ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत के लोकसभा चुनाव में 21 करोड़ से ज्यादा युवा मतदाता अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे। इस वजह से युवा मतदाताओं की लोकसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका रहेगी। भारत में लोकसभा चुनाव के लिए 97 करोड़ मतदाता अपना मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। सबसे अहम बात यह है कि चुनाव में पहली बार वोट देने वाले यानी 18-19 साल के मतदाताओं की संख्या 1.82 करोड़ है। इसके अलावा 20 से 29 साल के युवा वोटरों की संख्या 19.74 करोड़ है। ये युवा मतदाता किसी भी हार-जीत में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
एक समाचार एजेंसी ने ऐसे कुछ युवा मतदाताओं से बात की जो पहली बार वोट डालने जा रहे हैं। युवा मतदाता लोकसभा चुनाव में भाग्य विधाता की भूमिका में होंगे। यह भी सच है कि युवा जिसके साथ होते हैं, सरकार उसकी होती है। सियासी दल इसको बखूबी जानते हैं, इसलिए दल युवाओं को लुभाने के लिए हर जतन करते दिख रहे हैं। युवाओं के मुद्दे पर वार-पलटवार हो रहे हैं। हालांकि गैजेट्स और इंटरनेट से लैस युवा वर्ग सबको खामोशी से परख रहा है और उनके दावों को तौल रहा है।
मुंबई यूनिवर्सिटी के 22 वर्ष के एक छात्र रमेश ने कहा कि वह पार्टियों द्वारा धर्म को मुद्दा बना देने से नाखुश हैं। फिर भी, भारत की अर्थव्यवस्था बहुत तेज गति से बढ़ रही है और वह 2022 में पूर्व औपनिवेशिक शासक ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। वह चाहते हैं कि मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी फिर से जीत हासिल करे। वह बोले कि जिस तरह से विकास हो रहा है, इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ रहा है और जो कुछ भी चल रहा है, मैं चाहूंगा कि मौजूदा सरकार बनी रहे। कितने उत्साहित हैं युवा वोटर इस पर दक्षिण की रहने वाली 2 2 साल की सॉफ्टवेयर डेवलपर कहती हैं कि मैं भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा बनने और पहली बार अपनी राय जाहिर करने को लेकर अति उत्साहित हूं। मुझे खुशी है कि मेरा वोट मायने रखता है।
वह मोदी सरकार के कार्यकाल में हासिल उपलब्धियों की तारीफ करती हैं पर बेरोजगार युवा भारतीयों को काम खोजने में मदद करने के लिए और अधिक कोशिश किए जाने की जरूरत बताती हैं।
अधिकार के लिए आवाज उठाते ट्रांसजेंडर
देश की करीब 1.4 अरब आबादी अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आती है, जिसमें ट्रांसजेंडर समुदाय भी शामिल है। इनकी संख्या कई लाख होने का अनुमान है। हिंदू आस्था में ‘तीसरे लिंग’ के कई संदर्भ हैं। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को पुरूष या महिला के बजाए एक तीसरे लिंग का दर्जा दिया था। कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक आदेश में सरकार से कहा था कि ट्रांसजेंडर को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा समुदाय माना जाए और उन्हें नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण दिया जाए। इससे भारत के करीब तीस लाख से अधिक ट्रांसजेंडर को फायदा हुआ और उन्हें भी आम नागरिकों की तरह हर अधिकार मिलने लगे। चुनाव आयोग के मुताबिक देश में इस वक्त 48,044 थर्ड जेंडर मतदाता पंजीकृत हैं। वहीं साल 2019 में यह संख्या 39,075 थी। हालांकि इन सबके बावजूद ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को आज भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। एक मुस्लिम ट्रांसजेंडर ने कहा कि उन्हें अभी भी हर आने वाली सरकार से इस समुदाय के उत्थान के लिए और बेहतर काम किए जाने की उम्मीद है।