एकतरफ जहां विश्व के अनेक देश आर्थिक मंदी से उबरने के लिए जूझ रहे हैं वहीं इसके इतर अनेक चुनौतियों के बावजूद भारत के सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बने रहने के संकेत मिल रहे हैं। भारत जिस तरीके से आर्थिक मोर्चे पर डटा हुआ है उसको देख कर यह कहा जा सकता है कि भारत की संभावनाएं बेहतर ही रहेंगी। वैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने अपने एक ताजा आकलन में चालू वित्त वर्ष 2023-2024 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 6.1 फीसद से घटा कर 5.9 फीसद कर दिया है पर कहा जा सकता है कि यह कोई बहुत बड़ा फेरबदल नहीं है। हमें आर्थिक मंदी के खतरों के प्रति भी सतर्क रहना होगा। आर्थिकी के ढांचे में इतना या इससे भी कम बिंदुओं पर आने वाले फर्क का अर्थव्यवस्था की समग्र तस्वीर पर बुरा असर पड़ सकता है। अत: अब तक जो प्रयास अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए किए गए हैं अथवा किए जा रहे हैं, उन पर निरंतर नजर बना कर रखनी होगी।
आईएमएफ की ओर से वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को लेकर जनवरी में बताया गया था कि वृद्धि अनुमान दर 6.8 फीसद रहेगी पर अब इस पूर्वानुमान को घटा कर 6.3 फीसद कर दिया गया है। साफ है कि दुनिया भर में उत्पादन और सेवाओं में उपज रही चुनौतियों के मद्देनजर आर्थिक मोर्चे पर जो उतार-चढ़ाव हो रहे हैं, उन्हीं के कारण विश्व में मंदी के संकेत भी परिलक्षित हो रहे हैं। इसका असर भारत पर भी होगा, इसमें संदेह नहीं पर भारतीय ढांचे की यह बुनियादी खूबसूरती है कि वह ऐसी परिस्थितियों में खुद को संभालने की क्षमता रखता है। यही वजह है कि भारत इतनी मुश्किलों के बीच भी निरंतर विकसित हो रही अर्थव्यवस्था बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के स्तर पर भी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाए रखने के कदम निरंतर उठाए जा रहे हैं।
आईएमएफ ने भले ही आंकड़ों में भारत में आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट की बात कही है पर इसके बावजूद उसका यही कहना है कि दुनिया में भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। यहां यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि रोजगार के मोर्चे पर मौजूदा स्थिति को और बेहतर करने के प्रयास जारी रखने होंगे। बड़ी तादाद में लोगों की क्रयशक्ति में गिरावट न आए, ऐसी व्यवस्थाएं भी करनी होंगी ताकि भारत की आर्थिक वृद्धि दर पर असर न पड़े। आईएमएफ और विश्व बैंक के 2023 में भारत के सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था होने के अनुमानों के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का भी कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार कायम रहेगी। संरचनात्मक सुधारों पर सरकार का ध्यान कायम होने के साथ-साथ एक अनुकूल घरेलू नीति के परिवेश ने भी भारत में घरेलू आर्थिक गतिविधियों को निरंतर मजबूत बनाए रखा है। जिस तरह के आर्थिक झटकों से उबरना दूसरे देशों के लिए कई बार बेहद मुश्किल हो जाता है, उसमें भी भारत न केवल हालात का सामना करता है, बल्कि अपनी रफ्तार को स्थिर बनाए रखने में भी कामयाब रहता है।
केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्री नारायण राणे ने आर्थिक मंदी को लेकर एक बयान दिया था। उन्होंने मीडिया से कहा था कि अगर भारत को आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा, तो केंद्र ऐसी स्थिति से बचने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है। मौजूदा समय में बड़े विकसित देश भी आर्थिक मंदी का सामना कर रहे हैं। भारत सरकार और पीएम मोदी भी यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं कि नागरिक इससे प्रभावित न हों।
वैसे यह तसल्ली देने वाली खबर है कि भारत के औद्योगिक उत्पादन में तेजी आई है और इंडस्टि्रयल प्रोडक्शन 5.6 फीसदी की दर से बढ़ा। भारत सरकार द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार फरवरी 2023 में वार्षिक आधार पर इंडेक्स ऑफ इंडस्टि्रयल प्रोडक्शन (आईआईपी) 5.6 फीसदी दर्ज किया गया है। औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों में यह तेजी लगातार दूसरे महीने दर्ज की गई है। जनवरी में आईआईपी 5.2 फीसदी रहा था। आईआईपी आंकड़े देश में उद्योगों की समूची स्थिति दिखाते हैं। दिसंबर में यह 5 फीसदी से नीचे 4.3 फीसदी पर चला गया था जबकि पिछले साल नवंबर में यह 7.6 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा था। आईआईपी में तेजी बताती है कि देश में आर्थिक गतिविधियां लगातार मजबूत बनी हुई हैं।
महंगाई के मोर्चे पर भी मामूली राहत मिली है। मार्च महीने में खुदरा महंगाई दर 15 महीने के निचले स्तर पर रही। मार्च 2022 में महंगाई दर 6.44 फीसदी रही थी। खाद्य पदार्थों की महंगाई बीते महीने 4.79 फीसदी रही, फरवरी में यह 5.95 फीसदी थी। मासिक आधार पर इसमें बड़ी गिरावट आई है। बता दें कि जनवरी में खुदरा महंगाई दर तीन महीने के उच्चतम स्तर पर 6.52 फीसदी पर पहुंच गई थी। मार्च में सब्जियों की कीमतों में 8.51 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। मार्च 2022 में कोर महंगाई दर 6.1 फीसदी से घटकर 5.8 फीसदी पर आ गई। फरवरी में यह 6.1 फीसदी थी। कुल मिला कर जो हालात हैं वे बेहतर अर्थव्यवस्था बनने की ओर ही इशारा कर रहे हैं। इस बेहतरी को पीएम मोदी का डिजिटल इंडिया का अभियान और बल प्रदान कर रहा है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने औपचारिक रूप से 1 जुलाई 2015 को प्रारंभ किया था। भारत को एक सशक्त डिजिटल अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए सरकार का यह कार्यक्रम महत्वाकांक्षी होने के साथ-साथ साहसी भी है। आज भारत में लगभग आधी आबादी स्मार्टफ़ोन और डिजिटल वॉलेट का इस्तेमाल करती है। भारत के जी20 शेरपा अमिताभ कांत तो भारत में आई इस डिजिटल क्रांति के मॉडल को दुनिया के बाकी हिस्सों में ले जाना चाहते हैं जिसने भारत में डिजिटलीकरण के दम पर अपने नागरिकों का जीवन बदलने में अभूतपूर्व भूमिका निभाई है क्योंकि यह अधिक उत्पादक रूप से कुशल अर्थव्यवस्था के निर्माण के योग्य है।