मार्च 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘टीबी मुक्त भारत अभियान’ की शुरुआत की थी। उस समय पीएम मोदी ने कहा था कि दुनिया ने टीबी को खत्म करने के लिए 2030 का समय तय किया है लेकिन भारत ने अपने लिए ये लक्ष्य 2025 तय किया है। भारत का लक्ष्य है कि 2025 तक देश को टीबी (ट्यूबरक्लोसिस या तपेदिक अथवा क्षय रोग) मुक्त कर लिया जाए। भारत के लिए ये एलान इसलिए भी अहम है क्योंकि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के मरीज भारत में ही हैं। 2025 में अब साढ़े चार साल से भी कम वक्त बचा है। ऐसे में क्या इतने कम वक्त में हजारों साल पुरानी बीमारी से पीछा छुड़ा पाना संभव है? आंकड़े बताते हैं कि इस लक्ष्य को पाने में भारत को शायद और वक्त लग सकता है लेकिन पीएम मोदी की भारत को टीबी मुक्त बनाने की लगन और उनके प्रयास असंभव कार्य को भी संभव कर दिखाते हैं, इस बात में भी कोई संदेह नहीं।
दुनिया के कुल 26 फीसदी तपेदिक के मामले अपने देश में है। वैसे पिछले कई वर्षों में भारत ने टीबी उन्मूलन की दिशा में महत्वपूर्ण काम किए हैं जिससे कर्नाटक और जम्मू-कश्मीर टीबी से मुक्त हो गए। इस क्रम में निक्षय मित्र और निक्षय पोषण योजना का खासतौर से जिक्र किया जा सकता है जिनके जरिए टीबी के मरीजों को आर्थिक मदद और पोषण सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। वस्तुत: टीबी का सीधा संबंध कुपोषण से है और विशेषज्ञों के मतानुसार टीबी से मुक्ति के लिए कुपोषण से निजात पाना आवश्यक है। करीब दस लाख टीबी मरीजों को निक्षय मित्र योजना के अंतर्गत गोद लेकर लोगों और संस्थाओं ने उल्लेखनीय कार्य कर मदद पहुंचाई है। इसके अतिरिक्त टीबी मरीजों के खातों में प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण द्वारा 2000 हजार करोड़ रुपये भेजे गए जो सच्चे मायनों में सराहनीय कदम है। यह भी प्रशंसनीय है कि जब 2020-21 के दौरान कोविड-19 के कारण पूरी दुनिया में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में दिक्कतें आईं पर भारत ने मरीजों की स्क्रीनिंग कर उन्हें इलाज और पोषण, दोनों उपलब्ध कराने का काम जारी रखा। इसी के परिणामस्वरूप प्रति लाख आबादी में टीबी के मरीजों का औसत भी कम हुआ जो एक उपलब्धि कही जा सकती है। 2015 के आधार वर्ष में जहां प्रति एक लाख आबादी में टीबी के मरीजों के 256 मामले मिले थे, वे 2021 में गिरकर प्रति एक लाख आबादी में 210 रह गए इसमें सरकारी कार्यक्रमों के साथ-साथ जनभागीदारी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी से टीबी मुक्त पंचायत कार्यक्रम का भी शुभारंभ किया जिसे टीबी से मुक्ति के आंदोलन में निर्णायक कदम कहा जा सकता है। पीएम मोदी ने यहां रुद्राक्ष कन्वेंशन में टीबी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में टीबी के पूर्ण उन्मूलन के लिए 5टी यानी ट्रेस, टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट एंड टेक्नोलॉजी का मंत्र दुनिया को दिया है। पीएम ने कहा, टीबी बीमारी के खिलाफ हमारे संकल्प को काशी एक नई ऊर्जा देगी। उन्होंने कहा कि भारत की भावना वसुधैव कुटुंबकम ्की है। इसलिए भारत ने जी20 थीम का नाम ‘वन वर्ल्ड, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ रखा है। इस कार्यक्रम में 40 देशों के प्रतिनिधि पहुंचे थे। टीबी कांफ्रेंस में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अधिशासी अधिकारी डॉ. लूसिका डिटियू ने मंच से निवेदन किया कि टीबी को हराने के लिए हमें एक भविष्य, एक परिवार, एक दुनिया और एक नेता चाहिए था। इसको हमने बनारस में पा लिया है। उनका कथन था कि भारत ने जिस तरह से दुनिया को टीबी का नया मॉडल दिया है, उसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस लड़ाई में संपूर्ण विश्व का नेतृत्व करें। इसकी जरूरत पूरी दुनिया को है। प्रधानमंत्री को उन्होंने सितंबर में न्यूयॉर्क में होने वाले वैश्विक सम्मेलन के लिए आमंत्रण भी दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मंच से ही मुस्कुराते हुए आमंत्रण को स्वीकार किया तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। 40 देशों के प्रतिनिधियों के साथ ही काशी की जनता ने भी इस प्रस्ताव का स्वागत किया। डॉ लूसिका ने भारत के वसुधैव कुटुंबकम ्की नीति की सराहना करते हुए कहा कि आज पूरी दुनिया एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य के रास्ते पर चलते हुए वन मोरल की तरफ बढ़ रही है। आज करोड़ों की संख्या में लोग विश्व में टीबी से जूझ रहे हैं। जी20 का यह स्लोगन और भारत का वसुधैव कुटुंबकम् ही पूरी दुनिया को नया रास्ता दिखाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य रखा है। वहीं, विश्व के दूसरे देशों में टीबी मुक्त दुनिया का लक्ष्य 2030 तक है। दुनिया से पांच साल पहले टीबी से जंग जीतकर भारत दुनिया के सामने नया मॉडल रखेगा। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही यह लक्ष्य सफल होगा। 2020 में पूरी दुनिया के 73 फीसदी मरीजों की जांच और इलाज भारत में हुआ जो कि दुनिया में स्वयं हर किसी के लिए एक नजीर है। यही नहीं, पीएम मोदी देश को बीमारियों से मुक्त कराने के प्रति कितने सजग हैं कि वे अपनी 99 वीं ‘मन की बात’ में भी लोगों के लिए अंगदान की प्रक्रिया को आसान किए जाने की बात करना नहीं भूले। उन्होंने बताया कि अंगदान को आसान बनाने और प्रोत्साहित करने के लिए पूरे देश में एक नीति पर काम हो रहा है। कार्यों को पूरा करने के प्रति प्रधानमंत्री मोदी की यही प्रतिबद्धता सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। इस तरह हम कह सकते हैं कि जिस तरह हमें पोलियो, स्मॉल पॉक्स और एमएनटी (मेटरनल एंड नियोनेटल टेटनस) से पूर्ण मुक्ति मिली, उसी तरह टीबी से भी हमें और दुनिया को पूर्ण निजात मिल सकेगी।