ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। लोकसभा एवं विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने वाला कानून पारित हो चुका है, लेकिन यह 2029 से लागू होगा। इसके चलते यह माना जा रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल महिला उम्मीदवारों को ज्यादा टिकट देने की पहल कर सकते हैं। इस बीच, सरकारी आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि आजादी के बाद से लोकसभा चुनाव मैदान में उतरने वाली महिलाओं की संख्या 16 गुना तक बढ़ गई है। हालांकि उनकी जीत का प्रतिशत घटा है।
सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव में 45 महिलाएं लोकसभा चुनाव में मैदान में थीं, जिनकी संख्या 16 गुना बढ़कर 2019 में 726 हो गई। 1952 में पहले लोकसभा चुनाव का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। दूसरी तरफ दूसरे लोकसभा चुनाव में 1473 पुरुष प्रत्याशी मैदान में थे और 2019 में उनकी संख्या पांच गुना बढ़कर 7322 हो गई। चुनाव के ये आंकड़े बेहद रोचक हैं। ये बताते हैं कि दूसरे लोकसभा चुनाव में भले ही 45 महिलाएं मैदान में उतरी थीं, लेकिन उनमें से 27 ने जीत दर्ज की थी और विजयी रहने का प्रतिशत 60 रहा। वहीं 467 पुरुष उम्मीदवार जीते थे, जिनके जीतने की दर 31.7 फीसदी रही।
पश्चिम बंगाल में ज्यादा महिला विधायक
लोकसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी 14 फीसदी तक पहुंची है, लेकिन विधानसभाओं में बहुत कम राज्यों में ही महिलाओं की भागीदारी 14 फीसदी तक हो पाई है। अभी सिर्फ पश्चिम बंगाल ही एक ऐसा राज्य है, जहां 14 फीसदी महिला विधायक हैं। अन्य राज्यों में यह संख्या इससे कम है।
महिलाओं का वोट प्रतिशत बढ़ा
आंकड़ों के अनुसार लोकसभा एवं विधानसभाओं में भले ही महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम हो, पर जनप्रतिनिधियों को चुनने में अब उनकी भूमिका बढ़ने लगी है। 17वीं लोकसभा में पहली बार पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले। तब पुरुषों का मतदान प्रतिशत 67 और महिलाओं का 67.2 प्रतिशत दर्ज किया गया था।




















