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जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में लोकतंत्र का उत्सव

by Blitzindiamedia
August 23, 2024
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Celebration of democracy in Jammu and Kashmir and Haryana
दीपक द्विवेदी

एक लंबे अंतराल के बाद लोकतंत्र का उत्सव मनाने के लिए जम्मू-कश्मीर तैयार हो चुका है। भारत के चुनाव आयोग ने तीन चरणों में विधानसभा चुनाव कराने की घोषणा कर के पूरी दुनिया को यह बता दिया है कि जम्मू-कश्मीर अब बदल चुका है। जम्मू-कश्मीर के अलावा चुनाव आयोग ने हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव कराए जाने की घोषणा कर दी है। रोचक बात यह है कि वर्तमान सरकार का कार्यकाल पूरा होने से एक माह पहले ही यहां नई सरकार बन जाएगी। जम्मू-कश्मीर में इससे पहले सुरक्षा कारणों से पांच से छह चरणों में चुनाव होते रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35 ए को समाप्त कर दिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश भी बना दिए थे।

सात अक्टूबर तक केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में पहली निर्वाचित सरकार सत्ता संभाल लेगी और पहली बार अपनी विधानसभा भी होगी। माना जा रहा है कि इस बार विधानसभा चुनाव में राज्य का दर्जा और आतंकवाद का समूल नाश बड़ा मुद्दा होगा। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर निरंतर सवाल खड़ा करने वाले कश्मीर केंद्रित राजनीति दल भी घोषणा के बाद अब अपनी तैयारी व रणनीति बनाने में जुट चुके हैं। वहीं लोकसभा चुनाव में रिकार्ड मतदान कर पहले ही लोकतंत्र में अपनी पूर्ण आस्था जता चुका जम्मू-कश्मीर का आम मतदाता भी अति उत्साहित नजर आ रहा है।

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गत 10 वर्षों, यानि कि 2014 के बाद से जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार न केवल निर्वाचन क्षेत्रों की ज्योग्राफी बदली है वरन् यहां के सामाजिक व राजनीतिक समीकरणों में भी काफी परिवर्तन हुआ है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद से अस्तित्व में आए केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में यह पहला विधानसभा चुनाव है। इससे पहले 2014 में जब अंतिम बार विधानसभा चुनाव हुआ था तो जम्मू-कश्मीर राज्य हुआ करता था और लद्दाख भी इसका एक हिस्सा था। तब पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार बनी थी जो जून 2018 में भंग हो गई। इसके बाद से जम्मू-कश्मीर में कोई निर्वाचित सरकार नहीं बनी।

आने वाले समय में अब देखना ये है कि चुनाव वाले जम्मू–कश्मीर व हरियाणा राज्यों के नए सियासी समीकरणों में कौन किस पर कैसे भारी पड़ता है।

चुनाव में गुज्जर-बक्क रवाल और पहाड़ी जनजातीय समुदाय (अनुसूचित जनजाति) के लिए नौ सीटें आरक्षित हैं। हर दल इन्हें साधने की कोशिश में लगा है। अनुसूचित जाति के लिए भी सात सीटें हैं। आरक्षित नामांकन कोटे से विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के लिए भी दो सीट, गुलाम जम्मू-कश्मीर के विस्थापितों के लिए एक और महिला सदस्यों के लिए दो सीट आरक्षित हैं। जम्मू-कश्मीर के इस चुनाव में पहली बार वाल्मीकि, गोरखा समाज, पाकिस्तान से आए विस्थापित भी मतदान कर सकेंगे। अन्य राज्यों के वे लोग भी वोट डाल सकेंगे जिनके पास प्रदेश का अधिवास पत्र व मतदान का अधिकार है। जाहिर सी बात है कि इसका असर चुनाव परिणामों पर अवश्य पड़ेगा।

जम्मू-कश्मीर में इस विधानसभा चुनाव की एक खास बात संभवत: यह भी हो सकती है कि इस बार यहां के चर्चित चेहरे नजर नहीं आएं। कारण यह है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले ही मना कर दिया है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती अपना चुनावी डेब्यू करने जा रही हैं। इल्तिजा, दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के पारंपरिक पारिवारिक गढ़ बिजबेहड़ा से चुनाव लड़ेंगी। पीडीपी की राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाने वाली इल्तिजा, पार्टी प्रमुख की मीडिया सलाहकार के रूप में काम कर रही हैं। बताया जा रहा है कि महबूबा एवं उमर; दोनों ही अपने दलों की चुनाव प्रचार की कमान संभालेंगे। इस विधानसभा चुनाव में नेशनल कान्फ्रेंस, पीडीपी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस समेत लगभग सभी दलों के मुद्दे संभवत: पिछले चुनाव के मुद्दों से अलग होंगे। ऐसा माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस बार का विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा। माना जा रहा है भाजपा एक ईमानदार और कर्मठ सरकार के नारे के साथ आगे बढ़ेगी।

हरियाणा में विधानसभा चुनाव की बात करें तो अचानक घोषणा से राजनीतिक दल भी चकित हैं। उनको अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने का अनुमान था लेकिन चुनाव आयोग ने करीब एक माह पहले ही चुनाव कार्यक्रम जारी कर दिया। हालांकि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने यह दावा किया था कि विधानसभा चुनाव अपने निर्धारित समय पर ही होंगे। मौजूदा भाजपा सरकार का कार्यकाल तीन नवंबर तक है। अब इससे एक माह पहले चार अक्टूबर को नई सरकार का गठन हो जाएगा। चुनाव प्रचार के लिए 17 अगस्त से 29 सितंबर तक यानी 44 दिन मिलेंगे। हरियाणा में विधानसभा चुनाव में 10 हजार से ज्यादा मतदाता 100 साल से ऊपर के हैं जो यहां के चुनाव की एक खास बात होगी। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भी हरियाणा के खानपान की सराहना करते हुए कहा कि यहां का खानपान काफी हेल्दी है। किसी भी चुनाव के लिए यह एक बहुत ही खास महत्व की बात होगी कि इतने अनुभवी और हेल्दी मतदाता भी अपनी पसंद की सरकार चुनने के लिए तैयार हैं जो शायद एक रिकॉर्ड भी होगा। आने वाले समय में अब देखना ये है कि चुनाव वाले जम्मू–कश्मीर व हरियाणा राज्यों के नए सियासी समीकरणों में कौन किस पर कैसे भारी पड़ता है।

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