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नई दिल्ली। केंद्र व राज्यों के बीच विवाद के कुछ प्रमुख मुद्दों पर गहन चर्चा जरूरी है। केंद्र द्वारा संविधान के अनुच्छेद-356 का दुरुपयोग राज्य विधानसभा को भंग करने के लिए बार-बार किया जाता रहा है, जो संघीय सिद्धांत एवं राज्यों के अधिकारों के लिए घातक बनता जा रहा है। अंतरराज्यीय परिषद की बैठकों में विभिन्न वर्गों से अनुच्छेद- 356 के प्रयोग को ऐसे मामलों तक सीमित करने की मांग उठती रही है, जहां देश की राष्ट्रीय एकता या धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को गंभीर खतरा पैदा हो गया हो। अनुच्छेद-356 को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
राज्यपाल की नियुक्ति एवं भूमिका : केंद्र द्वारा राज्यों के लिए नियुक्त राज्यपाल का प्रावधान विवादास्पद रहा है, जो संघीय लोकतांत्रिक राजव्यवस्था के अनुरूप नहीं है। विश्व में कहीं भी किसी बड़े देश में राज्यों के लिए केंद्र द्वारा राज्यपाल नियुक्त करने का प्रावधान नहीं है। राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल की मंजूरी की समय सीमा भी निश्चित होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त राज्यपाल पर राज्य सरकार से खुले तौर पर असहमति एवं मतभेद व्यक्त करने को रोकने हेतु मापदंड होना चाहिए।
राज्य सूची पर केंद्र का दखल : इस बात की त्वरित समीक्षा करने की आवश्यकता है कि राज्य सूची से विधायी मामलों की संघ/समवर्ती सूची को स्थानांतरित करने के क्या प्रभाव होंगे। न केवल शिक्षा जैसे विषय को राज्य सूची से समवर्ती सूची में डालने से, अपितु तथाकथित केंद्र प्रायोजित योजनाओं में तीव्र वृद्धि द्वारा भी केंद्र सरकार पर राज्य सूची में घुसपैठ के आरोप लगते रहे हैंै। राज्य विषयों पर ये केंद्रीय योजनाएं, जिनमें केंद्र द्वारा लगाए गए कठोर वित्तीय निहितार्थों के अतिरिक्त राज्य की स्वायत्तता एवं उनके विकास अधिमानों को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त, समवर्ती सूची के तहत विषयों के क्षेत्रों पर संघ-राज्य के बीच परामर्श करने का कोई औपचारिक संस्थागत ढांचा नहीं है।
अखिल भारतीय सेवाएं : अखिल भारतीय सेवाएं केंद्र के विशिष्ट अधिकार क्षेत्र में हैं। कुछ शक्तियां राज्यों के साथ बांटी जा सकती हैं। राज्य सरकारों की अखिल भारतीय सेवाओं के नियमों एवं विनियमों के प्रशासन में विशिष्ट रूप से एक बड़ी भूमिका होनी चाहिए।
वित्तीय मुद्दे : भारत में राजस्व संघवाद हमेशा से बेहद समस्यात्मक रहा है। लम्बवत एवं क्षैतिज असंतुलन ने केवल अभी तक बने हुए हैं, अपितु कई मामलों में अधिक जटिल भी हो गए हैं।
लम्बवत असंतुलन : संघ-राज्य संबंधों के संदर्भ में भारतीय संविधान में आधारभूत असंतुलन इस तथ्य से पैदा होता है कि जबकि विकास व्यय (सिंचाई, सड़क, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि) और प्रशासनिक व्यय (कानून व्यवस्था, सामान्य प्रशासन इत्यादि) क्षेत्रों में बड़ी जिम्मेदारियां राज्यों को दी गई हैं, राजस्व संग्रहण की बेहद महत्वपूर्ण शक्तियां केंद्र को दी गई हैं।
अपर्याप्त राजस्व वितरण :केन्द्रीय करों के राज्यों को आवंटन के एक निष्पक्ष सिद्धांत पर कार्य करने की बेहद आवश्यकता है।
करारोपण की अवशिष्ट शक्तियां : राज्य करारोपण की अवशिष्ट शक्तियों को, विशिष्ट रूप से सेवाओं पर कर, राज्य को हस्तांतरित करने की मांग करते रहे हैं। इस मांग को दरकिनार करते हुए केंद्र ने संविधान संशोधन द्वारा सेवाओं पर कर लगाने की समस्त शक्तियां प्राप्त कर लीं।