चांद पर पानी की खोज करने वाले भारत का चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च किए जाने की तैयारी के अपने अंतिम चरणों में है। लॉन्चिंग की तैयारियों में लगी टीम भारत के सबसे भारी रॉकेट लॉन्च व्हीकल मार्क-III यानी कि ‘बाहुबली’ के बल पर मध्य जुलाई तक लॉन्चिंग के लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्राणप्रण से जुटी है। चांद सदियों से कवियों, शायरों और प्रेमियों की कल्पना एवं प्रेरणा का स्रोत रहा है। उसी चांद को आज के वैज्ञानिक अब अपना घर और मानव जाति की जरूरतों को पूरा करने का साधन बनाना चाहते हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग 14 जुलाई को स्थानीय समयानुसार दोपहर 2:35 बजे जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट से किए जाने की बात कही है। चंद्रयान-3 का फोकस मूल रूप से चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित तरीके से उतरने पर है। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ के अनुसार अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी छलांग तथा कामयाबी होगी।
– पीएम मोदी ने वैज्ञानिकों से कहा, विज्ञान में केवल प्रयोग होते हैं जिनसे वे हमेशा कुछ न कुछ निकालते हैं। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम में अभी भी सर्वश्रेष्ठ आना बाकी है।
– इसरो प्रमुख सोमनाथ को विश्वास है कि भारत 2047 तक अंतरिक्ष के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र होगा।
अधिकारियों के मुताबिक चंद्रयान-2 के बाद इस मिशन को चंद्रमा की सतह पर भारत की सुरक्षित लैंडिंग की क्षमता की जांच के लिए भेजा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि चंद्रयान-2 मिशन आखिरी चरण में विफल हो गया था। उसका लैंडर चांद की सतह से झटके के साथ टकराया था जिसके बाद पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष से उसका संपर्क टूट गया था। चंद्रयान-3 को उसी अधूरे मिशन को पूरा करने के लिए भेजा जा रहा है।
इसमें लैंडर के चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद उसमें से रोवर निकलेगा और सतह पर चक्क र लगाएगा और उन आवश्यक परीक्षणों को अंजाम देगा जिसके लिए उसे चंद्रमा की सतह पर उतारा जा रहा है। प्रक्षेपण की तिथि से जुड़े सवाल पर इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने कहा था कि चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण 12 से 19 जुलाई के बीच किसी भी तिथि काे हो सकता है क्योंकि इसी दौरान लांच विंडो खुली रहेगी। सबसे अनुकूल समय पर इसे लांच किया जाएगा।
अब परीक्षणों का अंतिम दौर चल रहा है, लगभग सारी तैयारी की जा चुकी है। ऐसे में मिशन सफल होने पर भारत ऐसा चौथा देश बन जाएगा जिसके पास चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की तकनीक होगी। यह देश के लिए भी एक अभूतपूर्व उपलब्धि होगी जो भारत को चीन, अमेरिका और रूस के समकक्ष ला कर खड़ा कर देगी जो भारत से पहले चंद्रमा पर अपने स्पेसक्राफ्ट की सफल लैंडिंग करा चुके हैं। चूंकि चांद के लिए इसरो का यह तीसरा मिशन है इसीलिए इसे चंद्रयान-3 नाम दिया गया है।
18 नवंबर 2008 को भारत ने चंद्रयान-1 से चंद्रमा का अपना सफर प्रारंभ किया था। तब भारत ने इस मिशन में चंद्रमा की सतह के ऊपर पतली परत होने और वहां पर पानी के सबूत होने की बात कही थी। इसके पहले किसी भी देश को चंद्रमा पर पानी होने की जानकारी नहीं थी।
इसरो के वैज्ञानिकों ने आजादी के बाद से अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बहुत लंबा और साहसी सफर तय किया है। चंद्रयान-2 मिशन के असफल होने के बाद भी इसरो के वैज्ञानिकों ने हिम्मत नहीं हारी। आज वे चंद्रयान-3 के साथ एक बार फिर चंद्रमा को अपनी मुट्ठी में करने के लिए तैयार हैं।
इसरो के वैज्ञानिकों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए लगातार चुनौतियों को स्वीकार किया। वे नित नई खोजों के साथ अंतरिक्ष के क्षेत्र में आगे बढ़ते गए। आज इसरो विश्व की 6 सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है। यह भारत के हर नागरिक के लिए अत्यंत गर्व का विषय है।
चंद्रयान -2 में हुई गलतियों से सीख लेते हुए इसरो के वैज्ञानिकों ने इस बार चंद्रयान 3 में अनेक महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं ताकि चंद्रमा की सतह पर इसे बिना किसी हानि के उतारा जा सके। खास बात यह है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद ने चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर को वही नाम दिए हैं जो चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर के नाम थे।
इसका तात्पर्य यही है कि लैंडर का नाम विक्रम होगा जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है और रोवर का नाम प्रज्ञान रहेगा।
चंद्रयान-2 मिशन की असफलता के समय पीएम मोदी ने तत्कालीन इसरो प्रमुख के सिवन को गर्मजोशी से गले लगा कर उनकी पीठ थपथपाई थी और वैज्ञानिकों से कहा था कि विज्ञान में कोई असफलता नहीं होती, केवल प्रयोग होते हैं जिनसे वे हमेशा कुछ न कुछ निकालते हैं। आज की सीख हमें और मजबूत व बेहतर बनाएगी। उन्होंने कहा, ”हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम में अभी भी सर्वश्रेष्ठ आना बाकी है। भारत आपके साथ है।”
चंद्रयान-3 मिशन के सफल होने के बाद वैज्ञानिकों को पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा के बारे में और अधिक जानकारी हासिल करने में सहायता मिलेगी। चंद्रयान-3 के साथ ऐसे उपकरण भेजे गए हैं जो अनेक महत्वपूर्ण परीक्षण करेंगे जिनमें चंद्रमा की चट्टानी सतह की परत, चंद्रमा के भूकंप, चंद्र सतह प्लाज्मा एवं उसकी मौलिक संरचना की थर्मल फिजिकल प्रॉपर्टीज के अध्ययन शामिल रहेंगे। अभी तक चंद्रयान-3 मिशन अपने सभी परीक्षणों में पूरी तरह से सफल रहा है।
आज अंतरिक्ष में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए अमेरिका, रूस और चीन में होड़ लगी है। इसरो प्रमुख सोमनाथ को विश्वास है कि भारत 2047 तक अंतरिक्ष के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र होगा। इसके लिए हमें अंतरिक्ष को देश की रणनीतिक संपत्ति के रूप में देखना होगा। अपनी क्षमता का निर्माण करना होगा और आत्मनिर्भर बनना होगा। इसी कड़ी में इसरो का एक अन्य महत्वाकांक्षी अभियान ‘गगनयान’ भी है। इसमें तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा जिनमें एक महिला भी होगी।
भारत-अमेरिका ने 2024 के लिए संयुक्त अंतरिक्ष यात्री मिशन की भी घोषणा की है। भारत ने अर्टेमिस संधि में शामिल होने का फैसला किया है। अब चंद्रयान-3 मिशन की सफलता भारत के हौसलों को अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक पहुंचा देगी। आज भारत की 140 करोड़ जनता की यही कामना है कि भारत इस महत्वपूर्ण मिशन में सफल हो और हम अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी अपना परचम फहराएं।



















