आजकल अनेक डीपफेक वीडियोज ने दुनियाभर में खलबली मचा रखी है। पिछले कुछ दिनों में कई सेलिब्रिटी के डीपफेक वीडियो सामने आ चुके हैं। सरकार अब इस पर सख्त कदम उठाने के लिए तैयार है। लोग अब मानने लगे हैं कि वर्तमान समय में डीपफेक ‘लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा’ बनता जा रहा है। सरकार इसके लिए नए नियमों को लागू करने की योजना बना रही है जो डीपफेक होस्ट करने वाले क्रिएटर और प्लेटफॉर्म, दोनों बड़े पर जुर्माना लगाने की अनुमति दे सकता है। नए नियम एआई- जनरेटेड डीपफेक और गलत सूचना पर नकेल कसने में कामयाब होंगे, हमें ऐसी उम्मीद करनी चाहिए। केंद्रीय सूचना, टेक्नोलॉजी और दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव भी डीपफेक को ‘लोकतंत्र के लिए खतरा’ मानते हैं। सरकार और अन्य स्टेकहोल्डर्स डीपफेक का पता लगाने, उनके अपलोडिंग और वायरल शेयरिंग को रोकने और ऐसे कंटेंट के लिए रिपोर्टिंग मैकेनिज्म को मजबूत करने के तरीकों पर कुछ ही दिनों में कार्रवाई योग्य व्यवस्था तैयार करने में जुटे हैं जिससे नागरिकों को इंटरनेट पर एआई जनरेटेड हानिकारक कंटेंट के खिलाफ एक्शन लेने की अनुमति मिल सके। डीपफेक केवल लोकतंत्र के लिए ही नहीं बल्कि तमाम व्यवस्थाओं, व्यक्तियों और कंपनियों के लिए एक नया खतरा बनकर उभरा है। डीपफेक समाज और उसके संस्थानों में विश्वास को भी कमजोर कर रहा है।
हाल ही में कुछ कलाकारों के डीपफेक वीडियो सामने आने तथा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस पर चिंता जताने के बाद केंद्रीय आईटी मंत्री ने जल्दी ही इस पर सख्त कानून लाने की बात कही है। पहले सरकार एक मसौदा लाने की बात कह रही है जिसमें डीपफेक वीडियो की जांच व पहचान करने, उसे प्रसारित होने देने से रोकने, इसकी जानकारी देने तथा इस बारे में जागरूकता फैलाने जैसे चार मानक होंगे। उसके बाद या तो मौजूदा कानूनों में संशोधन किया जाएगा या फिर नया कानून बनाया जाएगा, पर इतना तय है कि नए कानून में डीपफेक बनाने वालों और संबंधित सोशल मीडिया कंपनियों, दोनों पर जुर्माने का प्रावधान किया जाएगा। इंटरनेट आने के बाद से कृत्रिम मेधा यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को इस क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलब्धि बताया जा रहा था लेकिन दुर्भाग्य से इसका दुरुपयोग ही हो रहा है।
तस्वीरों या वीडियो में मौजूद शख्स का चेहरा बदलकर इतनी सफाई से किसी और का रूप बना दिया जाता है कि सजग और प्रशिक्षित आंखों के बगैर उन्हें भांप पाना लगभग नामुमकिन है। इसमें सिर्फ वीडियो ही नहीं, बल्कि ऑडियो भी बदल दिए जाते हैं। डीपफेक वीडियो ज्यादातर नामचीन लोगों के बनाए जा रहे हैं, ऐसे में, इनके सामने आने के बाद इन लोगों की छवि और सामाजिक प्रतिष्ठा पर कैसा असर पड़ता है, इसे समझा जा सकता है। यह एक ज्वलंत मुद्दा है और प्रधानमंत्री मोदी ने भी जी20 के वर्चुअल सम्मेलन और भाजपा मुख्यालय के एक कार्यक्रम में डीपफेक टेक्नोलॉजी को डिजिटल युग का बहुत बड़ा खतरा बताया है। उन्होंने स्वयं बताया कि एक फेक वीडियो में उन्हें ही गरबा गीत गाते दिखाया गया है। प्रसिद्ध नेताओं और सेलिब्रिटीज के ऐसे एक नहीं, अनेक वीडियो ऑनलाइन पड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर व्यापक चिंता जताते हुए एआई के वैश्विक स्तर पर विनियमन की जरूरत पर बल दिया था। दरअसल एआई को व्यक्ति और समाज के लिए जिम्मेदार होना पड़ेगा। इसीलिए डीपफेक पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कानूनों की जरूरत है। सोशल मीडिया के प्रचलन के इस दौर में फेक न्यूज और फर्जी वीडियो लंबे समय से लोगों की छवि खराब करने और निजता में सेंध लगाने का काम करते आ रहे हैं और इन पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कानून भी नहीं हैं और न ही सोशल प्लेटफॉर्म पर आने वाले कंटेंट की निगरानी और जांच के लिए कोई नियामक संस्था ही कार्यरत है। यह बात संतोषजनक है कि सरकार ने इस दिशा में एक निगरानी तंत्र के गठन की बात कही है लेकिन डीपफेक वीडियो, सिंथेटिक वीडियो और फेक न्यूज पर अंकुश लगाने के लिए समाज में जागरूकता फैलाने की भी उतनी ही जरूरत है। आज के वक्त में सोशल मीडिया की लत एक नशे की तरह है और इसके संदेश खासकर युवा आबादी के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करते हैं तो आने वाली पीढ़ियों को इसके खतरे से सावधान करने और उन्हें सुरक्षित करने की भी उतनी ही आवश्यकता है।
मीडिया ही नहीं, हम सभी लोगों को एआई के निगेटिव इफेक्ट्स जानने एवं समझने चाहिए ताकि गलत और नुकसान पहुंचाने वाला कंटेंट फैलने से रोका जा सके।
डीपफेक कंटेंट से निपटने के बारे में इनपुट लेने के लिए मेटा, गूगल और अमेजन समेत टेक इंडस्ट्री के अनेक प्रतिनिधियों से मुलाकात की गई है। इसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स को भी और अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने सोशल मीडिया कंपनियों को एक एडवाइजरी भी जारी की है और मौजूदा एडवाइजरी में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के 66डी सहित मौजूदा नियमों को दोहराते हुए कहा गया है कि कंप्यूटर संसाधन का इस्तेमाल करके धोखाधड़ी करने पर 3 साल तक की कैद की सजा और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगेगा। आईटी मध्यस्थ नियम 3(1)(बी)(vii) के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को भी नियमों और गोपनीयता नीति का पालन करना होगा। यह समझना जरूरी है कि एआई कैसे काम करता है क्योंकि डीपफेक का उपयोग जान-बूझकर गलत जानकारी फैलाने या दुर्भावनापूर्ण इरादे के लिए किया जा सकता है। इसके लिए मीडिया ही नहीं, हम सभी लोगों को एआई के निगेटिव इफेक्ट्स जानने एवं समझने चाहिए ताकि गलत और नुकसान पहुंचाने वाला कंटेंट राेका जा सके। अतः डीपफेक की चुनौती से निपटने को मुस्तैदी जरूरी है।