विशेष संसद सत्र की शुरुआत से एक दिन पहले उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने गत रविवार यानि कि 17 सितंबर को नए संसद भवन के गजद्वार के शीर्ष पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया और इसे ऐतिहासिक करार दिया। वास्तव में यह एक ऐतिहासिक पल था भी। पुरानी संसद के 75 वर्ष के लंबे कार्यकाल के बाद पूर्ण रूप से स्वदेशी नए संसद भवन में संसद की कार्यवाहियां प्रारंभ होना एक अद्भुत पल था जो आत्मनिर्भर भारत के युग परिवर्तन का गवाह बन रहा था। आज वास्तव में सारा विश्व भारत की शक्ति और योगदान को पूरी तरह से पहचान रहा है। आज हम ऐसे समय में रह रहे हैं, जहां भारत विकास और उपलब्धियां देख रहा है।
लोकतंत्र के नए मंदिर से नए भारत की नींव को और मजबूत करने वाले फैसले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार लेगी, इसमें कोई दो राय नहीं है। इसी क्रम में संसद के नए भवन में कार्यवाही के पहले दिन ही 19 सितंबर को पीएम मोदी ने महिला आरक्षण बिल पेश किया जिसे 27 साल पूर्व 12 सितंबर 1996 को पहली बार पेश किया गया था पर अनेक सरकारें आने के बाद भी अभी तक यह पारित नहीं हो सका था। मोदी सरकार ने इस बिल को ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ नाम दिया है और इस बार इसके लोकसभा में पारित होने में कोई अड़चन नहीं थी क्योंकि मोदी सरकार के पास पूर्ण बहुमत है।
संसद का यह पांच दिवसीय विशेष सत्र 18 सितंबर से शुरू हुआ था। संसद के इस विशेष सत्र के पहले दिन की कार्यवाही पुराने संसद भवन में प्रारंभ हुई और उसके अगले दिन नए संसद भवन में सत्र की शेष बची कार्यवाही को पूर्ण किया गया। हालांकि सत्र का एजेंडा सामने आने के बाद भी तमाम अटकलें लगाए जाने का क्रम शुरू हो गया था। बातें ‘एक देश, एक चुनाव’ से लेकर देश का नाम बदलने तक की हो रही थीं। यहां यह उल्लेख करना भी लाजिमी है कि यह विशेष सत्र संसद का संयुक्त अधिवेशन नहीं था। एक बात यह भी कही गई थी कि यह सत्र पुरानी संसद से नई संसद में जाने के लिए बुलाया गया। 862 करोड़ रुपये की लागत से बने नए संसद भवन में लोकसभा के 888 और राज्यसभा के 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। आगे क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की मंशा साफ है कि संसद में ऐसे कानूनों को सरकार लाना चाहती है जिनसे देश का विकास हो और वह आत्मनिर्भर बने। एक और बात यह भी कही जा रही है कि वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाएगा। दुनिया के सबसे बड़े चुनाव में देश की 1.431 अरब की आबादी में से अनुमानतः एक अरब लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकार यानी मतदान का उपयोग करने के पात्र होंगे। हालांकि लोकतंत्र के इस उत्सव में अभी कुछ माह का विलंब है लेकिन पहले से ही ‘हैशटैग 2024 चुनाव’ देश की जनता का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। सरकार ने एक एजेंडा जारी किया था कि 75 साल की संसदीय यात्रा और अन्य चीजों के अलावा नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक विधेयक पर चर्चा हो लेकिन विपक्षी दल इस बात से आश्वस्त नहीं दिखे।
संसद के इस विशेष सत्र के दौरान जिन मुद्दों को लेकर अटकलें लगाई जाती रहीं उनमें ‘इंडिया’ पर ‘भारत’ को प्राथमिकता देने, समान नागरिक संहिता विधेयक, एक राष्ट्र-एक चुनाव का प्रस्ताव, महिला आरक्षण विधेयक, सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए कोटा और रोहिणी आयोग की रिपोर्ट पेश करने जैसे मुद्दे शामिल रहे। कोई भी निश्चित रूप से कुछ नहीं जानता था क्योंकि हमेशा से मोदी सरकार का एक अनुमानित पहलू आश्चर्यचकित करने की इसकी क्षमता रही है। फिर भी वर्ष 2024 के चुनाव में ‘वाई फैक्टर’ यानि युवाओं का वोट अहम होगा। अनुमान है कि अगले वर्ष नौ करोड़ से अधिक नए मतदाता वोट डालने के काबिल होंगे। कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही युवाओं को लुभाने में लगी हैं। वर्ष 2014 में भाजपा की जीत (जो कि 25 वर्षों में पहला बहुमत का जनादेश था) युवा आकांक्षाओं और पीएम मोदी की गुजरात मॉडल की पेशकश से संचालित थी, तो 2019 का जनादेश एक निर्णायक सरकार की धारणा से प्रेरित था। यह सच है कि गर्व मायने रखता है और जी20 तथा चंद्रयान-3 एवं आदित्य- एल1 की सफलताएं भावनाओं को प्रेरित करेंगी, इसमें कोई शक नहीं है।
जानकारों की मानें तो अगले लोकसभा चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण ताकत महिला मतदाता भी होंगी। पिछले दो दशकों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा है। वर्ष 2019 के चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या 67.18 प्रतिशत थी, जो पुरुष मतदाताओं की संख्या (67.01 प्रतिशत) से अधिक थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि देश भर के विधानसभा चुनावों में महिलाएं निर्णायक मतदाता के रूप में उभर कर सामने आ रही हैं। इस बात में कोई हैरानी नहीं है कि विभिन्न राज्य सरकारें महिलाओं को सीधे धन हस्तांतरित करने के लिए योजनाएं शुरू करने की होड़ में लगी हैं। तमिलनाडु में कलैग्नार मगलिर उरीमाई थोगई थिट्टम, कर्नाटक में गृहलक्ष्मी योजना और मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना इसके उदाहरण हैं। इसमें भी आश्चर्य की बात नहीं कि विपक्ष इस बात से चिंतित है कि पीएम मोदी महिला आरक्षण विधेयक पारित कराकर मतदाताओं का मूड ही बदल सकते हैं। इस तरह एक बात तो कही जा सकती है कि हाल की घटनाएं वर्ष 2024 के चुनाव के लिए माहौल तैयार करेंगी जिनमें नई संसद का शुभारंभ भी शामिल है। संसद भवन की पुरानी इमारत अब इतिहास बन गई है। पुराना संसद भवन 96 वर्ष से अधिक समय तक कई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों और भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का साक्षी रहा है। इसे अब ‘संविधान सदन’ का नाम दिया गया है।