प्रधानमंत्री मोदी यह कहते हुए कि भारत हमेशा से ब्रिक्स–विस्तार का पक्षधर रहा है और वह तो जी20 देशों में भी अफ्रीकी यूनियन को स्थायी सीट देने का प्रस्तावक है, बाजी को अपने पक्ष में करने में कामयाब रहे।
दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में आयोजित ब्रिक्स के 15वें समिट पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई थीं। उसमें भी सबके दिमाग में यही बात चल रही थी कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मंच पर क्या बोलेंगे। ब्रिक्स के भविष्य और विस्तार के नज़रिए से 22 से 24 अगस्त के बीच आयोजित जोहानिसबर्ग समिट का महत्व काफी ज्यादा रहा। इस सम्मेलन में ग्रुप के विस्तार पर जो सहमति बनी है उसके बाद इस संगठन की दिशा और दशा, दोनों में बदलाव की अपार संभावनाएं तलाशी जाने लगी हैं। ब्राजील, भारत, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका, पांच देशों वाले इस ग्रुप के प्रति अन्य देशों का आकर्षण भी बढ़ा है। दरअसल ब्रिक्स के विस्तार को लेकर चीन और रूस ज्यादा उतावले हैं। करीब 40 देशों ने इसकी सदस्यता में रुचि जाहिर की है।
आम सहमति से ब्रिक्स के विस्तार की भारत की हरी झंडी मिलने के बाद छह और देश- अर्जेंटीना, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र पूर्ण सदस्य बने हैं। दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता में हुए इसके शिखर सम्मेलन में पहले यह कहा जा रहा था कि भारत उसके विस्तार के पक्ष में नहीं है। विस्तार का प्रस्ताव चीन का था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी यह कहते हुए कि भारत हमेशा से ब्रिक्स–विस्तार का पक्षधर रहा है और वह तो जी20 देशों में भी अफ्रीकी यूनियन को स्थायी सीट देने का प्रस्तावक है, बाजी को अपने पक्ष में करने में कामयाब रहे। 14 वर्ष पूर्व भारत, ब्राजील, चीन और रूस ने मिलकर जब यह ग्रुप बनाया था। तब इसका उद्देश्य इन देशों में व्यापार और विकास को और विकसित करना था। दक्षिण अफ्रीका इस समूह से साल 2010 में जुड़ा और उसके बाद से किसी भी देश को इस समूह में शामिल नहीं किया गया। ब्रिक्स के बाकी देशों के साथ ही अमेरिका और यूरोप समेत पूरी दुनिया इस मसले पर प्रधानमंत्री मोदी के मुख से भारत का पक्ष जानना चाहती थी। ब्रिक्स के ताजा सम्मेलन का दूसरा बड़ा फोकस रहा सदस्य देशों के बीच का व्यापार। साझा मुद्रा की चर्चा तो एजेंडे से बाहर थी लेकिन इसकी जगह कई स्तरों पर इन देशों की स्थानीय मुद्रा में व्यापार को सरल बनाने पर जोर दिया गया है।
मसलन, चीन और ब्राजील ने इसी साल समझौता किया है कि दोनों अपनी मुद्रा में ही व्यापार करेंगे। ब्रिक्स समिट में 23 अगस्त को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कई सारे मुद्दों पर भारत का पक्ष रखा। उन्होंने अपनी बातों से स्पष्ट कर दिया कि भारत ब्रिक्स के विस्तार का विरोधी नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कहा कि भारत ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन करता है लेकिन इसमें सभी की रजामंदी के साथ ही आगे बढ़ा जाना चाहिए। साथ ही ब्रिक्स के विस्तार पर भारत के पक्ष को और स्पष्ट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से बाकी सदस्यों को याद दिलाया कि 2016 में भारत की अध्यक्षता के दौरान ब्रिक्स को बिल्डिंग रिस्पॉन्सिव, इंक्लूसिव और कलेक्टिव सॉल्यूशन से परिभाषित किया गया था।
इस बात के जरिए पीएम मोदी ने एक तरह से चीन और रूस को साफ संदेश दिया कि विस्तार की किसी भी कवायद में इस परिभाषा को अच्छे से ध्यान रखा जाना भी जरूरी है। पीएम मोदी ने कहा कि ब्रिक्स बैरियर्स को तोड़ेगा, अर्थव्यवस्थाओं को नया आयाम देगा, इनोवेशन को प्रेरित करेगा, नए अवसर पैदा करेगा और इन सबके जरिए ब्रिक्स भविष्य को नया आकार देगा। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स के सभी सदस्य मिलकर ब्रिक्स की इस नयी परिभाषा को सार्थक करने में सक्रिय योगदान देते रहेंगे। ब्रिक्स की नई परिभाषा भी एक तरह से संदेश ही है। इसके जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने समझाना चाहा कि भारत भविष्य के लिहाज से ब्रिक्स की प्रासंगिकता को देखता है और विस्तार से उस प्रासंगिकता पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए।
भारत का कहना है कि विस्तार हो लेकिन उससे पहले एक मानक तय होना चाहिए, जिस पर सभी सदस्य देशों की सहमति हो। भारत की चिंता की मुख्य वजह चीन और रूस का नजरिया है। यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस और चीन की जुगलबंदी भी बढ़ गई है। भारत सिर्फ़ इतना ही सुनिश्चित करना चाहता है कि ब्रिक्स का विस्तार किसी देश के निजी एजेंडा के तहत नहीं होना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिक्स की अहमियत पर प्रकाश डालते हुए वैश्विक चुनौतियों से निपटने में इसकी बड़ी भूमिका को लेकर भी बातें कहीं। उन्होंने सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग को और बढ़ाकर ब्रिक्स की मजबूती का रास्ता भी बताया। इस मकसद को हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 सुझाव भी दिए जो इस प्रकार थे- स्पेस के क्षेत्र में सहयोग बढ़े, शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट और टेक्नोलॉजी में सहयोग, स्किल्स मैपिंग, बिग कैट्स को लेकर सुझाव जिसके तहत बाघ, शेर, जगुआर, तेंदुआ और हिम तेंदुआ आते हैं तथा आखिरी सुझाव था ट्रेडिशनल मेडिसिन यानी पारंपरिक चिकित्सा।