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विदेश में शिक्षा

by Blitzindiamedia
May 17, 2024
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education abroad
दीपक द्विवेदी

भारत से विदेश में पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या में उतरोत्तर वृद्धि हो रही है। 5 वर्ष पूर्व यह संख्या सिर्फ 7 लाख थी जो अब बढ़ कर लगभग 18 लाख हो चुकी है। विदेश में अध्ययन का विकल्प चुनने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में वृद्धि निर्विवाद है। देश भर के छात्र टीओईएफएल, एसएटी और आईईएलटीएस जैसी अंतरराष्ट्रीय परीक्षाओं के लिए पूरे जोश और रणनीतिक तैयारी के साथ कमर कसते रहे हैं। उनका लक्ष्य अपने जीवन एवं करियर के क्षितिज को व्यापक बनाना और स्वयं को वैश्विक करियर के अनुरूप बनाना है। किंतु अब यहां बड़ा प्रश्न यह भी है कि आखिर अध्ययन के लिए भारत क्यों नहीं? और क्यों छात्र विदेश में अध्ययन का विकल्प चुन रहे हैं जबकि विदेश में पढ़ाई महंगी भी है और तमाम अन्य कारणों के अलावा भारतीय छात्रों की सुरक्षा भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है?

अनेक देश ऐसे हैं जिन्होंने अपने यहां के वीजा नियमों को अत्यंत कड़ा कर दिया है। यही नहीं, अनेक प्रकार के शुल्कों में भी बेतहाशा वृद्धि कर दी है। आस्ट्रेलिया ने तो अभी हाल ही में अपनी वीजा नीति में कुछ ऐसे सख्त मानदंड तय किए हैं जिससे पढ़ाई के मकसद से वहां जाने वाले भारतीय विद्यार्थियों के सामने नई मुश्किल खड़ी हो गई हैं। हर वर्ष भारत से लाखों की संख्या में छात्र हायर एजुकेशन की चाहत लिए आस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और युद्ध से पूर्व रूस उवं यूक्रेन आदि देशों में जाते रहे हैं तथा जा भी रहे हैं। कुछ समय पूर्व तक इन देशों में विदेशी छात्रों के लिए नियम-कायदों में इतनी अधिक सख्ती नहीं थी। इसलिए वहां जाने को लेकर आकर्षण भी था पर गत कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर बदले कूटनीतिक समीकरण और पढ़ाई, रोजगार तथा अन्य वजहों से दूसरे देशों में ठिकाना तलाशने वालों की बढ़ती संख्या ने जो नई परिस्थितियां उत्पन्न की हैं, उसमें उच्च शिक्षा का आकर्षण माने जाने वाले इन देशों में वीजा नियमों में तेजी से बदलाव किया जा रहा है। इससे भारतीय छात्रों की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने का ख्वाब देख रहे भारतीय छात्रों को एक और बड़ा झटका तब लगा जब ऑस्ट्रेलिया सरकार ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए अपनी वीजा जरूरतों में एक और बड़ा बदलाव करने का एलान किया। एंथनी अल्बनीज सरकार की ओर से किए जा रहे इन बदलावों में यह प्रावधान भी शामिल है कि अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अपनी सेविंग्स का सबूत दिखाना होगा। यह राशि कम से कम 29,710 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर होनी चाहिए। भारतीय करेंसी में यह राशि लगभग 16 लाख 30 हजार 735 रुपये होती है, जो कई मध्यमवर्गीय भारतीय छात्रों के लिए बहुत बड़ी राशि है। पिछले सात महीनों में ऑस्ट्रेलिया ने दूसरी बार इस राशि में इजाफा किया है। दरअसल वर्ष 2024 में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए वीज़ा मानदंडों में बदलाव की एक श्रृंखला शुरू हुई है। इससे कुछ इच्छुक भारतीय छात्रों के लिए अपने पसंदीदा गंतव्यों पर जाना कठिन होता जा रहा है। ब्रिटेन ने भी अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए नए निर्देश जारी किए हैं जिसमें जनवरी 2024 से परिवार के सदस्यों को शामिल करना सीमित कर दिया गया है। इसका एक विकल्प यह है कि छात्र अपने परिवारों को यूके में स्थानांतरित करने के लिए स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब ब्रिटेन में पढ़ाई पूरी किए बिना स्टूडेंट वीजा को वर्क वीजा में नहीं बदला जा सकेगा।

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हमें ऐसी व्यवस्था तैयार करनी ही होगी ताकि भारत में शिक्षा का स्तर आस्ट्रेलिया, कनाडा या अमेरिका जैसे देशों के बराबर हो जाए और हमारे यहां के छात्रों को विदेश में जाने की आवश्यकता ही न पड़े।

लगभग इसी समय में कनाडा ने भी अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए वीजा मानदंडों में संशोधन किया है। यहां, सबसे महत्वपूर्ण 2024 में स्वीकृत किए जाने वाले अध्ययन परमिटों की संख्या को केवल 360,000 तक सीमित करना था। यह 2023 के आंकड़ों की तुलना में 35 प्रतिशत कम हैं। साथ ही कनाडा में सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों को यह दिखाना होगा कि उनके पास रहने के खर्च के लिए कम से कम 20,635 डॉलर हैं जो पहले कभी पहले 10,000 डॉलर हुआ करते थे। कमोबेश यही हाल अमेरिका का भी है। वहां भी प्रवासन के नियमों के कारण लोग अमेरिका छोड़कर अन्य देशों में जा रहे हैं। इन बड़े नीतिगत परिवर्तनों के कारण ऐसे भारतीय युवाओं के भविष्य पर विपरीत असर पड़ रहा है जो विदेश में किसी अच्छे शिक्षण संस्थान में दाखिला लेना चाहते हैं। जाहिरा तौर पर यह एक निराशाजनक परिस्थिति है लेकिन हमें इसका निदान तो खोजना ही होगा। इसमें कोई दोराय नहीं कि आज हमारे आईआईटी, आईआईएम और अन्य शिक्षण संस्थान भी विश्व के मानकों के अनुरूप शिक्षा का स्तर कायम करने में सफल हो रहे हैं। कई वैश्विक रैंकिंग में वे पड़ोसी देश चीन को भी पीछे छोड़ चुके हें पर हमें ऐसी व्यवस्था तैयार करनी ही होगी ताकि भारत में शिक्षा का स्तर आस्ट्रेलिया, कनाडा या अमेरिका जैसे देशों के बराबर हो जाए और हमारे यहां के छात्रों को विदेश में जाने की आवश्यकता ही न पड़े।

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