संपन्न परिवार में जन्मे बच्चों ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में पले बच्चों से करीब 3 करोड़ ज्यादा शब्द सुने होते हैं
बच्चों के शैक्षिक विकास में माता-पिता का योगदान उस समय से शुरू हो जाता है जब वह बोलना भी नहीं जानते। मां पहली शिक्षक मानी जाती है और पिता के व्यवहार का असर बच्चे का आचरण तय करता है। बार्सिलोना में शिक्षा का थिंक टैंक मानी जाने वाली बॉफेल फाउंडेशन की नई रिसर्च बताती है कि बच्चा अपने बचपन में जितने ज्यादा शब्द सुनता है उसका शैक्षिक विकास उतनी ही तेज रफ्तार से होता है।
बच्चे के पास पढ़ना 6 माह की स्कूलिंग के बराबर
शोध से पता चला है कि अगर माता-पिता अपने बच्चे के पास बोलकर पढ़ें तो यह 6 महीने की स्कूलिंग के बराबर होता है। ऐसे बच्चे दूसरों की तुलना में जल्दी पढ़ना सीखते हैं। बच्चों की परवरिश पर हुए एक दूसरे शोध में बताया गया है कि संपन्न परिवार में जन्मे बच्चे ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में पले बच्चे से करीब 3 करोड़ ज्यादा शब्द सुने होते हैं। हालांकि पारिवारिक माहौल, परिस्थितियों और समाज के हिसाब से इसमें बदलाव आते हैं। इसका असर 9 साल की उम्र तक आते-आते सकारात्मक रूप से उसके अकादमिक प्रदर्शन पर पड़ता है। आम धारणा के विपरीत इस अध्ययन से यह भी पता चला है कि अगर माता-पिता अपने बच्चों का होमवर्क खुद कराते हैं तो यह उचित नहीं है। इससे उसकी सीखने के सामर्थ्य में कमी आती है।
बच्चा कमजोर है तो इसमें पेरेंट्स की कमी
बच्चों को अपना होमवर्क खुद करने दें। अगर उनके अध्ययन करने की कोई खास जगह और निश्चित समय हो तो इससे बच्चों में एक तरह की सकारात्मकता आती है। वे अनुशासित भी होते हैं। इक्विटी लिट्रेसी इंस्टीट्यूट के संस्थापक और डेफिसिट आइडियोलॉजी का टर्म देने वाले पॉल गोर्सकी कहते हैं कि अगर बच्चे के विकास की रफ्तार धीमी है तो संभव है कि उसकी परवरिश में माता-पिता कुछ गलत कर रहे हैं। वे कहते हैं कि माता-पिता के व्यवहार और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सीधा असर बच्चे की शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ता है।
बच्चों के शैक्षिक विकास पर हुए अध्ययनों से यह भी पता चला है कि शिक्षक उन बच्चों को ज्यादा काबिल समझते हैं जिनकी भाषा और उच्चारण बेहतर होता है। तब भी जब कि वे वास्तव में उतने काबिल नहीं होते। यहां तक कि पूर्वाग्रहों की वजह से शिक्षक बच्चों के ग्रेड भी कम कर देते हैं। अक्सर जानबूझकर ऐसा नहीं होता लेकिन आमतौर पर ऐसा ही देखने को मिलता है।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति का भी सीधा असर
इसके अलावा माता-पिता के व्यवहार और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सीधा असर भी उसकी शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ता है। माता-पिता के व्यवहार और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सीधा असर उसकी शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ता है।
बच्चे सीख सकें इसलिए आप भी सीखते रहिए
अगर बच्चा मां-बाप को पढ़ता देखता है तो उसकी पढ़ने की ललक जागती है। बच्चे के पढ़ने और खेलने का समय निश्चित करिए। वह अनुशासित बनेगा। बच्चों की तुलना किसी भी सूरत में दूसरे बच्चों से नहीं करनी चाहिए।
बच्चों के अच्छे प्रदर्शन पर उन्हें अपने स्तर पर पुरस्कृत जरूर करें। बच्चों को उसके शौक पूरे करने का मौका और समय दें। साथ ही दोस्तों से मिलने दें। बच्चे का जितना बड़ा सामाजिक दायरा होगा, उतना ही उसका विकास होगा।