
भारत अब विश्व के मंच पर खुलकर और हौसले के साथ खेल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह एक बार कहा था कि भारत अब न आंखें नीचे कर, न आंखें दिखाकर, बल्कि आंखों में आंखें डालकर बात करेगा। ठीक यही नीति अब भारत का मंत्र बन चुकी है। चाहे विदेश नीति हो अथवा कोई भी अन्य मंच, भारत कदम-दर-कदम इस राह पर अग्रसर है। इसकी वजह है भारत में एक स्थिर राजनीतिक सत्ता और अर्थव्यवस्था की प्रगति जिसने इस तरह के हालात बनाने में अपना योगदान दिया। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी और मौजूदा विदेश मंत्री एस जयशंकर की जुगलबंदी भी इसके पीछे का एक महत्वपूर्ण कारक है। स्पष्ट है कि पीएम मोदी ने विदेश मंत्री जयशंकर को बेरोकटोक काम करने की छूट दी है। इसीलिए भी वे अपने हिसाब से नए-नए प्रतिमान रचते जा रहे हैं।
भारत के विदेश मंत्री चूंकि विदेश नीति के हर ऊंचे-नीचे पहलुओं को भलीभांति समझते हैं, इसीलिए संभवत: वे सही निर्णय करने में भी सक्षम दिखाई पड़ते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि भारत चूंकि आवश्यकता के समय दुनिया के हर देश की जरूरतों के हिसाब से उनके साथ खड़ा नजर आता है इसलिए भी उसकी स्थिति मानवीय मूल्यों के तराजू पर अन्य देशों की तुलना में काफी बेहतर बन जाती है। इसका मूल आधार है ‘वसुधैव कुटुंबकम ्’ की वह नीति जिस पर पीएम मोदी की सरकार पूरी दृढ़ता के साथ चल रही है।
‘वसुधैव कुटुंबकम ्’ की मूल भावना इस पर आधारित है कि ‘संपूर्ण दुनिया ही एक परिवार’ है और भारत इसी मूल सिद्धांत पर काम करता रहा है। भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, कभी औपनिवेशिक चरित्र नहीं अपनाया, इसलिए दुनिया में भारत ब्रांड भरोसेमंद माना जाता है। तुर्की हो या पाकिस्तान,जहां भी कभी तबाही आई, भारत सबसे पहले पहुंचा। अभी हमास-इस्राइल संघर्ष के बीच भी भारत ने प्रभावित इलाकों में मानवीय सहायता पहुंचाई, साथ ही हमास के आतंकी हमले की पुरजोर निंदा की और इस्राइल को भी संकट में समर्थन और सहानुभूति का संदेश दिया।
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने वर्चुअल ‘वॉयस आफ ग्लोबल साउथ समिट’ को संबोधित करते हुए कहा कि ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ 21वीं सदी की बदलती दुनिया को प्रतिबिम्बित करने वाला सर्वश्रेष्ठ मंच है। हम 100 से अधिक देश हैं लेकिन हमारी प्राथमिकताएं समान हैं। ग्लोबल साउथ यानी दुनिया के विकासशील देश भी भारत के बारे में निश्चिंत हैं और वे भारत को अपने जोरदार प्रतिनिधि के रूप में देख रहे हैं। इस दूसरे समिट की थीम भी ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ थी जो भारत के वसुधैव कुटुम्बकम ्के दर्शन को प्रतिध्वनित करती है। प्रधानमंत्री ने इस समिट में ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का भी उद्घाटन किया। यह एक थिंक टैंक के रूप में काम करेगा जो ग्लोबल साउथ के साथ इंटरफेस करने के लिए ज्ञान और विकास पहलों के भंडार के रूप में काम करेगा और ग्लोबल साउथ देशों में अपने समकक्षों के साथ मजबूत सहयोग बनाने के तरीकों की भी तलाश करेगा।
वस्तुत: आज ग्लोबल साउथ को आत्मनिर्भरता की दिशा में काम करने की जरूरत है। कोविड-19 हमें याद दिलाता है कि सप्लाई चेन के बाधित होने से कैसे पूरी दुनिया घुटने पर आ गई थी। यह दौर गवाही देता है कि बुनियादी जरूरतों के लिए दूर-दराज के देशों पर निर्भरता के खतरे भी बहुत हैं। इससे बचने के लिए देशों को प्रोडक्शन और सप्लाई चेन के स्थायी समाधानों को भी बढ़ावा देना होगा। तभी ये सारे देश एकसाथ मिल कर काम कर सकेंगे और विकसित देश बनने की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। भारत तो हमेशा से ही ग्लोबल साउथ के विकास के लिए प्रतिबद्ध नजर आता रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी सुनिश्चित किया कि भारत की क्षमताओं का ग्लोबल साउथ के देशों के बीच आदान-प्रदान किया जा सके। इसके लिए चार प्रमुख फैसलों के क्रियान्वयन के बारे में भी बात की गई जिनमें आरोग्य मैत्री पहल, ग्लोबल साउथ साइंस एंड टेक, ग्लोबल साउथ स्कॉलरशिप प्रोग्राम और ग्लोबल साउथ यंग डिप्लोमेट फोरम के जरिए ग्लोबल साउथ के साथ सहयोग की पहल भी शामिल है।
इस समिट में लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों से लेकर अफ्रीका, एशिया और पैसेफिक आईलैंड से करीब 130 देशों ने भाग लिया है। एक साल के भीतर ग्लोबल साउथ की दो समिट होना और उसमें बड़ी संख्या में इन देशों का जुड़ना, दुनिया को एक बहुत बड़ा संदेश भी भेजता है। ये संदेश है कि ग्लोबल साउथ अपनी स्वायत्तता चाहता है। ये संदेश है कि ग्लोबल साउथ वैश्विक मामलों में बड़ी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है। इस समिट ने एक बार फिर साझा अपेक्षाओं और आकांक्षाओं पर चर्चा करने का अवसर इन देशों को दिया। यहां इस बात का जिक्र करना भी लाजिमी बनता है और यह भारत के लिए गर्व का विषय भी है कि उसे जी20 जैसे महत्वपूर्ण मंच पर ग्लोबल साउथ का एजेंडा रखने का अवसर मिला।



















