुनिया को रक्षा उपकरणों के डिजाइन और उनके विकास की अपनी क्षमता दिखाई है।’
बड़े व अहम हथियार
अभी हम जिन बड़े और महत्वपूर्ण हथियारों का निर्यात कर रहे हैं उनमें सुपरसोनिक ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल‚, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (तेजस),‚ पिनाका रॉकेट लांचर,‚ आकाश, अस्त्र और नाग मिसाइल‚ हल्के हथियार‚ अर्जुन टैंक‚ गोला–बारूद आदि शामिल हैं। डिफेंस एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए सरकार घरेलू रक्षा विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के साथ–साथ स्वदेशी हथियारों को छोटे मित्र देशों को भी बेच रही है।
इन देशों को निर्यात
अभी हम जिन देशों को अपने रक्षा उपकरण बेच रहे उनमें वियतनाम‚, भूटान‚, बांग्लादेश,‚ श्रीलंका, ‚ म्यांमार‚, मालदीव,‚ मॉरीशस शामिल हैं। वियतनाम के साथ हमने सुपरसोनिक क्रूज ब्रह्मोस मिसाइल की बिक्री करने की डील की है। पिनाका रॉकेट लांचर को खरीदने के लिए आर्मेनिया आगे आया है। आकाश मिसाइल की खरीदारी के लिए फिलीपींस‚, वियतनाम और सऊदी अरब ने अपने कदम आगे बढ़ाए हैं। म्यांमार और फिलीपींस ने ध्रुव हेलीकॉप्टर को खरीदने में रुचि दिखाई। मलेशिया 15 तेजस लड़ाकू विमानों को अपनाने को तैयार है। ये सभी देश अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत की तरफ देख रहे हैं‚ जो हमारे लिए अच्छी बात है।
विदेशी निर्भरता की मजबूरी
दरसअल‚ आजादी के बाद से ही भारत अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए उपयोग में आने वाली आवश्यक सैन्य सामग्री के लिए रूस‚, अमेरिका‚, इजराइल और फ्रांस जैसे देशों पर निर्भर था।
रक्षा क्षेत्र में सर्वाधिक खर्च करने वाला तीसरा देश बना भारत
चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के चलते पिछले कुछ वर्षों में भारत रक्षा के क्षेत्र में सर्वाधिक खर्च करने वाला विश्व का तीसरा देश बन चुका है। पाकिस्तान द्वारा लगातार आतंकवादी घुसपैठ की कोशिशों और चीन के साथ हालिया सीमा विवाद की वजह से रक्षा बजट का ज्यादा होना जरूरी भी है‚ लेकिन आज के भारत की खास बात यह है कि सेना की इन जरूरतों को अब देश में ही पूरा किया जाएगा।
सरकार ने लिए ठोस निर्णय
इसके लिए सरकार ने बीते कुछ समय में ठोस निर्णय लिये जिनके सकारात्मक परिणाम अब सामने भी आने लगे हैं। सबसे महत्वपूर्ण निर्णय था तीनों सेनाओं के प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का सृजन करना। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि तीनों सेनाओं में समन्वय स्थापित हुआ जिससे तीनों सेनाओं की आवश्यकताओं को स्ट्रीमलाइन करके उसके अनुसार रूपरेखा बनाने का रास्ता प्रशस्त हो गया। दूसरा प्रभावशाली कदम था रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की लिमिट 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 फीसदी करना। तीसरा सबसे बड़ा कदम जो सरकार ने उठाया वो था सेना के कुछ सामान (101 आइटम की लिस्ट) के आयात पर 2020–24 तक प्रतिबंध लगाना। ये कदम भारतीय डिफेंस इंडस्ट्री के लिए एक प्रकार से अवसर था, अपनी निर्माण क्षमताओं को विकसित करने का।
गर्व का विषय
यह देश के लिए गर्व का विषय है कि इस इंडस्ट्री ने मौके का भरपूर सदुपयोग करते हुए अनेक विश्वस्तरीय स्वदेशी रक्षा एवं सैन्य उपकरणों का सफलतापूर्वक निर्माण करके आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के प्रति ठोस कदम बढ़ाया है। इन उपकरणों के नाम और काम, दोनों भारत के गौरवशाली अतीत का स्मरण कराते हैं।
स्वदेशी तकनीक का विकल्प नहीं
वर्तमान में चल रहे यूक्रेन–रूस युद्ध और पूरी दुनिया में छाए कोरोना संकट के बीच अब यह बात हमें समझ जानी चाहिए कि स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है। वो दिन दूर नहीं, जब हम खुद अपने नीति नियंता बन जाएंगे और दूसरे देशों पर किसी तकनीक‚ हथियार और उपकरण के लिए निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। कम समय में ही भारत रक्षा क्षेत्र में विश्व का प्रमुख उत्पादक देश बनकर उभरेगा।