भारत 3-4 जुलाई को नई दिल्ली में आयोजित होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। अंतरराष्ट्रीय नजरिए से 2023 का साल भारत के लिए बेहद खास है। इस वक्त भारत दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह जी20 की अगुवाई करने के साथ ही शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की भी अध्यक्षता कर रहा है। इस बार भारत ने सिक्योर-एससीओ का नारा दिया है। एससीओ की बैठक का मूल उद्देश्य ही आतंकवाद से मुकाबला है। भारत का मानना है कि किसी भी तरह से आतंकवाद को सही नहीं ठहराया जा सकता और इसे रोका जाना जरूरी है। इसमें सीमा पार से आतंकवाद समेत सभी तरह के आतंकवाद शामिल हैं जिसमें टेरर फंडिंग पर लगाम लगाने का मुद्दा भी है।
विगत दिनों नई दिल्ली में हुई रक्षा मंत्रियों की बैठक में भी एससीओ के सभी सदस्य देशों ने आतंकवाद से निपटने, विभिन्न देशों में कमजोर आबादी की सुरक्षा सहित सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों पर सहमति दर्शाई। सभी सदस्य देश इस पर सहमत थे कि आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की जानी चाहिए। सभी ने कहा कि अध्यक्ष के रूप में भारत इस क्षेत्र में पूरे विश्व के लिए एक सुरक्षित भविष्य तय करने में आगे बढ़कर नेतृत्व करेगा।
इस बैठक में विचार विमर्श के अंत में सभी एससीओ सदस्य देशों ने क्षेत्र को सुरक्षित, शांतिपूर्ण और समृद्ध बनाने के लिए सामूहिक इच्छा व्यक्त करते हुए एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर भी किए। इस बैठक में चीन, रूस, ईरान, बेलारूस, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान व ताजिकिस्तान के रक्षा मंत्रियों ने भाग लिया था।
– भारत किसी का पिछलग्गू नहीं है। पश्चिम या पूरब के देश क्या चाहते हैं, इसके दबाव में भारत नहीं आता। एक संप्रभु देश को ऐसा ही होना चाहिए।
आतंकवाद के संदर्भ में पीएम नरेंद्र मोदी का यह कथन भी सदैव याद रखने योग्य है कि दशकों से विभिन्न नामों और रूपों में आतंकवाद ने भारत को चोट पहुंचाने की कोशिश की है। अत: इसका जड़ मूल से खात्मा किया जाना अत्यंत जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सदैव एससीओ में सक्रिय रूप से भाग लेता रहा है और विभिन्न तंत्रों को पर्याप्त समर्थन प्रदान करता रहा है। 2017 में एक पूर्ण सदस्य देश के रूप में प्रवेश के बाद से भारत ने संगठन के साथ सक्रिय जुड़ाव बनाए रखा है। भारत एससीओ सदस्य देशों, पर्यवेक्षकों और संवाद भागीदारों के पारस्परिक लाभ के प्रस्तावों को शुरू करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। पहले भी एससीओ समिट में पीएम नरेंद्र मोदी अपने संबोधन में क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा, व्यापार एवं संपर्क, संस्कृति और पर्यटन सहित सामयिक, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दे उठा चुके हैं। आज दुनिया तमाम चुनौतियों का सामना कर रही है। ऐसे में एससीओ की भूमिका काफी अहम है।
एससीओ को एक तरह से अमेरिका के संगठन नाटो के दबाव को कम करने वाला संगठन और दुनिया के बेहद ताकतवर मंच के रूप में माना जाता है। यह संगठन यूरेशिया यानी एशिया और यूरोप के करीब 60 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है। एससीओ के सदस्य देशों का वैश्विक अर्थव्यवस्था में करीब 30 प्रतिशत का योगदान है। साथ ही दुनिया की 40 प्रतिशत जनसंख्या एससीओ देशों में ही रहती है। इनमें से करीब 80 करोड़ लोग युवा हैं।
साल 2005 में भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों को इस संगठन में ऑब्जर्वर के तौर पर शामिल किया गया था। इसके बाद 24 जून 2016 को भारत और पाकिस्तान ने ताशकंद में दायित्वों के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे जिससे एससीओ में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल होने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू हुई थी। उसके बाद 9 जून 2017 को भारत और पाकिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन का पूर्ण सदस्य बनाया गया। भारत का एससीओ में आना कितना असरदार है, यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि इस संगठन में चीन, रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है। भारत का कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है। एससीओ को इस समय दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है। एससीओ से जुड़ने से भारत को फायदा ही रहा है क्योंकि भारतीय हितों की जो चुनौतियां हैं, चाहे वो आतंकवाद हो, ऊर्जा की आपूर्ति या प्रवासियों का मुद्दा; ये सारे भारत और एससीओ, दोनों के लिए अहम मुद्दे हैं और इन चुनौतियों के समाधान की कोशिश निरंतर जारी है।
सदस्य होने के कारण शंघाई सहयोग संगठन में जितने भी दस्तावेज तैयार होंगे, उनमें भारत की चिंताएं भी नजर आएंगी। इससे पहले वुहान में जब प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की भेंट हुई थी, उसमें कोई एजेंडा नहीं था। वो दोनों देशों की आपसी समझ को बढ़ाने की मुलाकात थी लेकिन उसके बाद जो मुलाकात हुई थी, उसमें दोनों देशों के द्विपक्षीय मुद्दों को सुलझाने की कोशिश हुई। ब्रह्मपुत्र के पानी के डेटा को लेकर एमओयू हुआ। चावल और अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात को लेकर भी नई सोच बनी। दवाइयों और सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में दोनों देशों के सहयोग को बढ़ाने पर बात हुई। अब वर्तमान में भी जो बैठकें हुईं उनमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने भी बिना किसी हिचक के चीन व पाकिस्तान को मौजूदा हालात पर खूब खरी-खरी सुनाई और क्षेत्रीय शांति के लिए अपनी चिंताओं को भी मजबूती से रखा। अब आगामी होने वाली बैठकों में प्रतिभागी 2023-2025 में आपातकालीन स्थिति के उन्मूलन में सहायता प्रदान करने में सहयोग पर एससीओ सदस्य देशों के बीच एक समझौते के कार्यान्वयन के लिए कार्य योजना पर चर्चा और अनुमोदन करेंगे। कार्य योजना एससीओ सदस्य-राष्ट्रों के बीच आपातकालीन स्थितियों की रोकथाम और उन्मूलन से निपटने में सहयोग बढ़ाने में योगदान देगी ।
भारत ने समरकंद (उज्बेकिस्तान) में आयोजित 2022 एससीओ शिखर सम्मेलन में एससीओ की अध्यक्षता ग्रहण की थी। वर्तमान अध्यक्ष के रूप में भारत इस वर्ष राष्ट्र प्रमुखों की परिषद के अगले शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। साथ ही भारत ने अपनी नीतियों एवं रुख से यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी का पिछलग्गू नहीं है। पश्चिम या पूरब के देश क्या चाहते हैं, इसके दबाव में भारत नहीं आता। एक संप्रभु देश को ऐसे ही होना चाहिए।



















