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संदेश देता जनादेश

जाहिर है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के प्रति लोगों के भरोसे में कमी के रूप में नहीं माना जाना सकता।

by Blitzindiamedia
June 6, 2024
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दीपक द्विवेदी

18वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। इस बार देश के मतदाताओं ने जो जनादेश दिया है, उसमें वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार पीएम बनकर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी करके एक नया कीर्तिमान स्थापित करने जा रहे हैं। ऐसा पहली बार होगा जब केंद्र में कोई गैर कांग्रेसी पीएम तीसरी बार इस पद पर आसीन हो रहा है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी की यह लगातार तीसरी जीत ऐतिहासिक है। इसके साथ ही इस चुनाव ने एक बार फिर यह साबित किया है कि एग्जिट पोल कभी भरोसे लायक नहीं हो सकते क्योंकि अधिकतर ये एग्जिट पोल कभी भी सही तस्वीर जनता के सामने नहीं ला पाते। इस बार भी सारे एग्जिट पोल गलत साबित हुए और उनके दावे ध्वस्त हो गए।

इस बार के लोकसभा चुनाव के जनादेश ने एक अलग सा रोमांचक परिदृश्य पैदा किया है जिसकी वजह से भारतीय राजनीति के परिदृश्य में एक बार फिर गठबंधन की राजनीति का दबदबा दृढ़ होता दिखाई दे रहा है। नए जनादेश पर नजर डालें तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 291 सीट मिली हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को इस बार जनता ने स्पष्ट बहुमत के जनादेश से वंचित रखा है। इस वजह से भाजपा को सत्ता में बने रहने के लिए अपने गठबंधन के सहयोगियों पर पूर्ण रूपेण निर्भर रहना पड़ेगा। ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगियों को विपक्ष द्वारा निरंतर लुभाने और अपनी ओर लाने के प्रयास जारी रहेंगे। ऐसे में देखना होगा कि गठबंधन की सीमाओं के बावजूद भाजपा नेतृत्व अपने केंद्रीय मुद्दों पर कैसे कायम रहेगा और किस तरह से सामंजस्य बैठाएगा क्योंकि कहीं न कहीं नई सरकार के हाथ बंधे हुए होंगे।

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वैसे मतगणना शुरू होने के कुछ घंटों बाद ही राजग को बहुमत मिलना लगभग तय हो गया था पर अपने चुनावी अभियानों में चार सौ पार का नारा लगा रही भाजपा को इन नतीजों से निश्चित रूप से बहुत बड़ा झटका तो लगा ही है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में 2014 और 2019 की तुलना में राजग की सीटें जिस तरह कम हुई हैं, यह भाजपा के लिए निश्चित ही गहन आत्ममंथन का विषय है। इस चुनाव में जिन मुद्दों पर भाजपा ने 370 सीटें अपने दम पर लाने का जो ताना-बाना बुना था, वह कारगर साबित नहीं हो सका। ऐसा प्रतीत होता है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने, राम मंदिर निर्माण या फिर सीएए जैसे भाजपा के प्रमुख मुद्दे उतना प्रभाव बरकरार नहीं रख सके जितना भाजपा ने सोचा था। हालांकि इसका यह मतलब भी नहीं निकाला जा सकता कि केंद्र में दो कार्यकाल पूरे कर चुकी भाजपा के प्रति किसी तरह की सत्ता विरोधी लहर थी। चुनाव परिणाम तो यही बता रहे हैं कि इस बार वोट स्थानीय प्रत्याशियों से असंतुष्टि और स्थानीय मुद्दों से प्रभावित हुए हैं।

गौर करने वाली बात यह है कि अकेली भाजपा को बहुमत बेशक न मिला हो पर उसका वोट शेयर 2014 और 2019 की तुलना में स्थिर ही रहा है अथवा बढ़ा है; भले ही उसकी सीटें कम आई हों। इसके अलावा ओडिशा विधानसभा चुनाव जीत कर भाजपा पहली बार सरकार बना रही है जबकि अरुणाचल प्रदेश में लगातार तीसरी बार भाजपा की सरकार बनेगी। जाहिर है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के प्रति लोगों के भरोसे में कमी के रूप में नहीं माना जाना सकता। दरअसल अनेक महत्वपूर्ण मुद्दे अपने मुकाम तक सिर्फ इसीलिए ही पहुंच सके क्योंकि कि राजनीतिक नेतृत्व शक्तिशाली था और उसे कड़े फैसले लेने के लिए किसी का मुंह ताकने की आवश्यकता नहीं थी। अब जो सरकार बनेगी, उसमें ऐसी परिस्थितियां नहीं होंगी। अत: देखने वाली बात यह भी होगी कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनने पर वह अपने केंद्रीय मुद्दों को किस तरह आगे लेकर जाती है। एक दिलचस्प तथ्य यह भी परखने को मिलेगा कि इस प्रकार का खंडित जनादेश; जिसमें किसी भी एक दल के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है, गठबंधन के साथ देशहित में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर कितना कारगर सिद्ध होगा।

2014 और फिर 2019 की सरकार में कोरोना महामारी के बाद वैश्विक अनिश्चितताओं के दौर में देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था की तारीफ विश्व बैंक समेत तमाम वैश्विक एजेंसियों ने की तो इसकी वजह वे साहसिक फैसले थे जिन्हें लेने में प्रधानमंत्री मोदी कभी हिचके नहीं क्योंकि तब उनके हाथ अत्यंत सशक्त थे। अब लोकसभा चुनाव के नतीजे जिस तरह से सामने आए हैं, उनमें उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी। लोकतंत्र में विपक्ष मजबूत हो, इससे अच्छी स्थिति कोई हो नहीं सकती। गठबंधन सरकार में सहयोगियों का महत्व बढ़ने और विपक्ष के मजबूती के साथ खड़े होने से सरकारी नीतियों में संतुलन ही आता है पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व का शक्तिशाली होना भी अनिवार्य है। शायद इस बार वह स्थिति नहीं लग रही। अब तो समय ही बताएगा कि वर्तमान जनादेश; देश और मतदाता, दोनों को कहां ले जाता है क्योंकि यह जनादेश अपने में अनेक संदेश छिपाए है।

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