ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) द्वारा एक विस्तृत गाइडलाइन शेयर की गई है, जिसमें उन्होंने भारतीयों के लिए अपनी रिवाइज्ड डाइटरी गाइडलाइन्स में नॉन-स्टिक कुकवेयर का उपयोग न करने की सलाह दी है। एनवायरमेंट फ्रेंडली कुकवेयर का उपयोग करने की भी सलाह दी है, क्योंकि इसके दुष्प्रभावों पर नवीनतम शोध से गंभीर चिंताएं पैदा हुई हैं।
शोध और हेल्थ एक्सपर्ट्स द्वारा उठाई गई चिंताओं ने नॉन-स्टिक कुकवेयर के संभावित खतरों के बारे में बताया है, कन्ज्यूमर्स से डेली खाना पकाने में उनके उपयोग पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। नॉन-स्टिक कुकवेयर को लेकर चिंताओं में एक पेरफ्लूरूक्टेनोइक एसिड और पेरफ्लूरूक्टेनसल्फोनिक एसिड है, जो टेफ्लॉन जैसे नॉन-स्टिक कोटिंग्स के उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले रसायन हैं। जब नॉन-स्टिक कुकवेयर को हाई टेंपरेचर पर गर्म किया जाता है, तो ये रसायन हवा में जहरीला धुआं छोड़ सकते हैं, जिससे उनके संपर्क में आने वालों के लिए हेल्थ रिस्क पैदा हो सकता है।
ऐसे धुएं में सांस लेना कई स्वास्थ्य समस्याओं को निमंत्रण देना है। इन खतरों में श्वसन समस्याएं, थायरॉयड डिसऑर्डर और यहां तक कि कुछ प्रकार के कैंसर भी शामिल हैं।
खराब हो सकती है नॉन-स्टिक कोटिंग
इसके अलावा, समय के साथ कुकवेयर पर नॉन-स्टिक कोटिंग खराब हो सकती है, खासकर जब हाई टेंपरेचर हो। जैसे-जैसे कोटिंग खराब होती जाती है, खाना पकाने के दौरान इसके भोजन में घुलने का खतरा बढ़ता जाता है, जिससे कन्ज्यूमर्स हानिकारक रसायनों के संपर्क में आ सकते हैं। एसिडिक फूड्स पकाते समय या धातु के बर्तनों का उपयोग करते समय यह खासतौर से चिंताजनक है, क्योंकि ये नॉन-स्टिक कोटिंग के टूटने के खतरे को बढ़ा सकते हैं।



















