ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। नहीं सुन पाने वाले बच्चों की तकलीफ को उसके परिजन ही समझ पाते हैं। उनका इलाज कराना किसी गरीब परिवार के लिए आसान नहीं होता। मुंबई सहित देश में पैदा होने वाले हर 1 हजार में से 6 शिशुओं में बहरेपन की समस्या होती है, लेकिन समय पर इलाज नहीं होने और महंगा इलाज होने की वजह से सैकड़ों बच्चों को जीवन भर इस समस्या के साथ ही रहना पड़ता है। वहीं, जरूरतमंद बच्चों व बड़ों की इस गंभीर समस्या को दूर करने के लिए मुंबई के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर मनीष जुवेकर ने अनुकरणीय पहल की है।
डॉ. मनीष ने मरीजों की श्रवण शक्ति लौटाने का बीड़ा उठाया है। डॉ. मनीष भी अन्य डॉक्टरों की तरह रोज मरीज देखते हैं, लेकिन जब उनके पास कोई सुनने में असक्षम गरीब मरीज आता है तो वह उनकी मदद के लिए आगे बढ़ते हैं। कॉक्लियर इम्प्लांट के लिए करीब 14 लाख रुपये के खर्च में होने वाले ऑपरेशन की खातिर वह एनजीओ की मदद की पहल करते हैं। इसके लिए उन्होंने 8 एनजीओ से संपर्क बना रखा है। अब तक वह 200 से ज्यादा लोगों की सुनने की क्षमता वापस ला चुके हैं।
महंगी है सर्जरी, मदद के लिए बढ़े हाथ
डॉक्टर के अनुसार, एक कान के कॉक्लियर इम्प्लांट की सर्जरी का कुल खर्च करीब 10 लाख रुपये के करीब आता है। इसमें से सिर्फ सर्जरी का ही खर्च करीब तीन लाख रुपये होता है। महामारी के बाद डॉ. मनीष के पास बहरेपन के शिकार मरीज अधिक आने लगे, जिनमें से अधिकतर गरीब परिवार से थे। पैसे के अभाव की वजह से वह किसी भी मरीज को लौटाना नहीं चाहते थे। ऐसे समय में उन्होंने मरीज की मुफ्त में सर्जरी करने और उपकरण उपलब्ध करवाने के लिए कुछ एनजीओ से संपर्क किया।
ऐसे बढ़ता गया डॉ. मनीष का कुनबा
राधा मोहन मेहरोत्रा ट्रस्ट जैसे कई और ट्रस्ट मरीजों की सर्जरी में इस्तेमाल होने वाला उपकरण मुफ्त में देने को तैयार हो गए। उपकरण उपलब्ध होने के बाद मनीष ने अपने अस्पताल में ही मरीजों की मुफ्त सर्जरी शुरू कर दी। सर्जरी के लिए मनीष को अन्य डॉक्टरों की भी मदद चाहिए थी। सर्जरी के दौरान मरीज को बेहोश करने या अन्य कार्यों में सहयोग के लिए जब उन्होंने अपने दोस्त डॉक्टरों से संपर्क किया, तो वे भी तैयार हो गए।
डॉक्टरों को दे रहे प्रशिक्षण
जटिल सर्जरी होने की वजह से बेहद कम डॉक्टर कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी करते हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों के मरीजों का उनके घर के करीब ही मुफ्त उपचार करने के लिए डॉ. मनीष स्थानीय डॉक्टरों को ट्रेनिंग देने का भी काम कर रहे हैं।
उनकी इस पहल से नागपुर, अमरावती, यवतमाल और सूरत के कुछ डॉक्टर भी मरीजों की मुफ्त सर्जरी कर रहे हैं।
सर्जरी के बाद स्पीच थेरेपी
सर्जरी के बाद भी शब्द और आवाज पहचाने के लिए करीब एक साल तक मरीज को स्पीच थेरेपी की जरूरत पड़ती है। यह मदद भी मरीजों को मुफ्त में उपलब्ध कराई जाती है। सुनने की क्षमता नहीं होने की वजह से मरीज बोल भी नहीं पाते हैं। स्पीच थेरेपी से मरीज सामान्य जीवन जीने लगते हैं।
समय पर पहचान जरूरी
बहरेपन की समस्या बच्चों में जन्मजात होती है। ऐसे में एक वर्ष से चार वर्ष की आयु तक कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी होने पर सर्जरी का रिजल्ट 90 प्रतिशत से अधिक मिलता है, आयु बढ़ने पर सर्जरी की सफलता का प्रतिशत कम होने लगता है।
मुफ्त जांच की व्यवस्था
शिशु के जन्म के बाद कानों की जांच होने का अनिवार्य नियम नहीं होने के कारण यह समस्या बढ़ती जा रही है। जागरूकता की कमी के कारण माता-पिता भी बच्चे की सुनने की क्षमता की जांच पर ध्यान नहीं देते हैं। नतीजतन माता पिता को देरी से बच्चे की परेशानी का पता चलता है। इसके लिए डॉ. मनीष ने अपने चेंबूर स्थित जुवेकार हॉस्पिटल में शिशुओं की मुफ्त में जांच करने की व्यवस्था की है।