डॉ. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। आजकल की डिजिटल दुनिया में लोगों के रोजमर्रा जीवन का एक बड़ा हिस्सा स्क्रीन पर खर्च हो रहा है। लोग घंटों फोन, टीवी या लैपटॉप की स्क्रीन पर समय बिता रहे हैं। बड़ों के साथ-साथ बच्चे भी अब सोसायटी, मैदान, सामुदायिक स्थान, पार्क आदि से हटकर फोन की स्क्रीन तक सिमट गए हैं। खाने से लेकर पढ़ाई तक, एंटरटेनमेंट से लेकर बात करने तक बच्चे तेजी से मोबाइल के आदि हो चुके हैं जिससे बड़ों के साथ बच्चों में भी ‘डिजिटल डिमेंशिया’ का खतरा काफी बढ़ने लगा है।
क्या होता है ‘डिजिटल डिमेंशिया’
डिजिटल डिवाइस जैसे कि फोन, कंप्यूटर, लैपटॉप, इंटरनेट वगैरह ज्यादा यूज करने से दिमाग की क्षमता कम हो रही है। लोग भूलने लगते हैं, सामान कहीं रखते हैं, ढूंढ़ते कहीं और हैं । प्रोडक्टिविटी भी कम होती चली जाती है, इसी को ‘डिजिटल डिमेंशिया’ कहते हैं। समस्या का लगातार विस्तार हो रहा है क्योंकि लाेग सलाह मानने को तैयार ही नहीं।
बच्चों को कैसे बचाएं
– बच्चों के स्क्रीन टाइम को घटाने की कोशिश करें। फोन पर समय बिताने के बजाए कोशिश करें कि बच्चे खेल के मैदान में ज्यादा दिखें।
– लिखने के लिए मोबाइल, लैपटॉप पर निर्भर रहने के बजाय कॉपी-कलम का इस्तेमाल करें।
– बच्चों को नया स्किल सीखने के लिए प्रोत्साहित करें, जैसे नई भाषा, नया डांस, नया म्यूजिक या गेम।
– ज्यादा देर बैठे-बैठे फोन पर ही हर काम करते रहने से बच्चों में मोटापे जैसी बीमारियों के आसार भी बढ़ जाते हैं। बच्चों को टहलने के लिए प्रेरित करें।
– अपने घर का वातावरण अच्छा रखें। बच्चे अपने पैरेंट्स से काफी कुछ सीखते हैं। ऐसे में उनमें • सोचने-समझने की शैली का विकास, किताबें पढ़ने जैसी आदत, बाहर घूमने की आदत आदि का विकास करें।
– बच्चों को पजल गेम्स खिलाएं जिससे उनके दिमाग पर जोर पड़ेगा और उनकी बुद्धि का भी विकास होगा। बच्चों में एक्सरसाइज करने की आदत का विकास करें।
– बच्चों से बात करें, उन्हें समझें और समझाएं। ये भी महसूस कराएं कि रियल दुनिया और मोबाइल की रील दुनिया में कितना फर्क है।