डॉ. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। मानव निर्मित उत्सर्जन और जंगल की आग जैसे अन्य स्रोतों से होने वाले प्रदूषण के कारण दुनियाभर में वर्ष 1980 से 2020 तक लगभग 13.5 करोड़ लोगों की असामयिक मृत्यु हुई है। समय से पहले मृत्यु से तात्पर्य उन मौतों से है जो औसत जीवन प्रत्याशा के आधार पर अपेक्षा से पहले और बीमारियों या पर्यावरणीय कारणों से होती हैं। सिंगापुर नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में इस डराने वाली जानकारी का खुलासा किया है। अध्ययन के नतीजे एनवायरमेंट इंटरनेशनल पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
– चार दशक में देश में 2.61 करोड़ लोगों की गई जान
शोधकर्ताओं के अनुसार, अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ध्रुवीय बदलाव), हिंद महासागर द्विध्रुवीय और उत्तरी अटलांटिक दोलन जैसी जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के कारण प्रदूषण के महीन कणों, पीएम 2.5 का प्रभाव बदतर हो गया और मौसमी घटनाओं ने हवा में इन प्रदूषकों की सांद्रता को बढ़ाकर इनके प्रभाव को और खराब कर दिया है। इसकी वजह से अकाल मृत्यु में 14 फीसदी की वृद्धि हुई है।
पिछले अध्ययनों ने वायु गुणवत्ता और जलवायु के पहलुओं का पता लगाया है, जबकि यह अध्ययन दुनियाभर में किया गया और इसमें 40 से अधिक सालों के आंकड़ों का विश्लेषण कर इस बात का पता लगाया गया कि विशिष्ट जलवायु पैटर्न विभिन्न क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को कैसे प्रभावित करते हैं। अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि जलवायु पैटर्न में बदलाव वायु प्रदूषण को बदतर बना सकते हैं। एशिया में सबसे अधिक प्रभावित चीन में 4.9 और भारत में 2.61 करोड़ मौतें हुई हैं। इसके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, और जापान में भी पीएम 2.5 के कारण असामयिक मौतों की संख्या काफी अधिक थी, जो हर साल 20 से 50 लाख के बीच थी।
नासा के उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों से लगाया गया मृत्युदर का पता
1980 से 2020 तक समय से पहले होने वाली मौतों में से एक तिहाई स्ट्रोक (33.3 फीसदी) और इतनी ही इस्केमिक हृदय रोग (32.7 फीसदी) से जुड़ी थीं। बाकी समय से पहले होने वाली मौतें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, लोअर रेस्पिरेटरी इंफेक्शन और फेफड़ों के कैंसर से हुईं। यह समझने के लिए कि पीएम 2.5 प्रदूषण मृत्युदर पर कैसे असर डालता है, सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के वायुमंडल में महीन कणों के स्तर पर यूएस नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों का अध्ययन किया। प्रदूषण की यह स्थिति वैश्विक आबादी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए वायु प्रदूषण से निपटने के दौरान इन जलवायु पैटर्न को समझने और ध्यान में रखने की आवश्यकता को उजागर करता है। उन्होंने यूएस-आधारित इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्युएशन, एक स्वतंत्र शोध केंद्र से प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों से होने वाली मौतों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। इस अवधि के दौरान मौसम के पैटर्न की जानकारी संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन से ली गई थी।
यह अध्ययन वायु गुणवत्ता और जलवायु पर अब तक का सबसे विस्तृत अध्ययन है, जिसमें स्वास्थ्य पर पार्टिकुलेट मैटर के प्रभावों का एक बड़ा चित्र देने के लिए 40 वर्षों के डेटा का उपयोग किया गया है। एनटीयू के एशियन स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर स्टीव यिम ने कहा, हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि जलवायु पैटर्न में बदलाव वायु प्रदूषण को बदतर बनाते हैं। जब जलवायु घटनाएं होती हैं तो प्रदूषण बढ़ सकता है।
क्या है पीएम 2.5
पार्टिकुलेट मैटर 2.5 या ‘पीएम 2.5’ नामक छोटे कण सांस के जरिए अंदर जाने पर मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं क्योंकि वे काफी छोटे होने के कारण रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं। वे वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन के साथ-साथ आग और धूल के तूफान जैसे प्राकृतिक स्रोतों से आते हैं।



















