दीपक द्विवेदी
देश की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष (2023-24) की तीसरी अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में तेजी से बढ़कर 8.4 प्रतिशत हो गई जिसमें विनिर्माण, खनन और निर्माण क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन की अहम भूमिका रही है। आर्थिक वृद्धि का यह अनुमान जताए गए विभिन्न अनुमानों से कहीं अधिक है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने तीसरी तिमाही में वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत और पूरे वित्त वर्ष के लिए सात प्रतिशत रहने की संभावना जताई थी। वहीं एसबीआई रिसर्च ने आर्थिक वृद्धि दर दिसंबर तिमाही में 6.7 से 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। एनएसओ के जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की चालू दिसंबर तिमाही की वृद्धि दर पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही के 4.3 प्रतिशत से लगभग दोगुनी रही है। जीडीपी वृद्धि एक निश्चित अवधि में वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य में वृद्धि को दर्शाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि हमारे प्रयास तेज आर्थिक विकास लाने के लिए जारी रहेंगे जिससे 140 करोड़ भारतीयों को बेहतर जीवन जीने और एक विकसित भारत बनाने में मदद मिलेगी। ‘2023-24 की तीसरी तिमाही में 8.4 प्रतिशत की मजबूत जीडीपी वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत और इसकी क्षमता को दर्शाती है। इस बात से यह स्पष्ट है कि तीसरी तिमाही में उच्च वृद्धि दर और समूचे वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमान यह संकेत देता है कि भारत वैश्विक वृद्धि में गिरावट के दौर में भी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का अपना रुतबा कायम रखेगा। इसे भारतीय अर्थव्यवस्था का शानदार प्रदर्शन भी कहा जा सकता है। इसके अलावा चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि का यह अनुमान जनवरी में लगाए गए 7.3 प्रतिशत के पिछले अनुमान से बेहतर है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक भी क्रमशः 6.7 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जता चुके हैं।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में सकल मूल्य-वर्धन (जीवीए) के हिसाब से विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन 11.6 प्रतिशत बढ़ा जबकि एक साल पहले की समान अवधि में इसमें 4.8 प्रतिशत की गिरावट आई थी। वहीं आलोच्य अवधि में खनन और उत्खनन में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो एक साल पहले सिर्फ 1.4 प्रतिशत थी। निर्माण क्षेत्र ने अपनी वृद्धि दर को एक साल पहले की तरह 9.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। हालांकि समीक्षाधीन अवधि में कृषि क्षेत्र के उत्पादन में 0.8 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि एक साल पहले की समान तिमाही में यह 5.2 प्रतिशत बढ़ा था। एनएसओ के आंकड़ों से पता चलता है कि बिजली, गैस, जलापूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवा क्षेत्र में एक साल पहले के 8.7 प्रतिशत के मुकाबले नौ प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
रिसर्च फर्म जेफरीज ने भी अभी कुछ दिन पूर्व ही कहा था कि भारत की जीडीपी अगले चार वर्षों में 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की मजबूत संभावना है और 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। एक कथन में ग्लोबल फर्म ने कहा कि भारत 2030 तक लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा जिसकी वजह से बड़े वैश्विक निवेशकों (ग्लोबल इन्वेस्टर्स) के लिए भारत को नजरअंदाज करना ‘असंभव’ होगा। भारत एक दशक पहले नौवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से अब 3.75 ट्रिलियन डॉलर की नॉमिनल जीडीपी के साथ 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। जेफरीज की मानें तो पीपीपी (परचेसिंग पॉवर पैरिटी) के आधार पर जीडीपी पहले से ही 13.2 ट्रिलियन डॉलर से कहीं अधिक है जिससे यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है। रिपोर्ट के अनुसार यह विश्वास भी व्यक्त किया गया है कि भारतीय इक्विटी बाजार अगले पांच से सात वर्षों में 8-10 फीसद रिटर्न देना जारी रखेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी की सरकार भी कहती है कि वह तेज आर्थिक वृद्धि को कायम रखने के लिए अपने प्रयास जारी रखेगी ताकि तेज आर्थिक वृद्धि जारी रहे, 140 करोड़ भारतीयों को बेहतर जीवन जीने का मौका मिले और एक विकसित भारत बनाने में हम कामयाब हों। अब सवाल यह है कि आगे की हमारी रूपरेखा क्या हो ताकि विकास की ये गति बरकरार रहे? हमें अब कैसे कदम उठाने चाहिए ताकि समृद्ध होते भारत की राह और आसान हो जाए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय परिवारों के मासिक खर्च का औसतन लेखा व 2022-23 के आंकड़े समृद्ध होते भारत के संकेत देते हैं। राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण कार्यालय, यानी एनएसएसओ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि महंगाई से तुलनात्मक अध्ययन न किए जाने के बावजूद पिछले दस वर्षों में भारतीय परिवारों की दशा सुधरी है। 2011-12 में शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च औसतन 2,630 रुपये मासिक था, जो बढ़कर 3,510 रुपये हो गया है। इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्र में इसमें करीब 600 रुपये की वृद्धि हुई है और यह 2011-12 के 1,430 रुपये की तुलना में बढ़कर 2,008 रुपये हो गया है। सर्वे रिपोर्ट में एक अच्छी बात यह भी पता चली है कि खाद्य पदार्थों पर हमारा खर्च पहले की तुलना में कम हुआ है और हम कपड़े, टीवी, मनोरंजन आदि मदों पर ज्यादा खर्च करने लगे हैं। यह रिपोर्ट कहती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में खाने-पीने की चीजों पर हमारा प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च औसतन 46 प्रतिशत मासिक है जबकि शहरों में 39 प्रतिशत। इससे यह संकेत तो मिल ही रहे हैं कि देश में गरीबी के घटने का शुभारंभ हो चुका है।
अब आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे कदम उठाए जाएं ताकि सभी को रोजगार मिल सके। इसके लिए सबसे पहले बेरोजगारी दर को कम करने का प्रयास होना चाहिए। अगर हर हाथ को काम मिलेगा तो परिवार की आमदनी बढ़ेगी जिससे उपभोग में भी तेजी आएगी। विशेषकर पढ़े-लिखे नौजवानों को काम मिलना चाहिए। इसमें भी महिलाओं को रोजगार मिलना बहुत जरूरी है क्योंकि उनके हाथों में पैसे आने से घर तुलनात्मक रूप से अधिक समृद्ध बनता है। जरूरी यह भी है कि सूक्ष्म व लघु उद्योग क्षेत्र की कठिनाइयों को शीघ्र दूर किया जाए। इन क्षेत्रों में रोजगार- सृजन की संभावना अधिक होने के कारण यहां ध्यान केंद्रित करना होगा। इसी तरह, खेती-किसानी से बाहर निकलने वाले खेतिहर मजदूरों का भी हमें ध्यान रखना होगा। इसके लिए ग्रामीण रोजगार गारंटी जैसी योजनाओं पर और खर्च किया जाए जिससे उन्हें अपने घर के नजदीक ही काम मिल सके। हमें ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिनसे अधिक से अधिक रोजगार मिल सके और कोई भूखा न रहे तथा सबके पास अपना घर हो।



















