ब्लिट्ज ब्यूरो
प्रयागराज। बात हो रही है 1967 के लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस की प्रत्याशी विजय लक्ष्मी पंडित और सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी रहे जनेश्वर मिश्र की। तब जनेश्वर मिश्र के जेल से रिहा होने के बाद ‘जेल का फाटक टूट गया, जनेश्वर मित्र छूट गया’ का नारा काफी बुलंद हुआ था।
दरअसल 1967 के आम चुनाव में विजय लक्ष्मी पंडित को कांग्रेस ने लगातार दूसरी बार अपना प्रत्याशी बनाया था। विचार मंथन के बाद समाजवादियों ने तय किया कि फूलपुर में अगर किसी समाजवादी को लड़ाया जाता है, तो कांग्रेस को अच्छी टक्क र दी जा सकती है। ऐसे में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की तत्कालीन छात्र राजनीति में सक्रिय रहे जनेश्वर मित्र के नाम पर सहमति बनी।
प्रदेश कार्यालय में चुनाव का कार्य देख रहे केके श्रीवास्तव बताते हैं, उस दौरान जनेश्वर मिश्र छात्र आंदोलन के अंतर्गत सेंट्रल जेल, नैनी में बंद थे। डीएम से अनुमति लेकर जनेश्वर मित्र को जेल से कलेक्ट्रेट लाकर विजय लक्ष्मी पंडित के खिलाफ नामांकन करवा दिया। इसके बाद जनेश्वर मिश्र फिर जेल चले गए।
कांग्रेस ने अपने चुनाव प्रचार को गति दी। तब छात्र नेताओं ने विजय लक्ष्मी पंडित को फूलपुर की चुनावी सभा में घेरना शुरू किया। छात्र नेताओं ने कहा कि आप चुनाव प्रचार कर रही हैं। जिनसे आपका मुकाबला है, वह तो जेल में बंद हैं। यह बात उन्हें चुभी।
चुनावी मुद्दा बनता देख विजय लक्ष्मी पंडित को हस्तक्षेप करना पड़ा। कांग्रेस पार्टी और सरकार से बात की। इसके बाद मतदान में अंतिम पांच दिनों से पहले बिना शर्त जनेश्वर मिश्र जेल से रिहा हो गए। जेल से छूटते ही जनेश्वर मिश्र फूलपुर में ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं करनी शुरू कीं, तब एक नारा सामने आया ‘जेल का फाटक टूट गया, जनेश्वर मित्र छूट गया।
इस नारे में इतना आकर्षण था कि आसपास के गांवों के लोग भी जनेश्वर मिश्र की सभाओं में आने लगे। धीरे-धीर चुनावी माहौल रंग लाने लगा। जनेश्वर मिश्र और विजय लक्ष्मी पंडित में सीधी टक्क र जरूर हुई, लेकिन कड़े मुकाबले में जनेश्वर मित्र चुनाव हार गए।